मणिपुर में जातीय हिंसा को दो वर्ष हो चुके हैं, लेकिन अब भी हजारों लोग अपने घरों से दूर राहत शिविरों और अस्थायी आवासों में रहने को मजबूर हैं। वे न केवल बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं, बल्कि अपने भविष्य को लेकर गहरी चिंता में भी डूबे हैं।
जी. किपगेन पहले एक कोचिंग संस्थान का संचालन करते थे, लेकिन आज तीन बच्चों के साथ शरणार्थी जीवन जी रहे हैं और इंफाल में अपने घर लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
किपगेन ने भावुक होकर कहा, ‘‘सबकुछ उजड़ गया है। न नौकरी है, न स्थिर आमदनी। बच्चों का भविष्य अंधकारमय लग रहा है।’’
मणिपुर में तीन मई, 2023 को मेइती और कुकी-जो समुदायों के बीच हिंसा भड़क उठी थी, जिसमें अब तक 260 से अधिक लोग मारे गए हैं और 1,500 से ज्यादा घायल हुए। इसके चलते करीब 70,000 लोग विस्थापित हुए हैं।
हालांकि, राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है और मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह को पद से हटाया जा चुका है, लेकिन शांति अब भी दूर की बात है।
विष्णुपुर जिले में अस्थायी घर में रह रहे मेइती समुदाय के अबुंग ने कहा, ‘‘पहले मेरी किराने की दुकान थी और अच्छा कारोबार हो रहा था। अब सबकुछ खो चुका हूं। यह जीवन किसी सजा से कम नहीं है।’’
इंफाल में रह रहीं अबेनाओ देवी ने कहा, ‘‘शुरुआत में कुछ मदद मिली थी, लेकिन अब जैसे हम सबको भुला दिया गया है। कभी-कभी तो खाने-पीने के लिए दूसरों की दया पर जीना पड़ता है। यह बहुत अपमानजनक है।’’
सरकार और गैर सरकारी संगठनों ने आंतरिक रूप से विस्थापितों को रोजगार योग्य बनाने के लिए कौशल प्रशिक्षण प्रदान किया, लेकिन इन पहलों से उनके दुख को कम करने में कोई खास मदद नहीं मिली।
कुकी समुदाय जहां अलग प्रशासन की मांग कर रहा है, वहीं मेइती समुदाय राष्ट्रीय नागरिक पंजी (एनआरसी) लागू करने और अवैध प्रवासियों की वापसी की मांग कर रहा है। दोनों पक्षों की मांगों के बीच आम लोग पिस रहे हैं।
इस संबंध में एक केंद्रीय सुरक्षा एजेंसी के अधिकारी ने बताया कि अब हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि सशस्त्र समूहों ने समुदायों पर नियंत्रण कर लिया है। उन्होंने कबा, ‘‘आम लोगों की पीड़ा को नजरअंदाज कर ये समूह अपना राजनीतिक एजेंडा चला रहे हैं।’’
अधिकारी ने यह भी बताया कि इंफाल घाटी में जबरन वसूली और कुकी बहुल इलाकों में अवैध कर वसूली तेजी से बढ़ी है। कई पुराने उग्रवादी गुट फिर से सक्रिय हो गए हैं और बेरोजगार युवाओं को भर्ती कर रहे हैं।