सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कलकत्ता हाईकोर्ट की खंडपीठ के उस फैसले को बरकरार रखा है जिसमें अदालत ने हर्षवर्धन लोढ़ा को उनकी अध्यक्षता वाली दो कंपनियों विंध्या टेलीलिंक्स लिमिटेड और बिड़ला केबल लिमिटेड का पुन: निदेशक बनाए जाने को मंजूरी दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला तीन एसएलपी को खारिज करते हुए दिया। अदालत ने इस आदेश के अनुसार ही इन कंपनियों की पिछले साल हुई आम बैठकों में पारित किए गए प्रस्तावों को घोषित करने व उन्हें प्रभावी तरीके से अमल में लाए जाने का आदेश भी दिया गया था।
इस बारे में लोढ़ा के लीगल काउंसलर देबंजन मंडल ने बताया कि यह फैसला एक बड़ी जीत है, एक ही सप्ताह में यह दूसरी सफलता मिली है और उन लोगों के प्रयासों को झटका भी है जो इन कंपनियों के कामकाज को बाधित करने का प्रयास कर रहे हैं। ये प्रयास भी विशेष तौर पर इन कंपनियों की वार्षिक आम बैठकों से ठीक पहले किए जा रहे हैं।
प्रियवंदा बिड़ला की अंतिम वसीयत के लिए बिड़लाज ने प्रतिवादियों के जरिए तीनों कंपनियों की वार्षिक आम सभाओं में हुए मतदान के परिणामों की घोषणा पर हाईकोर्ट की सिंगल बेंच से स्टे लिया था। उन्होंने जिन प्रस्तावों को विवादित किया था उनमें लोढ़ा को विंध्या टेलीलिंक्स लिमिटेड व बिड़ला केबल लिमिटेड का फिर से निदेशक बनाए जाना भी शामिल था। उन्होंने बिड़ला कॉरपोरेशन के शेयरधारकों को किए जाने वाले लाभांश का भुगतान भी रुकवा दिया था। खंडपीठ ने सिंगल बेंच के स्टे आदेश को खारिज कर दिया।
मंडल ने कहा कि सोमवार के फैसले के साथ इसे शीर्ष अदालत में सही तरीके से निपटाया गया है कि प्रोबेट कोर्ट द्वारा क्षेत्राधिकार के मुद्दे का फैसला किए बिना तीसरे पक्ष वाली कंपनियों के खिलाफ कोई भी आदेश जारी नहीं किया जा सकता है।
सोमवार 11 मई को, डिवीजन बेंच के फैसले को बरकरार रखा था और इसे चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया। न्यायमूर्ति डी.वीई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति एम.आर. शाह ने कहा कि डिवीजन बेंच के फैसले में हस्तक्षेप करने का कोई कारण नहीं था और यह दोहराते हुए कहा कि एकल न्यायाधीश प्रोबेट अदालत को यह निर्धारित करना होगा कि पहले स्थान पर ये उसका अधिकार क्षेत्र है या नहीं।