रांची। नियोजन नीति या कहें नियुक्ति नियमावली में कतिपय भाषाओं को किनारे किये जाने की आग फिर सुलगने लगी है। विधानसभा में नमाज कक्ष की तरह इसकी आवाज भी बिहार तक पहुंच गई है। मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के बारे में माना जाता है कि वे सामान्यत: बहुत नपा तुला और संयमित बयान देते हैं। भाषा पर नियंत्रण रखते हैं। मगर ताजा विवाद मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन के वक्तव्य को लेकर ही है। ऐसे में उनका ताजा बयान क्या सोची समझी राजनीति का हिस्सा है, सवाल तैर रहा है।
एक मीडिया हाउस के साथ साक्षात्कार में हेमन्त सोरेन ने कहा कि हम झारखंड का बिहारीकरण नहीं होने देंगे। महगी और भोजपुरी सूबे की क्षेत्रीय भाषा न होकर बाहरी भाषा है। आयातित भाषा है। डोमिनेट करने वालों की भाषा है। यहां के लोग कमजोर लोग थे, उनके साथ खड़े होने के चक्कर में उन लोगों की भाषा बोलने लगे। अन्यथा गांवों में ये भाषा नहीं बोलते। यह झारखंड की भाषा नहीं है। झारखंड आंदोलन के दौरान आंदोलनकारियों की छाती पर पैर रखकर, महिलाओं की इज्जज लूटते समय भोजपुरी भाषा में गाली दी जाती थी। आदिवासियों ने अलग राज्य की जो लड़ाई लड़ी है वह अपनी क्षेत्रीय भाषा के बूते न कि हिंदी और भोजपुरी के बूते। हेमन्त सोरेन के इस वक्तव्य के बाद विरोधियों का आक्रमण शुरू हो गया है।
अगस्त के पहले सप्ताह में संशोधित नियुक्ति निययमावली जारी करते हुए हिंदी, अंग्रेजी, संस्कृत को किनारे कर दिया गया था। राज्य की एक दर्जन क्षेत्रीय भाषाओं को शामिल किया गया मगर भोजपुरी, मैथिली, मगही, अंगिका आदि को जगह नहीं मिली। तब भाजपा ने इसका कड़ा विरोध किया तो कांग्रेस के भी कुछ विधायकों ने मैथिली, भोजपुरी, मगही, अंगिका आदि भाषाओं को शामिल करने की मांग कर दी थी। हेमन्त सरकार में मंत्री जेएमएम के ही मिथिलेश ठाकुर, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी की सचिव दीपिका पांडेय सिंह ने भी भोजपुरी, मगही, मैथिली जैसी भाषाओं को शामिल करने का आग्रह किया था। मिथिलेश ठाकुर ने तो विधिवत मुख्यमंत्री को छह अगस्त को पत्र लिखकर मगही, भोजपुरी, अंगिका आदि भाषाओं को भी झारखंड राज्य कर्मचारी आयोग की परीक्षाओं के लिए क्षेत्रीय भाषा की सूची में शामिल करने का आग्रह किया था। विधानसभा में भी नियोजन नीति पर सवाल के दौरान यह बात उठी थी। मगर सरकार ने कह दिया था कि इन भाषाओं को शामिल करने का कोई विचार नहीं है। खुद झारखंड के कांग्रेस प्रभारी आरपीएन सिंह ने भी कहा था कि नियोजन नीति-नियमावली में कुछ त्रुटियां रह गई हैं। संगठन के लोगों, कांग्रेस के विधायकों ने जो आपत्ति जतायी है, सुझाव दिया है प्रदेश अध्यक्ष और विधायक दल के नेता मुख्यमंत्री से इस पर बात करेंगे। निदान निकाला जायेगा, सरकार कार्रवाई करेगी। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर का मानना है कि जब यहां की भाषा भोजपुरी, अंगिका, मगही है तो इसमें कहीं किसी को कोई दिक्कत नहीं तो इस भाषा को शामिल करना ही चाहिए था। संवादहीनता के कारण यह स्थिति पैदा हुई थी जिसकी वजह अधिकारी थे।
बहरहाल हेमन्त सोरेन के ताजा बयान के बाद भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास ने कहा कि भोजपुर-मगही भाषी लोगों के प्रति मुख्यमंत्री का यह बयान दुखद है। उनके गठबंधन को वोट देने वाले लोगों को आज दुख जरूर हो रहा होगा। हेमन्त जी को मगही और भोजपुरी बाहरी भाषा लगती है मगर उर्दू अपनी लगती है। भोजपुरी और मगही से झारखंड का बिहारीकरण हो रहा है तो क्या उर्दू से झारखंड के इस्लामीकरण की तैयारी है। भाजपा विधायक, प्रवक्ता कुणाल षाडंगी ने ट्वीट कर कहा है कि-- खुला प्रश्न सभी गठबंधन दलों से, साक्षात्कार में मुख्यमंती ने भोजपुरी, मगही भाषाएं बोलने वालों के लिए जो विचार हैं क्या वे सहमत हैं ? जिनसे राजधर्म की उम्मीद की जाती है क्या किसी विशेष व्यक्ति या वारदात के आधार पर पूरे समाज को अपमानित करने का अधिकार उन्हें है ? वहीं पूर्व मंत्री व भाजपा विधायक भानु प्रताप शाही बयान को लेकर हेमन्त सोरेन पर बरसे कहा भोजपुरी, मगही भाषा का प्रयोग करने वालों को बलात्कारी कहना घोर निंदनीय है, असंवैधानिक है। हेमन्त सोरेन नमाज नीति के तहत धर्म से धर्म और अब भाषा को भाषा से लड़ाना चाहते हैं। मगही और भोजपुरी भाषा से नफरत और पाकिस्तानी भाषा उर्दू से प्यार कैसा है, मुख्यमंत्री जी स्पष्ट करें। नियोजन नीति में मैथिली, अंगिका, भोजपुरी व मगही को तुष्टिकरण के तहत हटा दिया गया।
विधानसभा में अलग नमाज कक्ष का कांग्रेस की ओर से सबसे पहले विरोध करने वाले इंटक के राष्ट्रीय अध्यक्ष केएन त्रिपाठी ने हेमन्त सोरेन के बयान पर एतराज जाहिर करते हुए कहा कि उनका वक्तव्य राज्यहित में नहीं है। असंवैधानिक है। अगर भोजपुरी मगही, मैथिली बिहार की भाषा है तो बंगला और उड़िया पश्चिम बंगाल और ओडिशा की भाषा है जिसे अनुमति मिली हुई है। उन्होंने 2013-14 की याद दिलाते हुए कहा कि उस समय भी मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन थे, मगही और भोजपुरी को लेकर विवाद हुआ था। तब तत्कालीन कांग्रेस प्रभारी बीके हरिप्रसाद और जयराम रमेश ने सोनिया गांधी के निर्देश पर प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय में बैठक कर विवाद पर विराम लगाते हुए दोनों भाषाओं परीक्षाओं में शामिल करने का फैसला हुआ था।
इधर बिहार भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने कहा कि हेमंत सोरेन का ऐसा बयान शर्मनाक है। ऐसा बयान उनकी ओछी राजनीति को दर्शाता है। जदयू प्रवक्ता अभिषेक झा के अनुसार यह बयान बिहार का अपमान करने वाला है। जदयू ने कभी जाति, धर्म और भाषा के आधार पर भेदभाव नहीं किया है।