पंजाब कांग्रेस की पिच से उखड़े विधायक नवजोत सिंह सिद्धू राहुल व प्रियंका गांधी वाॅड्रा से भी दूर हो गए हैं। यानि सिद्धू का कांग्रेस में कोई माई-बाप नहीं रहा। पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिदंर व सिद्धू के बीच सुलह के तमाम दरवाजे बंद हो गए हैं। अब तो सिद्धू को पार्टी से निकाले जाने के लिए कैप्टन के आधा दर्जन केबिनेट मंत्रियों ने प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ और प्रभारी हरीश रावत पर दबाव बनाया है। 2017 के विधाानसभा चुनाव से ठीक पहले भाजपा छोड़ कांग्रेेस में शामिल हुए सिद्धू सीधे प्रियंका गांधी के रास्ते कांग्रेस में दाखिल हुए इसके लिए तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कैप्टन अमरिंदर सिंह को भी विश्वास में नहीं लिया गया। पार्टी हाईकमान के निर्देेश पर वे पैराशुट उम्मीदवार बन विधानसभा पहुंचे और केबिनेट मंत्री बने। सिद्धू की महत्वकांक्षाएं यही नहीं थमी। बामुश्किल साढ़े चार पहले कांग्रेस में एंट्री करने वाले सिद्धू की गिद्ध दृष्टि पहले मुख्यमंत्री की कुर्सी पर लगी फिर कांग्रेस की पंजाब प्रधानगी पर दशकों पुराने कांग्रेसी नेताओं को यह गवारा नहीं।
कैप्टन अमरिंदर भी यही कहते हैं कि चार साल पहले पार्टी में शामिल हुए सिद्धू को हमने कई पुराने दिग्गज कांग्रेसियों को पीछे छोड़ आगे बढ़ाया है। दो बार की मुलाकात के बाद कैप्टन केबिनेट में सिद्धू की वापसी की चर्चाओं पर विराम तभी से लग गया है जब से सिद्धू ने सीधे कैप्टन को निशाने पर लिया है। कांग्रेस प्रदेश प्रभारी हरीश रावत ने भी सिद्धू से मुंह मोड़ लिया है। मुख्यमंत्री की कुर्सी के आकांक्षी सिद्धू का कांग्रेस में और लंबे समय टिके रहना मुश्किल है। टिवट्टर के जरिए आए दिन अपने मन की भड़ास कैप्टन व उनकी सरकार पर निकालने वाले सिद्धू की निराशा से साफ है कि उन्हें वह नहीं मिल रहा जो वह चाहते हैं। उन्हें लगता है कि कैप्टन के रहते पंजाब की कांग्रेसी सियासत में उनकी दाल नहीं गलने वाली।
2022 के विधानसभा चुनाव के लिए खुद को कांग्रेस का चेहरा घोषित कर चुके कैप्टन के आगे कांग्रेस हाईकमान भी सिद्धू को मनाने पर और ज्यादा जोर नहीं लगाना चाहता। कैप्टन से बढ़ती नाराजगी के दिनों में अक्सर राहुल गांधी व प्रियंका गांधी वॉड्रा के दिल्ली दरबार में हाजिरी लगाने वाले सिद्धू इस बार तो दिल्ली भी नहीं गए। इन से भी सिद्धू काे साफ संकेत है कि पंजाब की कांग्रेस िसयासत में रहना है तो अमरिंदर सिंह को कैप्टन मानना होगा।
सिद्धू से सुलह के लिए अक्टूबर 2020 से लगे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव एंव पंजाब प्रभारी हरीश रावत के प्रयास से 6 महीने में सिद्धू की कैप्टन के साथ हुई दो बार की मुलाकात में यह निकल कर आया कि पहले तो सिद्धू उपमुख्यमंत्री पद के लिए अड़े रहे जिस पर कैप्टन के राजी न होने पर सिद्धू ने अपने पुराने मंत्रालय स्थानीय निकाय पर बहाली की मांग रखी और वह भी कैप्टन को मंजूर नहीं। दरअसल स्थानीय निकाय मंत्रालय कैप्टन के बेहद करीबी पटियाला ग्रामीण इलाके से लगातार पांच बार के विधायक ब्रहम महिंद्रा से किसी भी सूरत में नहीं लेना चाहते।
जुलाई 2019 से ही सिद्धू कैप्टन मंत्रीमंडल की पिच से तभी उखड़ गए थे जब उनसे स्थानीय निकाय जैसा अहम मंत्रालय इन आरोपों के साथ छिना गया कि 2019 के लोकसभा चुनाव में पंजाब में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया। हालांकि 13 में से 8 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज पर स्थानीय निकाय मंत्रालय में सही से काम न होने का ठिकरा सिद्धू पर पर फोड़ते हुए कैप्टन ने उन्हें मंत्रीमंडल के फेरबदल में पावर मंत्री बनाकर एक तरह से पावरलेस कर दिया। स्थानीय निकाय विभाग छीने जाने पर सिद्धू ने कहा था कि उन्होंने अपना काम पूरी ईमानदारी से किया तो बदलाव क्यों? कैप्टन से नाराज सिद्धू ने इस्तीफा दे कांग्रेस की मुख्यधारा से खुद को अलग कर लिया। सवा साल तक वह अपने हलके अमृतसर के कांग्रेिसयों से भी दूर रहे,विधानसभा के सत्रों से भी दूरी बनाए रखी। यही नहीं हताश सिद्धू ने अपना अमृतसर निवास छोड़ करीब एक साल कटरा वैष्णाे देवी मंदिर के निकट एकांतवास में गुजारा।
करीब सवा साल तक कांग्रेस से दूरी बनाए रखने वाले सिद्धू अक्टूबर 2020 में पंजाब में राहुल गांधी की ट्रैक्टर रैली के दौरान सावर्जनिक रुप से कांग्रेस के मंच पर आए। इसके बाद वह प्रियंका गांधी के साथ नजर आए। फरवरी में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी मुलाकात की थी। इसके बाद उनके फिर से मुख्यधारा में लौटने की अटकलों ने जोर पकड़ लिया। कांग्रेसी हलकों में इस बात की चर्चा अकसर होती है कि कांग्रेस में बने रहने के अलावा सिद्धू के पास फिलहाल कोई चारा नहीं है। तीन बार अमृतसर से भाजपा के लोकसभा सांसद रहने के बाद सिद्धू ने राज्यसभा की सदस्यता बीच में ठुकरा कर भाजपा में अपनी वापसी का रास्ता बंद कर लिया है। आम आदमी पार्टी(आप) के अरविंद केजरीवाल से सिद्धू के लगातार संपर्क में रहने की चर्चाएं हैं। जनता में भी सिद्धू की छवि एक सेलीब्रेटी स्टार चुनाव प्रचारक से आगे की नहीं हैं। अकेले सिद्धू के दम पर भी आप पंजाब में अपनी सरकार बना पाने की स्थिति में नहीं आ पाएगी। सिद्धू के पास राहुल,प्रियंका की छत्रछाया में कांग्रेस की केंद्रीय सियासत की ओर बढ़ने का विकल्प भी अब नहीं बचा है।