जम्मू-कश्मीर में मौजूदा सियासी संकट के बीच बुधवार को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने राज्य में राज्यपाल शासन को मंजूरी दे दी है। मंगलवार को भारतीय जनता पार्टी ने महबूबा सरकार से अपना समर्थन वापस ले लिया था, जिसके बाद महबूबा मुफ्ती ने अपना इस्तीफा राज्यपाल एनएन वोहरा को सौंप दिया था।
भाजपा ने सरकार से समर्थन वापस लेते हुए कहा था कि राज्य में बढ़ती कट्टरता और आतंकवाद के बीच सरकार में बने रहना असंभव हो गया है।
मुख्यमंत्री के इस्तीफे के बाद राज्यपाल एनएन वोहरा ने राष्ट्रपति को भेजे गये एक पत्र में राज्य में केन्द्र का शासन लागू करने की सिफारिश की थी। इसकी एक प्रति केन्द्रीय गृह मंत्रालय को भी भेजी गयी थी।
राष्ट्रपति ने वोहरा कि सिफारिश को मंजूरी दे दी है, जिसके बाद आज तत्काल प्रभाव से प्रदेश में राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया है।
बिंदुओं में जानिए पूरा राजनीतिक घटनाक्रम
-मंगलवार को भाजपा महासचिव राम माधव के चौंकाने वाले इस ऐलान से पहले पार्टी आलाकमान ने जम्मू-कश्मीर सरकार में अपने मंत्रियों को आपातकालीन विचार-विमर्श के लिए नई दिल्ली बुलाया था। श्रीनगर और नई दिल्ली में बढ़ी राजनीतिक हलचल के बीच मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कुछ ही घंटे बाद राज्यपाल एन एन वोहरा को अपना इस्तीफा सौंप दिया।
-माधव ने प्रेस कॉन्फ्रेन्स में पत्रकारों को बताया, ‘‘राज्य की गठबंधन सरकार में बने रहना भाजपा के लिए जटिल हो गया था।’’ कश्मीर घाटी के हालात में सुधार नहीं होने के लिए भाजपा ने पीडीपी पर ठीकरा फोड़ा। माधव ने पिछले हफ्ते श्रीनगर के कड़ी सुरक्षा वाले प्रेस एनक्लेव इलाके में जानेमाने पत्रकार शुजात बुखारी की अज्ञात हमलावरों द्वारा की गई हत्या का भी जिक्र किया। उसी दिन ईद की छुट्टियों पर जा रहे थलसेना के जवान औरंगजेब को अगवा कर लिया गया था और फिर उनकी हत्या कर दी गई थी। ये दोनों घटनाएं ईद से दो दिन पहले हुईं। माधव ने कहा , ‘‘यह ध्यान में रखते हुए कि जम्मू - कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और राज्य में मौजूदा हालात पर काबू पाना है, हमने फैसला किया है कि राज्य में सत्ता की कमान राज्यपाल को सौंप दी जाए।’’ भाजपा नेता ने कहा कि आतंकवाद, हिंसा और कट्टरता बढ़ गई है और जीवन का अधिकार, स्वतंत्र अभिव्यक्ति का अधिकार सहित नागरिकों के कई मौलिक अधिकार खतरे में हैं। माधव ने कहा , ‘‘केंद्र ने घाटी के लिए सब कुछ किया। हमने पाकिस्तान की ओर से किए जा रहे संघर्ष - विराम उल्लंघन पर पूर्ण विराम लगाने की कोशिश की। पीडीपी अपने वादे पूरे करने में सफल नहीं रही। जम्मू और लद्दाख में विकास कार्यों को लेकर हमारे नेताओं को पीडीपी से काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा था।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम पीडीपी की मंशा पर सवाल नहीं उठा रहे, लेकिन कश्मीर में जीवन की दशा सुधारने में वे नाकाम रहे।’’ माधव ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से विचार-विमर्श करने के बाद गठबंधन सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया गया।
-श्रीनगर में अपनी राय जाहिर करते हुए महबूबा ने कहा कि पीडीपी ने हमेशा कहा है कि राज्य में बल प्रयोग वाली सुरक्षा नीति नहीं चलेगी और मेलमिलाप को ही अहमियत देना होगा। मुख्यमंत्री के तौर पर अपना इस्तीफा सौंपने के बाद पीडीपी नेता ने कहा, ‘‘हम जम्मू-कश्मीर में वार्ता और मेल-मिलाप की कोशिश जारी रखेंगे।’’ श्रीनगर में महबूबा ने इन आरोपों को खारिज करते हुए अपनी सरकार की उपलब्धियां गिनाई। महबूबा ने कहा, ‘‘हमने पत्थरबाजों के खिलाफ दर्ज 11,000 मामले वापस लिए, केंद्रीय गृह मंत्री (राजनाथ सिंह) द्वारा सभी विचारधारा के लोगों को बातचीत की पेशकश की गई और एकतरफा संघर्षविराम भी किया।’’
-राज्य विधानसभा में तीसरी सबसे बड़ी पार्टी नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुल्ला ने इस पूरे वाकये पर एक पंक्ति में अपनी बात कही, ‘‘पैरों के नीचे से गलीचा खींच लिए जाने की बजाय काश महबूबा मुफ्ती ने खुद ही इस्तीफा दे दिया होता।’’ नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर ने कहा कि भाजपा ने जिस समय पर यह फैसला किया है, उससे उन्हें हैरानी हुई है। अपनी पार्टी को राज्यपाल शासन लागू करने और फिर जल्द चुनाव कराने के पक्ष में बताते हुए उमर ने कहा, ‘‘हमें 2014 में जनादेश नहीं मिला था और 2018 में भी हमारे पास जनादेश नहीं है।’’
- उमर और कांग्रेस ने कहा है कि वे राज्य में सरकार बनाने के लिए किसी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे। भाजपा ने कहा कि वह राज्यपाल शासन लागू करने के पक्ष में है।
-जम्मू-कश्मीर के उप - मुख्यमंत्री एवं भाजपा नेता कविंदर गुप्ता ने दिल्ली में पत्रकारों से कहा कि उन्होंने और उनके मंत्रियों ने राज्यपाल और मुख्यमंत्री को अपने इस्तीफे सौंप दिए हैं।
-कांग्रेस के वरिष्ठ नेता गुलाम नबी आजाद ने यहां कहा कि भाजपा ने पीडीपी के साथ सरकार बनाकर ‘‘ बड़ी भूल ’’ की थी। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय पार्टी भाजपा को क्षेत्रीय पार्टी पीडीपी के साथ गठबंधन नहीं करना चाहिए था। आजाद ने पत्रकारों से कहा, ‘‘क्षेत्रीय पार्टियों को अपने बीच ही गठबंधन करने देना चाहिए था।
-दिसंबर 2014 में जम्मू-कश्मीर की 87 सदस्यीय विधानसभा के लिए हुए चुनावों में भाजपा को 25, पीडीपी को 28, नेशनल कांफ्रेंस को 15, कांग्रेस को 12 और अन्य को सात सीटें मिली थीं। इन चुनावों के दो महीने बाद पीडीपी और भाजपा ने राज्य में गठबंधन सरकार बना ली थी।
-भाजपा और पीडीपी ने विधानसभा चुनावों के दौरान एक-दूसरे के खिलाफ जमकर प्रचार किया था, लेकिन बाद में गठबंधन का एजेंडा तैयार कर इस उम्मीद से सरकार बनाई कि राज्य को हिंसा के कुचक्र से बाहर लाने में सहायता मिलेगी। लेकिन शासन पर इस गठबंधन की पूरी पकड़ कभी नहीं हो पाई और दोनों पार्टियां ज्यादातर मुद्दों पर असहमत रहीं। इस बीच, राज्य में सुरक्षा हालात बिगड़ते रहे।