रामगोपाल जाट
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में अटके तीन तलाक बिल का विरोध अब तेजी से हो रहा है। देश के कई राज्यों में इसका विरोध हो रहा है। इस सिलसिले में राजस्थान के चार जिलों में अब तक इसके विरोध में मुस्लिम समाज की महिलाओं ने मौन जूलुस निकालकर जोरदार विरोध किया है। हजारों की संख्या में हाथों में तख्तियां लिखे स्लोगन लिए मुस्लिम समाज की महिलाओं की संख्या भारतीय जनता पार्टी की नींद उड़ाने के लिए काफी है।
इस बिल के विरोध में सबसे पहले राजस्थान के झुंझुनूं जिले में महिलाओं ने मौन जूलुस निकाला। यहां पर काले बुर्कों में जब मुस्लिम समाज की महिलाएं सड़क पर उतरीं तो प्रशासन के हाथ पांव फूल गए। 22 फरवरी को सबसे पहले इसी जिले की सड़कों पर ऐतिहासिक जूलुस निकाला गया। हालांकि, मौन और शांतिप्रिय तरीके से निकले इस जूलुस के निपटारे के बाद जिला प्रशासन व पुलिस ने राहत की सांस ली।
इसके बाद दूसरे नंबर पर सूबे की राजधानी जयपुर की सड़के काली हो गईं। यहां पर चार दरवाजा से घाटगेट तक हजारों की संख्या में निकली महिलाओं के हाथों में वही तख्तियां थीं। महिलाओं के साथ सड़क पर दोनों ओर पुरुष उनका हौसला बढ़ा रहे थे। हालांकि, यह जूलुस एक संगठन के आव्हान पर निकाले जा रहे हैं, लेकिन जिस शांतिप्रिय तरीके से यह हो रहा है, उसने सियासतदानों को जरूर परेशान कर दिया है। आमतौर पर बड़े धरने, रैली और जूलुस के वक्त दंगे होने पर राजनीति मुस्कुराती है, लेकिन यहां पर ऐसा नहीं होने के कारण सियासी लोग मायूस से नजर आ रहे हैं।
तीसरा जूलुस 12 मार्च को राजस्थान में नवाबों का शहर माने जाने वाले टोंक में निकाल गया। यह शहर मुस्लिम आबादी के लिहाज से काफी समृद्ध है। ऐसे में भीड़ जुटाना ज्यादा कठिन नहीं रहा। शहर की सड़कों पर सुरक्षा व्यवस्था चाक चौबंद रही। सामान्यत: यह शहर भी हिंदू—मुस्लिम दंगे होने के लिए मशहूर रहा है। लेकिन करीब 15 हजार महिलाओं की भीड़ के बावजूद किसी समुदाय की कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई।
15 मार्च को सीकर में की गई रैली
एक दिन पहले ही, यानी 15 मार्च को सीकर में भी ऐसी ही एक रैली का आयोजन किया गया। यहां पर काफी संख्या में मुसलमान हैं। लेकिन सबसे गंभीर बात यह है कि अमूमन उग्र होने वाले शेखावाटी के दो जिलों में मौन जूलुस बिना की विवाद के निपट गया। अगला पड़ाव अजमेर हो सकता है। इस शहर को राजस्थान का मक्का-मदीना कहा जाता है। यहां पर जहां ख्वाजा की दरगाह होने के कारण देश-दुनिया में प्रसिद्ध है, वहीं जनसंख्या के लिहाज से भी मूसलमानों का वर्चस्व है। ऐसे में जूलुस के आकार का अंदाजा लगाना कठिन नहीं होगा।
सबसे अच्छी बात यह है कि इन तमाम जगहों पर मुस्लिम समाज की महिलाओं के इन जूलुस का हिंदू संगठनों या हिंदू महिलाओं ने कोई विरोध नहीं किया। इस तरह का आजाद भारत में पहली बार हो रहा है कि मुस्लिम समाज में कथित रूप से चल रही एक कुप्रथा पर बन रहे कानून के विरोध में महिलाएं आगे आईं हैं, जबकि यह कानून मुस्लिम महिलाओं को ही अधिकार दिलाने व उनपर अत्याचार रोकने वाला बताया जा रहा है।
मुस्लिम संगठन का क्या है कहना
मुस्लिम संगठन, जो इन जूलुस का आयोजन कर रहे हैं और समर्थन दे रहे हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम समाज में प्रचलित तीन तलाक को प्रतिबंध करने के लिए लाए गए बिल के विरोध में मुस्लिम महिलाओं के मौन ने यह रैलियां की है। सीकर के शहर काजी वसीउद्दीन बताते हैं कि इस्लामी शरीयत और मुसलमान औरतों के हकों पर भारत की हुकूमत का बेवजह दखल काबिले बर्दाश्त नहीं है। इसलिए ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के बैनर तले तीन तलाक बिल की मुखालफत करने के उद्देश्य से तमाम मुस्लिम महिलाएं यह मौन रैलियां निकाल रही हैं। इन जूलुसों में सगंठनों द्वारा सभी मुस्लिम महिलाओं से शिरकत करने की अपील की जाती है।
दरअसल, केंद्र सरकार ने मुस्लिम समाज में व्याप्त कुप्रथा वाले तीन तलाक के में विरोध एक बिल तैयार किया है। जिसको बहुमत के आधार पर लोकसभा में पारित किया जा चुका है, लेकिन राज्यसभा में बीजेपी के पास बहुमत का अभाव होने के कारण बिल अटका पड़ा है। अब चूंकि 2019 से पहले भाजपा को राज्यसभा में बहुमत मिल जाएगा, ऐसे में इस बिल के पास होने की संभावना प्रबल हो रही है।
लेकिन मुस्लिम संगठनों ने कहा है कि बिल पास होकर कानून का रूप अख्तियार नहीं करना चाहिए। ऐसा होने पर मूसलमान धर्म और उनके कायदों पर केंद्र सरकार का सीधा दखल हो जाएगा। सभी जूलुसों में महिलाओं के हाथों में जो तख्तियां थीं, उनमें भी यही लिखा है कि उनका समाज शरीयत के कानून को मानता है और उसी के अनुसार चलेगा। इसमें किसी भी सूरत में दखल बर्दास्त नहीं होगा। बिल के अनुसार एक बार में कोई भी व्यक्ति तलाक नहीं दे सकता। ऐसा करने पर तीन साल की सजा का प्रावधान है।