इनके गांव पूरे देश के गांवों से अलग
थार आकर देखा कि बिश्नोई समाज के गांव भारत के अन्य गांवों से अलग हैं। इस समुदाय के अधिकतर परिवार गांव के बाहर खेतों में रहते है। स्थानीय भाषा में इसे ढाणी कहते हैं। इनका बुनियादी स्वरूप तो सामान्य गांवों जैसा ही होता है लेकिन ये समुदाय ढाणी में ही अपने खेतों में पशुपालन, वृक्षों व वन्य जीवों के लालन पालन करता है। ये लोग हिरण, चिंकारा और मोर को खासतौर से पालते हैं। इन जीवों को पारिवारिक सदस्य की तरह रखते हैं। इन ढाणियों में सभी परिवार वन्य जीवों के साथ घुल मिलकर रहते हैं। हर ढाणी में जीवों के खाने-पीने का खास प्रबंध होता है। यहां तक कि अनाथ हिरण के बच्चों को इस समुदाय की औरतें खुद स्तनपान करवा पालती हैं।
जिंदा हैं जल कुंड
बारिश के लिए तरसते थार की इन ढाणियों में पानी के लिए करीब 25,000 से 30,000 क्षमता के कुंड बने हुए हैं,जंहा बारिश का पानी एकत्रित होता है। सूखे के समय इस समुदाय की औरतें दूर स्थित कुएं, बावड़ियों से इन वन्य जीवों के लिए पानी की व्यवस्था करती हैं । यहां के लोग खुद भूखे, प्यासे रहकर भी पेड़ों और जीवों के लिए दाना पानी का प्रबंध करते हैं। यहां की सभी ढाणियों में पर्यावरण को साफ और बेहतर रखने के लिए हमेशा 10 -15 मिनट तक गोबर और घी से हवन किया जाता है। इस समुदाय में होली के दिन रंगों पर सामाजिक स्तर पर प्रतिबंध हैं, इस अवसर पर ये पर्यावरण शुद्धिकरण व संरक्षण के लिए सामुदायिक यज्ञ का आयोजन करते हैं। देखने में आया कि ये लोग नीले रंग के कपड़े नहीं पहनते हैं क्योंकि नील की खेती के बाद भूमि की उर्वराशक्ति खत्म हो जाती है। ये लोग भेड़, बकरी और मुर्गी भी नहीं पालते।
पॉलिथीन और प्लास्टिक पर पाबंदी
पर्यावरण एवं वन्यजीव संरक्षण संस्थान , जोधपुर के सचिव व पश्चिमी राजस्थान के प्रख्यात पर्यावरण प्रेमी खमुराम बिश्नोई 12 वर्षों से धार्मिक व पशु मेलों, स्कूल व कॉलेजों में पॉलिथीन और प्लास्टिक के कम से कम इस्तेमाल के लिए अभियान चलाए हुए हैं। खमुराम बिश्नोई अपनी टीम के साथ नुक्कड़ नाटक ,लाउडस्पीकर ,पर्चे बांटकर प्रकृति और पर्यावरण को बचाने का ये संदेश पहुंचाते हैं।
यह शादियों के मौके पर नवविवाहित जोड़े से वृक्षारोपण का वादा लेते हैं। खमुराम कहते है कि हमारा समुदाय इस प्रकृति को ही स्वर्ग मानता हैं।
क्षेत्र के निकट थार के एकलखोरी गांव के राणाराम बिश्नोई बताते है कि वह 70 के दशक से लेकर अब तक करीब 27,000 पौधें लगा चुके है। वह बताते है ‘ मैंने थार में कुओं व बावड़ियों से पानी लाकर इन पौधों को जिंदा रखा है।’ थार के निकटवर्ती बांवरला ढाणी के 22 वर्षीय इंजिनियरिंग छात्र मनोज बिश्नोई बताते है कि हमारे समुदाय का पर्यावरण संरक्षण में अभूतपूर्व योगदान हैं लेकिन फिर भी राजस्थान में वृक्षों की संख्या सबसे कम हैं, जिसके लिए हमें अन्य समुदायों को भी इसके लिए संकल्प दिलाने की जरूरत हैं।