तमिलनाडु की ऑल इंडिया अन्ना द्रमुक मुनेत्र कझगम (एआईएडीएमके) सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के सात दोषियों को रिहा किए जाने के लिए राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित से सिफारिश करने का फैसला लिया है। राज्य सरकार के फैसले के मुताबिक, सभी सात दोषियों को मुक्त करने के लिए राज्यपाल से सिफारिश की जाएगी। केंद्र सरकार ने राजीव के हत्यारों को छोड़ने के फैसले का विरोध किया था।
कैबिनेट मीटिंग में हुआ फैसला
एएनआई के मुताबिक, तमिलनाडु सरकार में मंत्री डी जयकुमार ने बताया, 'मुख्यमंत्री ई के पलानीसामी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट मीटिंग में फैसला लिया गया है कि राज्य सरकार राज्यपाल से सिफारिश करेगी कि वह राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को रिहा करने का आदेश दें।'
सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल से क्या कहा था
सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल से राजीव गांधी हत्याकांड में दोषी करार दिए गए एजी पेरारिवलन की दया याचिका पर विचार करने को कहा था। जस्टिस रंजन गोगोई, नवीन सिन्हा और केएम जोसेफ की खंडपीठ ने केंद्र सरकार की याचिका को निपटाते हुए यह निर्देश दिया था।
केंद्र सरकार ने दोषियों की रिहाई का किया था विरोध
इससे पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि वह राजीव गांधी हत्याकांड के सात दोषियों को रिहा करने के तमिलनाडु सरकार के प्रस्ताव का समर्थन नहीं करती है, क्योंकि इन मुजरिमों की सजा की माफी से 'खतरनाक परंपरा' की शुरुआत होगी और इसके 'अंतरराष्ट्रीय नतीजे' होंगे।
डीएमके ने भी किया था रिहाई का समर्थन
द्रविड़ मुनेत्र कझगम (डीएमके) के अध्यक्ष एम के स्टालिन ने भी कहा था कि राजीव गांधी हत्याकांड में सजा काट रहे एजी पेरारिवलन सहित सभी दोषियों को तत्काल रिहा करने के लिए तमिलनाडु सरकार को राज्यपाल से सिफारिश करनी चाहिए।
आत्मघाती विस्फोट में हुई थी राजीव गांधी की हत्या
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की 21 मई, 1991 को तमिलनाडु के श्रीपेरंबदूर में एक चुनाव सभा के दौरान एक आत्मघाती महिला ने विस्फोट करके हत्या कर दी थी। बाद में इस महिला की पहचान धनु के रूप में हुई। इस विस्फोट में धनु सहित 14 अन्य लोग भी मारे गए थे।
ये लोग हैं जेल में बंद
इस हत्याकांड के सिलसिले में वी श्रीहरण उर्फ मुरूगन, टी सतेन्द्रराजा उर्फ संथम, ए जी पेरारिवलन उर्फ अरिवु, जयकुमार, राबर्ट पायस, पी रविचन्द्रन और नलिनी 25 साल से जेल में बंद हैं। शीर्ष अदालत ने 18 फरवरी, 2014 को तीन मुजरिमों- मुरुगन, संथम और पेरारिवलन की मौत की सजा उम्रकैद में तब्दील कर दी थी क्योंकि उनकी दया याचिकाओं पर फैसला लेने में अत्यधिक विलंब हुआ था।