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सबरीमाला पर केरल में बवाल जारी, मुख्यमंत्री ने आरएसएस को ठहराया हिंसा के लिए जिम्मेदार

केरल के सबरीमाला मंदिर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा महिलाओं के प्रवेश की अनुमति के बाद बुधवार को पहली बार...
सबरीमाला पर केरल में बवाल जारी, मुख्यमंत्री ने आरएसएस को ठहराया हिंसा के लिए जिम्मेदार

केरल के सबरीमाला मंदिर में सुप्रीम कोर्ट द्वारा महिलाओं के प्रवेश की अनुमति के बाद बुधवार को पहली बार इसके कपाट खुले। इस दौरान यहां काफी हंगामा हुआ और हजारों महिलाओं ने मंदिर में प्रवेश की नाकाम कोशिशें की। मंदिर के श्रद्धालुओं ने उन्हें रोका, वहां मारपीट हुई और काफी हिंसा भी हुई। मंदिर में प्रवेश को लेकर हुई हिंसा के लिए राज्य के मुख्यमंत्री पी. विजयन ने आरएसएस को जिम्मेदार ठहराया है, वहीं भाजपा ने राज्य की सरकार पर मंदिर की छवि धूमिल करने का आरोप लगाया।

समाचार एजेंसी पीटीआइ के अनुसार केरल के मुख्यमंत्री ने सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक पर लिखा कि “आरएसएस भगवान अयप्पा के पूजा स्थल को आंतक द्वारा नष्ट करने की कोशिश कर रहा है। श्रृद्धालुओं को मंदिर में जाने से रोककर और भय दिखाकर उन्हें वापस भेजना मंदिर को नष्ट करने की आरएसएस की योजना का ही भाग है।“
जबकि भाजपा ने सीपीएम नेतृत्व वाली राज्य की एलडीएफ सरकार पर अयप्पा मंदिर की छवि धूमिल करने का आरोप लगाया है।

बुद्धवार को हुआ था टकराव, जारी है कोशिश
मंदिर में अंदर जाने की जद्दोजहद के बाद महिलाएं बुधवार को मंदिर की सीढ़ियों तक पहुंच गई थीं। अब गुरुवार को कोशिश इससे भी आगे जाने की हो रही है। लेकिन घमासान थमने का नाम नहीं ले रहा है। गुरुवार को न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्टर सुहासनी राज पंबा की पहाड़ियों से होते हुए मंदिर की तरफ पहुंचने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन उन्हें लौटा दिया गया। वह मंदिर की ओर जाने की कोशिश कर रही थीं, लेकिन प्रदर्शनकारियों ने उन्हें रोक दिया था। अब आज वह कड़ी सुरक्षा के बीच पहाड़ी के रास्ते से मंदिर जा रही थीं। लेकिन उन्हें वापस जाने को कहा गया।

बंद का आह्वान

अब सबरीमाला संरक्षण समिति ने गुरुवार को 12 घंटे राज्यव्यापी बंद की घोषणा की है। भाजपा, अंतरराष्ट्रीय हिंदू परिषद और अन्य स्थानीय संगठनों ने इस बंद को अपना समर्थन दिया है। यह बंद श्रद्धालुओं के खिलाफ पुलिस कार्रवाई के विरोध में बुलाया गया है। वहीं, कांग्रेस ने कहा है कि वह इस बंद में शामिल तो नहीं होगी लेकिन पूरे राज्य में विरोध प्रदर्शन करेगी।

कई इलाकों में धारा 144 लागू

राज्य के निल्लकल, पंपा, एल्वाकुलम, सन्निधनम में धारा-144 लागू कर दी गई है। इस इलाके में एकसाथ चार से ज्यादा लोग जमा नहीं हो सकते हैं।

क्या है कोर्ट का फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि हर उम्र वर्ग की महिलाएं अब मंदिर में प्रवेश कर सकेंगी।

सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका में उस प्रावधान को चुनौती दी गई थी जिसके तहत मंदिर में 10 से 50 वर्ष आयु की महिलाओं के प्रवेश पर अब तक रोक थी। कहा गया कि अगर महिलाओं का प्रवेश इस आधार पर रोका जाता है कि वे मासिक धर्म के समय अपवित्र हैं तो यह भी दलितों के साथ छुआछूत की तरह है। सुप्रीम कोर्ट ने  4-1 के बहुमत से फैसला दिया।

सुनवाई के दौरान केरल त्रावणकोर देवासम बोर्ड की ओर से पेश सीनियर वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा था कि दुनिया भर में अयप्पा के हजारों मंदिर हैं, वहां कोई बैन नहीं है लेकिन सबरीमाला में ब्रह्मचारी देव हैं और इसी कारण तय उम्र की महिलाओं के प्रवेश पर बैन है, यह किसी के साथ भेदभाव नहीं है और न ही जेंडर विभेद का मामला है।

'हम सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे: मुख्यमंत्री

मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने मंदिर में प्रवेश से श्रद्धालुओं को रोकने की कोशिश करने वालों को कड़ी चेतावनी दी है। उन्होंने कहा, 'हम सभी की सुरक्षा सुनिश्चित करेंगे। किसी को कानून हाथ में लेने की इजाजत नहीं दी जाएगी। मेरी सरकार सबरीमला के नाम पर कोई हिंसा नहीं होने देगी।'

मुख्यमंत्री ने कहा, 'श्रद्धालुओं को सबरीमाला जाने से रोकने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।' उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर समीक्षा की मांग नहीं करने के सरकार के फैसले पर फिर से विचार किए जाने की संभावना खारिज कर दी। विजयन ने कहा, 'हम सुप्रीम कोर्ट के कहे का पालन करेंगे।'

कौन हैं भगवान अयप्पा, क्या है इस मंदिर की विशेषता

पौराणिक कथाओं के अनुसार, अयप्पा को भगवान शिव और मोहिनी (विष्णु जी का एक रूप) का पुत्र माना जाता है। इनका एक नाम हरिहरपुत्र भी है। हरि यानी विष्णु और हर यानी शिव, इन्हीं दोनों भगवानों के नाम पर हरिहरपुत्र नाम पड़ा। इनके अलावा भगवान अयप्पा को अयप्पन, शास्ता, मणिकांता नाम से भी जाना जाता है। इनके दक्षिण भारत में कई मंदिर हैं उन्हीं में से एक प्रमुख मंदिर है सबरीमाला। इसे दक्षिण का तीर्थस्थल भी कहा जाता है।

सबरीमाला भारत के ऐसे कुछ मंदिरों में से है जिसमें सभी जातियों के स्त्री (10-50 उम्र से अलग) और पुरुष दर्शन कर सकते हैं। यहां आने वाले सभी लोग काले कपड़े पहनते हैं। यह रंग दुनिया की सारी खुशियों के त्याग को दिखाता है। इसके अलावा इसका मतलब यह भी होता है कि किसी भी जाति के होने के बाद भी अयप्पा के सामने सभी बराबर हैं।

माना जाता है कि 1500 साल पहले से इस मंदिर में महिलाओं का जाना वर्जित था। खासकर 15 साल से ऊपर की लड़कियां और महिलाएं इस मंदिर में नहीं जा सकतीं। यहां सिर्फ छोटी बच्चियां और बूढ़ी महिलाएं ही प्रवेश कर सकती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि इस मंदिर में पूजे जाने वाले भगवान अयप्पा ब्रह्मचारी और तपस्वी थे।

हालांकि कुछ लोगों का कहना था कि मंदिर में 10 से 50 साल तक की महिलाओं के प्रवेश न होने के पीछे कारण उनके पीरियड्स हैं।

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