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40 साल से परमवीर चक्र विजेता पत्नी को एक ही इंतजार, कहा- मर रही हूं अब तो पूरी कर दो अंतिम इच्छा

अल्‍बर्ट एक्‍का, झारखंड में इस नाम को बताने की जरूरत नहीं कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुआ जवान...
40 साल से परमवीर चक्र विजेता पत्नी को एक ही इंतजार, कहा- मर रही हूं अब तो पूरी कर दो अंतिम इच्छा

अल्‍बर्ट एक्‍का, झारखंड में इस नाम को बताने की जरूरत नहीं कि 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुआ जवान है।  नई दिल्‍ली के नेशनल वॉर मेमोरियल में लगी प्रतिमा हो या झारखंड की राजधानी रांची के हृदय स्‍थली शहीद चौक में लगी बड़ी सी मूर्ति, लोग जिज्ञासा बस ठहरते होंगे, ठहरते हैं। अल्‍बर्ट एक्‍का की ही है। रांची का शहीद चौक उसी के कारण फेमस हुआ। अल्‍बर्ट एक्‍का की शहादत के कारण ही जारी को भी लोग जानते हैं। नहीं तो रांची से कोई 80-90 किलोमीटर दूर सीमा पर स्थित गुमला जिला और जिला मुख्‍यालय से भी कोई 80-90 किलोमीटर अंदर सुदूरवर्ती जारी गांव को कोई कैसे और क्‍याों जानता।

यह जारी अल्‍बर्ट एक्‍का का गांव है, जन्‍मस्‍थली है। हर साल यहां उनकी याद में सैन्‍य मेला भी लगता है। कोरोना के कारण कई सालों से चली आ रही इस परंपरा पर विराम लग गया है। आज वहां सूनापन है। 3 दिसंबर को ही बहादुरी दिखाते हुए 29 साल के लांस नायक अल्‍बर्ट एक्‍का शहीद हुए थे। अकेले दुश्‍मनों के बंकर में घुस बंकर को तबाह कर दिया था। हालांकि खुद भी 20 गोलियां खाईं। इनकी टोली ने कोई 65 दुश्‍मन पाकिस्‍तानी सैनिकों को ढेर कर दिया था। और 15 को बंधक बना लिया था।

जारी अल्‍बर्ट एक्‍का का गांव
जारी में अल्‍बर्ट एक्‍का का घर 

खुद अल्‍बर्ट एक्‍का की बहादुरी का तो अलग किस्‍सा ही है। घटना गंगासागर मोर्चा की है। उनकी बहादुरी के कारण उन्‍हें परमवीर चक्र से नवाजा गया। आज उनको याद करने का दिन है। उनकी याद में आज लोग उनके स्‍मारक पर फूल-माला चढ़ाने वालों की भीड़ होती है। मुख्‍यमंती हेमंत सोरेन भी गये थे।

पत्‍नी बलमदीना की अंतिम इच्‍छा

अल्‍बर्ट एक्‍का ने अपनी अंतिम इच्‍छा पूरी करते हुए देश की रक्षा में जान देकर अनेक दुश्‍मनों को मौत के घाट उतार दिया मगर उनकी पत्‍नी बलमदीना की अंतिम इच्‍छा पूरी नहीं हुई है। बलमदीना की तबीयत ठीक नहीं है। 84 साल की हैं। बेड पर हैं। चलने फिरने में असमर्थ। कोई सरकारी साहब, मंत्री से मुलाकात होती है तो कहती हैं बस अंतिम इच्‍छा यही है कि गांव यानी जारी में पति की याद में समाधि बना दें। टीएसी के पूर्व सदस्‍य रतन तिर्की अपने कुछ मित्रों के साथ बलमदीना से मिलने उनके गांव गये हुए हैं।

44 साल बाद गांव आई थी मिट्टी

सीमा पर शहीद होने के बाद उन्‍हें कहां दफनाया गया यह सवाल था। किसी तरह तलाश के बाद मौत के कोई 44 वर्षों के बाद 2016 में अगरतला जहां दफन किये गये थे वहां से मिट्टी लाई गई। मिट्टी लाने की भी कहानी है। एकबार सेना से जुड़े लोगों ने मिट्टी लाई तो विवाद हो गया कि कब्र वाले स्‍थान की ही मिट्टी है या कहीं और की। बाद में झारखंड से बलमदीना सहित सामाजिक कार्यकर्ता व अधिकारियों की टीम गई। अगरतला के ढुलकी गांव में जहां स्‍थान बताया गया पक्‍का मकान बना हुआ था। गांव के ही एक बुजुर्ग ने तब बताया कि उसकी मौजूदगी में यही शहीदों को दफन किया गया था। तब वहां बलमदीना ने सिर नवाया और आंगन की मिट्टी लाई गई। जारी में मिट्टी को कब्र में डालने के मौके पर तत्‍कालीन मुख्‍यमंत्री रघुवर दास भी पहुंचे थे। मगर स्‍मारक बनाने और विकास के दूसरे वादे अधूरे रह गये। सीसीएल वालों ने गांव में ही बलमदीना के लिए मकान बनवा दिया था मगर वह भी आधा-अधूरा रहा। अब बलमदीना की उम्‍मीद हेमंत सरकार से है।

 

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