मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की अध्यक्षता में शनिवार सुबह हुई एक उच्च स्तरीय बैठक के बाद उपायुक्त एस रॉय बिस्वास, निरीक्षक मनीष पुरी और यूडीसी अनिल यादव को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया। उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि इस मामले को सीबीआई को सौंपा जाएगा। सिसोदिया ने ट्वीट के जरिये जानकारी दी, यह मामला सीबीआई को सौंपा जायेगा। यह सरकार किसी भी स्तर पर भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करेगी।
सरकार के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि कल शाम कुछ ऑटो रिक्शा चालकों ने मुख्यमंत्री को संदेश भेजकर अनियमितताओं की जानकारी दी थी। जिसके बाद केजरीवाल ने राय से संपर्क किया तो उन्होंने बताया कि यह मामला पहले से ही उनके संज्ञान में है। अधिकारी ने कहा कि परिवहन मंत्री ने पहले ही मामले की प्रारंभिक जांच करवा ली थी और उसमें दो तरह की अनियमितताएं सामने आई थीं।
दिल्ली के परिवहन मंत्री गोपाल राय ने बताया, 23 दिसंबर को मुझे परिवहन विभाग के बुराड़ी प्राधिकरण में ऑटो रिक्शा चालकों को आशय पत्र जारी करने में अनियमितता से जुड़ी कुछ शिकायतें मिली थीं। इसके बाद अगले दिन मैंने संयुक्त आयुक्त (परिवहन) और अन्य वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की और मामले की जांच का आदेश दिया। प्रारंभिक जांच में पाया गया कि परिवहन मंत्री के आदेश के बावजूद आशय पत्र कालानुक्रमिक क्रम में सौंपने के बजाए खास चालकों को सौंपे गए और पत्रों को आवेदनकर्ता के बजाय किसी तीसरे आदमी या अनाधिकृत व्यक्ति को दे दिया गया। उन्होंने बताया कि इसके बाद मुख्यमंत्री ने अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों और सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ आज बैठक की। इसके बाद परिवहन विभाग द्वारा अब तक जारी किए गए 932 आशय पत्रों को रद्द करते हुए इन अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया। साथ ही आशय पत्र जारी करने के काम पर भी फिलहाल रोक लगा दी गई है।
बता दें कि सम विषम योजना को लागू करने के उद्देश्य से सरकार ने 10,000 नए ऑटो परमिट को दिल्ली में मंज़ूरी दी थी, जिसे जारी करने में अधिकारियों पर धांधली का आरोप है। भाजपा ने आरोप लगाया है कि आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं को परमिट दिया जा रहा है। उधर अधिकारियों के निलंबन की खबर मिलते ही विपक्ष ने सरकार और आम आदमी पार्टी पर हमला करते हुए दिल्ली के परिवहन मंत्री गोपाल राय का इस्तीफा मांगा है। भाजपा ने राय पर आरोप लगाते हुए कहा कि इस घोटाले के मास्टरमाइंड वहीं हैं। भाजपा की ओर से दावा किया गया कि नए परमिट जारी करने में 20 से 25 हजार रुपये तक की रिश्वत ली गई है। हालांकि दिल्ली सरकार ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है।