अदालत ने टिप्पणी की कि इस्लाम में तलाक केवल अति आपात स्थिति में ही देने की अनुमति है। जब मेल-मिलाप के सारे प्रयास विफल हो जाते हैं तो दोनों पक्ष तलाक या खोला के माध्यम से शादी खत्म करने की प्रक्रिया की तरफ बढ़ते हैं।
अदालत ने फैसले में कहा कि मुस्लिम पति को स्वेच्छाचारिता से, एकतरफा तुरंत तलाक देने की शक्ति की धारणा इस्लामिक रीतियों के मुताबिक नहीं है। यह आम तौर पर भ्रम है कि मुस्लिम पति के पास कुरान के कानून के तहत शादी को खत्म करने की स्वच्छंद ताकत है।
अदालत ने कहा कि पूरा कुरान पत्नी को तब तक तलाक देने के बहाने से व्यक्ति को मना करता है जब तक वह विश्वासनीय और पति की आज्ञा का पालन करती है। इसने कहा, इस्लामिक कानून व्यक्ति को मुख्य रूप से शादी तब खत्म करने की इजाजत देता है जब पत्नी का चरित्र खराब हो, जिससे शादीशुदा जिंदगी में नाखुशी आती है। लेकिन गंभीर कारण नहीं हों तो कोई भी व्यक्ति तलाक को उचित नहीं ठहरा सकता चाहे वह धर्म की आड़ लेना चाहे या कानून की।
अदालत ने 23 वर्षीय महिला हिना और उम्र में उससे 30 वर्ष बड़े पति की याचिका खारिज करते हुए यह टिप्पणी की। हिना के पति ने अपनी पत्नी को तीन बार तलाक देने के बाद उससे शादी की थी। पश्चिम उत्तरप्रदेश के बुलंदशहर के रहने वाले दंपति ने अदालत का दरवाजा खटखटाकर पुलिस और हिना की मां को निर्देश देने की मांग की थी कि वे याचिकाकर्ताओं का उत्पीड़न बंद करें और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित की जाए। (एजेंसी)