लेकिन झारखंड मुक्ति मोर्चा ने पीएम के ‘बिरसा प्रेम’ को यह कहकर खारिज कर दिया कि बैठक में आदिवासी हितों से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा नहीं हुई। जनगणना में अलग आदिवासी धर्म कोड की मांग झारखंड ही नहीं, पूरे देश के आदिवासियों की है। इस पर जवाबी हमला करते हुए झारखंड के सह-प्रांत कार्यवाह राकेश लाल ने आदिवासियों की ओर इशारा करते हुए कहा, “यहां के कमजोर वर्ग के लोगों को बताया जाता है कि वे हिंदू नहीं हैं, जबकि वे न तो ईसाई हैं, न मुस्लिम। भोले-भाले सरना सनातन समाज के लोगों को अपनी धर्म-संस्कृति के साथ जीने का अधिकार मिलना चाहिए।”
इस बीच हेमन्त सरकार ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता में गठित कमेटी की रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी। इसमें बताया गया है कि राज्य की सरकारी नौकरियों के प्रोन्नति वाले पदों में अनुसूचित जाति और जनजाति के लोगों का प्रतिनिधित्व बहुत कम है, इसलिए उनके लिए आरक्षण जारी रखने की जरूरत है। राज्य में आदिवासियों की आबादी 26.20 प्रतिशत है, मगर सरकारी सेवा में वे सिर्फ 10.04 प्रतिशत हैं। इसी तरह अनुसूचित जाति की आबादी 12.08 प्रतिशत है मगर सरकारी सेवा में मात्र 4.45 प्रतिशत लोग हैं।
भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक में देश में कहीं भी रहने वाले आदिवासी को आरक्षण का लाभ देने, राज्यों में अनुसूचित जनजाति आयोग और जनजाति वित्त निगम के गठन, उनकी जमीन की रक्षा के लिए बने कानून के सख्ती से पालन, वन क्षेत्रों में रहने वालों को जमीन पर मालिकाना हक की वकालत की गई है। बैठक के अंतिम दिन भाजपा के राष्ट्रीय संगठन मंत्री बीएल संतोष ने कहा कि मोर्चा जनजाति समाज में नेतृत्व विकसित करे। इस समाज से जुड़े लोगों की छोटी-छोटी समस्याओं का समाधान कर राष्ट्रीय सोच विकसित करे। कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष और राज्य के वित्त मंत्री रामेश्वर उरांव कहते हैं, “आदिवासियों के नाम पर भाजपा लोगों को भ्रमित कर रही है। भूमि अधिग्रहण कानून को बदलकर जमीन अडाणी, अंबानी के हवाले करना चाहती थी।”
झामुमो महासचिव सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा, “प्रधानमंत्री को 88वें ‘मन की बात’ में भगवान बिरसा की याद तब आई जब यहां जनजाति मोर्चा की राष्ट्रीय कार्यसमिति की बैठक हो रही थी। भाजपा के लोग किस मुंह से कहते हैं कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में आदिवासी समाज का विकास हो रहा है। दो दिन की बैठक में किसी भी नेता ने सरना धर्म कोड के बारे में बात नहीं की, जबकि विधानसभा से सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित कर केंद्र को भेजा जा चुका है।”
भाजपा जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष समीर उरांव ने इसका विरोध करते हुए कहा कि सरना धर्म कोड जारी करने की प्रक्रिया में कई जटिलताएं हैं, झामुमो इस पर नाहक भ्रम फैला रहा है। संविधान में कई बातों में स्पष्टता नहीं है, जनजाति की परिभाषा साफ नहीं है। शिबू सोरेन और हेमन्त सोरेन खुद महादेव की उपासना करते हैं, इसलिए वे सनातनी हैं। बात तो आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और उनके विकास की होनी चाहिए।
सुप्रियो भट्टाचार्य ने कहा कि भाजपा की बैठक में किसी ने भी पेसा कानून का उल्लेख नहीं किया। गौरतलब है कि आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को मजबूत बनाने के लिए 1996 में पेसा कानून लाया गया था। भट्टाचार्य ने कहा, असम के चाय बागानों में झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा के आदिवासी तीन सौ सालों से रह रहे हैं, भाजपा बताए कि उन्हें असम सरकार जनजाति का दर्जा कब देगी। वहां भाजपा की छह साल से सरकार है।
भाजपा सहित सभी जानते हैं कि झारखंड की राजनीति में आदिवासी वोट के क्या मायने हैं। भाजपा इस बार इस वोट बैंक में किसी तरह का जोखिम नहीं चाहती है। विरोधियों के अनुसार, यही वजह है कि प्रधानमंत्री अपने कार्यक्रम में भगवान बिरसा को याद कर रहे हैं, ताकि आदिवासियों को अपनी ओर खींचा जा सकते। देखना है, ऊंट किस करवट बैठेगा।