गैर सरकारी संगठन ट्रांसपेरेन्सी इंटरनेशनल के बोर्ड सदस्य अजय दुबे ने बताया, व्यापमं और डीमैट घोटाले की सीबीआई जांच की गुहार के साथ ही प्रदेश सरकार ने उच्चतम न्यायालय और मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में दायर याचिकाओं में अपना पक्ष रखने के लिए कई वरिष्ठ वकीलों की सेवाएं लीं, ताकि वह इस घोटाले की सीबीआई जांच से बच सके। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार ने इन वरिष्ठ वकीलों को पैरवी के लिए नियुक्त करते वक्त तय प्रक्रिया का पालन नहीं किया। इन वकीलों को वर्ष 2013 से 2015 के बीच सरकारी खजाने से कथित तौर पर लगभग सवा करोड़ रुपये का भुगतान किया गया।
साथ ही व्हिसलब्लोअर दुबे ने बताया कि उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में प्रदेश सरकार के स्थायी वकील पहले से ही मौजूद हैं। ऐसे में इनकी जगह वरिष्ठ वकीलों की सेवाएं लेकर उन्हें मोटा भुगतान करना करदाताओं के धन की बर्बादी है। दुबे ने दावा किया कि विधि विभाग के दिश-निर्देशों के मुताबिक प्रदेश सरकार किसी मामले में अपने स्थायी वकील की जगह किसी वरिष्ठ वकील को अपनी पैरवी के लिए तब ही नियुक्त कर सकती है, जब उस मामले में पैरवी के लिए प्रदेश सरकार के स्थायी वकील या विधि अधिकारी ने असमर्थता जताई हो। उन्होंने आरोप लगाया कि व्यापमं और डीमैट घोटालों से जुड़े अदालती मामलों में पैरवी के लिए प्रदेश सरकार के स्थायी अधिवक्ताओं की जगह वरिष्ठ वकीलों की नियुक्ति करते वक्त इस शर्त का उल्लंघन किया गया।
दुबे ने आरोप लगाया कि वरिष्ठ वकीलों की नियुक्ति के मामले में प्रदेश के विधि विभाग की भूमिका भी संदिग्ध है और वह प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय कानून मंत्रालय को इसकी शिकायत करेंगे। फिलहाल उच्चतम न्यायालय के आदेश पर सीबीआई व्यापमं घोटाले की जांच कर रही है।