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टेपकांड से ध्यान भटकाने का पैंतरा

झीरम कांड की सीबीआई जांच के आदेश से उठे नए सवाल
टेपकांड से ध्यान भटकाने का पैंतरा

विद्याचरण शुक्ल, नंदकुमार पटेल और महेंद्र कर्मा समेत कांग्रेस के 30 नेताओं की झीरम घाटी में हुई नक्सल हत्या की सीबीआई जांच का एलान अंतत: तीन साल बाद सरकार ने कर ही दिया। अब राजनीतिक गलियारों में यह आकलन चल रहा है कि इस घोषणा से किसका नफा हुआ और किसका नुकसान। अंतागढ़ टेपकांड के संदर्भ में इस घोषणा को महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पिछले तीन महीने से राज्य के राजनीतिक गलियारे में अंतागढ़ टेपकांड गूंज रहा है। इसमें कथित रूप से कांग्रेस नेता अजीत जोगी, उनके विधायक पुत्र अमित जोगी और मुख्यमंत्री के दामाद डॉ. पुनीत गुप्ता की आवाज है। यही वजह है कि भाजपा की सत्ता में डॉ. रमनसिंह का विरोधी गुट अंदरखाने इस मामले को हवा दे रहा है। वहीं कांग्रेस ने जोगी के खिलाफ कार्रवाई कर भाजपा पर यह दबाव बनाने की कोशिश की है कि भाजपा भी कार्रवाई करे।

 

गौरतलब है कि 2014 में अंतागढ़ उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार ने अंतिम समय में नाम वापस ले लिया था। पहली बार ऐसा हुआ कि बिना कांग्रेस प्रत्याशी के चुनाव हुआ और भाजपा भारी मतों से जीती। इस पूरे राजनीतिक षड्यंत्र का पर्दाफाश एक जनवरी 2016 को दिल्ली के अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने किया। अखबार ने खबर के साथ वह टेप भी जारी किया, जिसमें जोगी परिवार और डॉ. पुनीत गुप्ता के बीच डील हुई। लगभग 15 करोड़ रुपये की यह डील कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार को मैदान से हटाने के लिए हुई। इस खुलासे के बाद प्रदेश कांग्रेस कमेटी ने विधायक अमित जोगी को कांग्रेस से निष्कासित कर दिया और अजीत जोगी के निष्कासन की अनुशंसा एआईसीसी को भेज दी। दोनों पिता-पुत्र फिलहाल कांग्रेस की मुख्यधारा से बाहर हैं।

 

झीरम घाटी कांड में 25 मई 2012 को कांग्रेस की परिवर्तन यात्रा पर देश के सबसे बड़े नक्सल हमले में कांग्रेस के बड़े नेताओं समेत 30 लोग मारे गए थे। हमले के तत्काल बाद अजीत जोगी राज्यपाल के पास पहुंचे और उन्होंने मामले की न्यायिक जांच की मांग की थी। दरअसल, सुकमा में परिवर्तन यात्रा की सभा में भाग लेने अजीत जोगी हेलीकॉप्टर से गए और वापस अपने घर पहुंचते ही उन्हें खबर मिली कि परिवर्तन यात्रा पर नक्सली हमला हुआ है तो वह सीधे राज्यपाल के पास पहुंच गए थे। जोगी की इसी जल्दबाजी के चलते इस हमले में जोगी की भूमिका पर सवाल उठने लगे थे।

 

दरअसल, 2004 में एनसीपी के कोषाध्यक्ष रामअवतार जग्गी की हत्या का आरोप अमित जोगी पर लगा। सीबीआई जांच हुई। अमित लंबे समय तक जेल में रहे। जोगी परिवार की इस राजनीतिक पृष्ठभूमि के चलते नंदकुमार पटेल के विधायक बेटे विधायक उमेश पटेल और महेंद्र कर्मा के बेटे दीपक कर्मा झीरम की घटना को राजनीतिक षड्यंत्र मानते हुए सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे। हालांकि सरकार ने उसी समय न्यायिक जांच की घोषणा  की और 27 मई को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एनआईए  से जांच की घोषणा कर दी। चूंकि उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी और वह उम्मीद कर रही थी कि राज्य से यदि सीबीआई जांच की सिफारिश आए तो वह कराने तैयार है लेकिन ऐसा नहीं हुआ। एनआईए ने 10 आरोपियों को जेल भेजकर इस तर्क के साथ चालान पेश कर दिया कि नए तथ्य मिलने पर फिर से पूरक चालान पेश कर दिया जाएगा।

 एनआईए सूत्रों के अनुसार, कई दिनों से चल रही जांच का कोई नतीजा सामने नहीं आया है। इसलिए टीम छत्तीसगढ़ से रवाना हो गई। एनआईए की जांच में किसी राजनीतिक षड्यंत्र का खुलासा नहीं हुआ, क्योंकि एनआईए के जांच बिंदु तात्कालिक घटनाक्रम पर आधारित थे। पिछले एक साल से पीडि़तों के परिजन इस घटना को भूलने की कोशिश कर ही रहे थे कि अचानक अंतागढ़ टेपकांड सामने आ गया। इसके बाद सरकार पर झीरम की जांच का कोई दबाव नहीं था लेकिन अंतागढ़ टेपकांड में जब जोगी के साथ सरकार की सलिंप्तता सामने आई तो सरकार पर दबाव बना। हालांकि गृहमंत्री अजय चंद्राकर ने आउटलुक से कहा कि सरकार पर दबाव नहीं था। उन्होंने एनआईए और न्यायिक जांच आयोग की जांच पर टिप्पणी से इनकार करते हुए कहा कि जांच एजेसियों काम में सरकार हस्तक्षेप नहीं करेगी। चूंकि सरकार ने सीबीआई जांच की सिफारिश की है तो संबंधित पक्ष अपनी बात सीबीआई के सामने रख सकता है। जोगी विरोधी माने जाने वाले नेता प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष एवं विधायक भूपेश बघेल का कहना है कि हमने अंतागढ़ टेपकांड और झीरम घाटी हत्याकांड दोनों की सीबीआई जांच की मांग की थी। टेपकांड  को भी सीबीआई को सौंपा जाना चाहिए। उन्होंने एनआईए की जांच पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि इस एजेंसी ने उस घटना में घायल लोगों तक से पूछताछ नहीं की तो कैसे पता चलेगा कि यह राजनीतिक षड्यंत्र है या नहीं। घायल कांग्रेस नेत्री फूलो नेताम से जांच एजेंसी ने बात नहीं की। 

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