छत्तीसगढ़ की रमन सरकार के खिलाफ इन दिनों आंदोलनों की झड़ी लगी हुई है। राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव के चार महीने पहले उन पर पिछले चुनाव में किए गए वादों को पूरा करने का दबाव बनाया जा रहा है। शिक्षाकर्मियों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, नर्सों और पुलिसकर्मियों के परिजनों के बाद अब छत्तीसगढ़ के सरकारी विभागों के अधिकारी और कर्मचारियों की नाराजगी सामने आ रही है। छत्तीसगढ़ कर्मचारी-अधिकारी फेडरेशन का कहना है कि घोषणा पत्र में किए गए अपने वादे सरकार ने अभी तक पूरे नहीं किए हैं।
शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष कुशल कौशिक ने आउटलुक को बताया कि अब राज्य में चुनावी आचार संहिता लगने में कुछ महीने ही शेष हैं। इसके बाद भी रमन सरकार उनकी मांगों को पूरा करने की दिशा में कोई कदम नहीं उठा रही है। 27 जून को प्रदेशभर के अधिकारी-कर्मचारियों ने सांकेतिक हड़ताल किया था। लेकिन अभी तक किसी भी तरह का आश्वासन नहीं मिलने की वजह से उन्होंने 12 जुलाई को प्रदेश के राजधानी रायपुर में महारैली करने का फैसला किया है।
ये हैं मांगें
इन मांगों में सातवें वेतनमान का 18 महीने का एरियर्स, महंगाई भत्ते में बढ़ोतरी, बकाया डीए का भुगतान और पेंशन की योग्यता 33 की जगह 25 साल करना शामिल है।
ये संगठन लेंगे भाग
राजपत्रित अधिकारी संघ, शिक्षक संघ, तृतीय एवं चतुर्थ वर्ग कर्मचारी संघ, शिक्षक फेडरेशन, वन कर्मचारी संघ, लिपिक संघ, मंत्रालयीन कर्मचारी संघ, डिप्लोमा संघ, शिक्षक कांग्रेस, पशु चिकित्सा संघ सहित अन्य कर्मचारियों और अधिकारियों के संगठनों द्वारा राज्य सरकार से अपना वादा पूरा करने की मांग की जा रही है।
मांगे नहीं मानी तो अनिश्चितकालीन हड़ताल
हड़ताल के ऐलान से पहले 12 जून को फेडरेशन के पदाधिकारियों ने प्रदेश के मंत्रियों, सांसदों एवं विधायकों को ज्ञापन सौंपकर किए गए वादों को प्रदेश में लागू कराने का अनुरोध किया था, लेकिन सरकार के किसी भी जनप्रतिनिधि ने घोषणा पत्र को प्रदेश में लागू करने सकारात्मक आश्वासन नहीं दिया। जिसकी वजह से 27 जून को हड़ताल का फैसला लिया गया था। कर्मचारियों का कहना है कि सरकार यदि मांगों को नहीं मानती है तो जुलाई से सभी अधिकारी-कर्मचारी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने के लिए विवश होंगे। शिक्षक संघ के प्रांताध्यक्ष कुशल कौशिक का कहना है कि वे राज्य सरकार से सिर्फ इतना चाहते हैं कि जो वादा 2013 में उन्होंने कर्मचारियों से किया गया था उसका कृवान्वयन किया जाए। उन्होंने कहा कि ये सच है कि रमन सरकार कर्मचारी-अधिकारियों के लिए बहुत काम करती है लेकिन वादा निभाने में पिछलग्गू रहती है।
चुनाव से पहले वादों की याद..
रमन सरकार के लिए यह साल चुनावी वादों को निभाने का साल है। इस ओर कदम बढ़ातें हुए उन्होंने शिक्षाकर्मियों को तो तोहफा दे दिया लेकिन पुलिस परिजनों के आंदोलन पर उनकी बेरुखी अब भी बनी हुई है। ऐसे में सरकारी अधिकारी-कर्मचारियों के आंदोलन पर वे क्या फैसला लेते हैं उनकी राजनीतिक सूझ और चुनावी रणनीति पर निर्भर करेगा।