महाराष्ट्र की भाजपा सरकार के राजस्व मंत्री चंद्रकांत पाटिल पर 342 करोड़ रुपये के घोटाले का आरोप लगा है। यह पुणे में दो जमीनों से संबंधित बताया गया है। विपक्षी विधायकों ने गुरुवार को विधानसभा के बाहर धरना देकर मंत्री के इस्तीफे की मांग की है।
विपक्षी नेताओं ने विधानसभा के बाहर दिया धरना
राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वादेतिवार और एनसीपी नेता जयंत पाटिल, अजीत पवार और जितेंद्र अहवाद समेत तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने धरना दिया और मंत्री के खिलाफ नारेबाजी करते हुए उनके इस्तीफे की मांग की।
जमीनों के लेनदेन में 342 करोड़ रुपये का घोटाला
जयंत पाटिल ने संवाददाताओं को बताया कि इस मामले की विस्तृत जांच की जानी चाहिए। उन्होंने आरोप लगाया कि पुणे की दो जमीनों के मामले में दो प्राइवेट बिल्डरों को फायदा पहुंचाने और 342 करोड़ रुपये के घोटाले में शामिल होने का आरोप लगाया।
देवस्थान की जमीन बिना प्रीमियम बेची गई
उन्होंने बुधवार को कहा था कि इन जमीन सौदों के कारण सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ। एनसीपी नेता के अनुसार पुणे के हवेली तालुका में देवस्थान की एक जमीन बिना प्रीमियम वसूले अवैध रूप से ट्रांसफर कर दी गई। जब इस बारे में मंत्री से अपील की गई तो अपने अधिकारों का उपयोग करते हुए प्रीमियम राशि वसूले बगैर इस सौदे को मंजूरी दे दी। एनसीपी नेता का आरोप है कि एक अन्य मामले में मंत्री ने पुणे के ही बलेवाड़ी में एक बिल्डर का पक्ष लिया। खेल के मैदान के लिए आरक्षित एक जमीन के टुकड़े पर शिवप्रिया रियल्टर्स नामक बिल्डर ने कब्जा कर लिया। इस मामले में मंत्री ने बिल्डर का साथ दिया।
मंत्री की मदद से खेल के मैदान पर बिल्डर ने किया कब्जा
पाटिल ने मंत्री पर बिल्डरों को फायदा पहुंचाने का आरोप लगाते हुए उनके इस्तीफे की मांग की है। हालांकि राजस्व मंत्री ने इन आरोपों का खंडन किया है। उन्होंने कहा कि 1885 के भू आलेखों के अनुसार जमीन देवस्थान के नाम पर दर्ज नहीं थी, इसलिए प्रीमियम फीस जमा कराने की कोई आवश्यकता नहीं थी। बलेवाड़ी के मामले में अभी तक कोई फैसला नहीं गया है। इसके भूराजस्व अधिकारी का बदला गया है।
जांच के लिए एसआइटी गठित करने की मांग
विधानसभा में विपक्ष के नेता विजय वादेत्तिवार ने मांग की कि मंत्री पर आरोप अत्यंत गंभीर हैं। इन मामलों की जांच के लिए विशेष जांच टीम (एसआइटी) गठित की जानी चाहिए। सदन में कांग्रेस के उप नेता नसीम खान ने कहा कि जब तक मामले की जांच नहीं हो जाती है, तब तक मंत्री को सरकार से इस्तीफा दे देना चाहिए।