ऐसे में उनका दर्द गीत बन कर होठों से बरबस निकल रहा है। मजनुओं के बीच स्व. किशोर दा का चर्चित गीत रे मीत ना मिला रे मन का मौजूं बन पड़ा है।
वहीं मांस प्रेमियों के बीच इस गीत का नया संस्करण रे मीट ना मिला रे मन का चल पड़ा है। हिंदू मांसाहारियों को रामनवमी का बहाना मिल गया हो लेकिन मुस्लिम भोजन भट्टों के लिए यह यूपी में दुःस्वप्न का दौर है। सोचिए, टुंडा कबाव के प्रेमियों पर क्या गुजर रही होगी।
माना जा रहा है कि रामनवमी को देखते हुए मीट के कारोबारी वैसे भी अपनी दूकानें समेट कर ही रखेंगे। लव वर्ड्स (प्रेमी जोड़ों) के हाल भी कम बुरे नहीं हैं। प्रेमी तो जोखिम लेने को तैयार भी हो जाएं लेकिन प्रमिकाओं ने तो सीधे ना बाबा ना कहना शुरू कर दिया है। उन्हें एंटी रोमियो दस्ते द्वारा छेड़े जाने का खौफ सता रहा है। छेड़खानी करने वाले मनचले तो कहां नदारद हो गए हैं मत पूछिए।