साथ ही उच्चतम न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश तीरथ सिंह ठाकुर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने फिलहाल उन वाणिज्यिक वाहनों के दिल्ली में प्रवेश पर रोक लगा दी है जिनका गंतव्य राजधानी नहीं है। पीठ ने कहा कि दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में अब सिर्फ सीएनजी टैक्सियों के परिचालन की ही इजाजत होगी। इसके साथ ही न्यायालय ने दिल्ली की सड़कों का इस्तेमाल करने वाले वाणिज्यिक ट्रकों पर लगाए गए पर्यावरण हर्जाना शुल्क के बढ़ाकर दोगुना कर दिया है। अब यह शुल्क बढ़कर 1400 रूपए और 2600 रूपए हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 9 अक्तूबर को प्रदूषण के चिंताजनक स्तर को देखते हुए दिल्ली में प्रवेश करने वाले वाणिज्यिक वाहनों पर 1 नवंबर से 700 रूपए और 1300 रूपए की दर से पर्यावरण हर्जाना शुल्क लगाने का आदेश दिया था। अब हल्के वाहनों को 1400 रूपए और तीन एक्सेल वाहनों को 2600 रूपए शुल्क देना होगा। यह शुल्क टोल टैक्स के अतिरिक्त है।
न्यायालय ने स्पष्ट किया कि डीजल वाहनों के पंजीकरण पर लगाया गया प्रतिबंध 1 जनवरी, से 31 मार्च, 2016 तक प्रभावी रहेगा, लेकिन 2000 सीसी से कम इंजन की क्षमता वाली यात्री कारें इसमें शामिल नहीं हैं। न्यायाधीशों ने पर्यावरणविद अधिवक्ता महेश चन्द्र मेहता की 1984 से लंबित जनहित याचिका में न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे के इस कथन से सहमति व्यक्त की कि दिल्ली की हवा को प्रदूषित करने में डीजल गाड़ियों की बहुत अधिक भूमिका रही है।
न्यायालय ने प्राधिकारियों को यह निर्देश भी दिया कि नगर निगम का कचरा जलाने और निर्माण स्थलों की गतिविधियों पर सख्ती से पाबंदियां लगाई जाएं। इससे पहले, न्यायालय ने दिल्ली में तेजी से बढ़ रहे प्रदूषण को बहुत खतरनाक बताते हुए इससे निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण अपनाने की वकालत की थी। शीर्ष अदालत ने कहा था कि असहनीय स्तर तक पहुंच रहे प्रदूषण स्तर की वजह से दिल्ली दुनिया के सबसे अधिक प्रदूषित शहर के रूप में नाम बदनाम हो रही है।