देहरादून। सीएम त्रिवेंद्र सिंह रावत के इस्तीफा देने के बाद ‘अभिशप्त बंगला’ फिर से सुर्खियों में है। इस बंगले के साथ यह मिथक जुड़ा है कि इसमें रहने वाला मुख्यमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाता है। इस ‘अभिशप्त बंगले’ को अपना आशियाना बनाने वाले चार मुख्यमंत्रियों को वक्त से पहले ही पूर्व होना पड़ा है।
स्व. एनडी तिवारी के कार्य़काल में मुख्यमंत्री के रहने के लिए एक आलीशान बंगले के निर्माण हुआ था। 2007 में कांग्रेस सत्ता से बाहर हो गई और भाजपा ने सरकार बनाई। इस सरकार के मुखिया बीसी खंडूड़ी ने इस नए बंगले को अपना आशियाना बनाया। लेकिन ढाई साल के अंदर ही उन्हें पूर्व होना पड़ा। इसके बाद डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक सीएम बने और इसी बंगले में रहने लगे। लेकिन उन्हें भी वक्त से पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री का तमगा मिल गया।
2012 में कांग्रेस फिर सत्ता में आई और विजय बहुगुणा सीएम बने। उस समय तक इस आलीशान बंगले की चर्चा ‘अभिशप्त बंगले’ के रूप में होने लगी थी। अपने अगल अंदाज के लिए पहचान रखने वाले बहुगुणा ने इसी बंगले में रहना शुरू कर दिया। इस ‘अभिशप्त बंगले’ ने अपना रंग दिखाया और बहुगुणा भी समय से पहले ही पूर्व सीएम का जमात में शामिल हो गए। इसके बाद सीएम बने हरीश रावत ने इस ‘अभिशप्त बंगले’ की तरफ झांका भी नहीं और बीजापुर गेस्ट हाउस के एक हिस्से को अपना आशियाना बनाए रखा।
2017 में भाजपा की सरकार के मुखिया बने त्रिवेंद्र सिंह रावत। उस समय भी सवाल उठा कि क्या त्रिवेंद्र इस बंगले में रहेंगे। लेकिन त्रिवेंद्र ने इसी बंगले को आशियाना बनाया। तमाम पूजा की गईं और वास्तुदोष दूर करने के लिए गो माता को रखा गया। वक्त गुजरने के साथ ही यह लग रहा था कि शायद इस ‘अभिशप्त बंगले’ का अभिशाप खत्म हो गया है। लेकिन आखिरकार त्रिवेंद्र को भी वक्त से पहले ही पूर्व मुख्यमंत्री बनना पड़ गया।