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उत्तराखंड: धामी कैबिनेट में मंत्रियों की न्यूनतम संख्या पूर्ण कराने की मांग, कानून विशेषज्ञ ने राज्यपाल को भेजा ज्ञापन; कम से कम 12 हो

देहरादून। कानून विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता नदीम ने राज्यपाल गुरुमीत सिंह को एक ज्ञापन भेजा है।...
उत्तराखंड: धामी कैबिनेट में मंत्रियों की न्यूनतम संख्या पूर्ण कराने की मांग, कानून विशेषज्ञ ने राज्यपाल को भेजा ज्ञापन; कम से कम 12 हो

देहरादून। कानून विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता नदीम ने राज्यपाल गुरुमीत सिंह को एक ज्ञापन भेजा है। इसमें कहा गया है कि उत्तराखंड में वर्ष 2022 के विधानसभा के आम चुनाव के उपरान्त से ही भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(1क) के अन्तर्गत निर्धारित मंत्रियों की न्यूनतम संख्या पूर्ण कराने तथा इसके प्रभावों के सम्बन्ध में आपके संज्ञान में निम्न तथ्य लाना एक कानून का जानकार, लोकतंत्र समर्थक तथा प्रबुद्ध नागरिक होने के चलते अपना कर्तव्य समझता हैं।

1- यह कि भारतीय संविधान से भारत में लोकतांत्रिक समाजवादी संसदीय गणराज्य की स्थापना की गई है। इसमे जनता की सरकार, जनता के लिये, जनता के द्वारा चलाई जाती है। संसदीय व्यवस्था में सरकार का समस्त नियंत्रण आम जनता द्वारा चुने प्रतिनिधियों (सांसद/विधायकों) में से बनाई गयी मंत्रिमण्डल में निहित रहता है। राज्य में भारतीय संविधान के अनुच्छेद 163 के अन्तर्गत राज्यपाल के अपने विवेक से किये जाने वालेे कर्तव्यों के अतिरिक्त सभी मामलों में सहायता व सलाह देने के लिये मंत्रिपरिषद का प्रावधान जिसका प्रधान मुख्यमंत्री है। इससे स्पष्ट है कि राज्यपाल केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर कार्य नहीं करते बल्कि मंत्रि परिषद की सलाह पर कार्य करते हैं। अनुच्छेद 164 में मंत्रियों की नियुक्ति सम्बन्धी प्रावधान है। इसमें 01-01-2004 से लागू 91 संविधान संशोधन से जोड़े गये हैं अनुच्छेद (1क) के परन्तुक के अनुसार किसी राज्य में मंत्रियों की संख्या बारह से कम नहीं होगी। ऐसी स्थििति में इससे कम संख्या होने पर यह मंत्रिपरिषद न रहकर मंत्रियों का समूह रह जाता है जिनकी सलाह पर कार्य करने का कोई प्रावधान संविधान में नहीं है। इसलिये ऐसी मंत्रियों की कम संख्या वाले मंत्रियों के समूह की सलाह  पर किये गये कार्यों पर वैधानिक प्रश्न उठ सकते हैं। इसलिये ऐसे विवादों से बचने तथा प्रभावी लोकतंत्र के लिये राज्य में मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 किया जाना अत्यंत आवश्यक है।

2- यह कि भारतीय संविधान के अनुच्छेद 164(1क) के अनुसार अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा करने का प्रावधान है। इसलिये महामहिम राज्यपाल द्वारा मंत्रि परिषद पूर्ण करने व मंत्री बनाने के लिये सलाह देने के लिये मुख्यमंत्री को आदेशित किया जाना चाहिये ताकि ऐसे कानूनी विवादों से बचा जा सके तथा सभी वर्गों को प्रतिनिधित्व मिल सके तथा वास्तविक व मजबूत लोकतंत्र लागू हो सके।

3- यह कि महामहिम उक्त पैरा 2 में मंत्री बनाने के लिये सलाह के लिये सभी क्षेत्रों तथा वर्गों को समुचित प्रतिनिधित्व देने को भी निर्देशित कर सकते हैं। वर्तमान में सभी वर्गों व क्षेत्रों का समुचित प्रतिनिधित्व न होने का विवरण अगले पैरा में स्पष्ट किया गया है।

4- यह कि वर्तमान में मुख्यमंत्री सहित न्यूनतम 12 के स्थान पर केवल 8 मंत्री ही कार्य कर रहे है। इस प्रकार केवल दो तिहाई मंत्री ही कार्यरत है जबकि 2022 में वर्तमान विधायक गठन के उपरान्त भी केवल 9 मंत्री  ही बनाये गये थे। अर्थात तीन चैथाई।

5- यह कि वर्तमान में कार्यरत मुख्यमंत्री सहित 8 मंत्रियों में अनुसूचित जन जाति, अल्पसंख्यक तथा अन्य पिछड़ा वर्ग को तो कोई प्रतिनिधित्व ही नहीं है जबकि महिलाओं तथा अनुसूचित जाति वर्ग का समुचित प्रतिनिधित्व नहीं है।

6- यह कि वर्तमान में 8 मंत्रियों में केवल एक मंत्री ही महिला है जबकि महिलाओं की उत्तराखंड राज्य की जनसंख्या में लगभग आधी भागीदारी है। 

7- यह कि वर्तमान में 8 मंत्रियों में केवल एक मंत्री ही अनुसूचित जाति वर्ग की है जबकि उत्तराखंड राज्य की जनगणना 2011 के आंकडों के अनुसार इस वर्ग की भागीदारी 19 प्रतिशत से अधिक है।

8- यह कि वर्तमान में 8 मंत्रियों में कोई भी मंत्री अन्य पिछड़े वर्ग से नहीं हैं जबकि इनकी प्रदेश जनसंख्या में भागीदारी 14 प्रतिशत आंकी जाती है।

9- यह कि उत्तराखंड एक कौमी गुलदस्ता है। इसमें अल्पसंख्यक (सिक्ख, मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध, जैन) की आबादी में जनगणना 2011 के आंकडों के अनुसार भागीदारी 16 प्रतिशत से अधिक है। लेकिन कोई भी मंत्री इस वर्ग का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।

12- यह कि वर्तमान मंत्री उत्तराखंड के सभी जिलों का भी प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं। इसमें कुमाऊं के तीन जिलों से एक-एक, कुल तीन तथा गढ़वाल के दो जिलों से 2-2 तथा एक जिले से 1 मंत्री चुनकर आये हैं। ऐसी स्थििति में मंत्री या सरकार में आधे से कम केवल 6 जिलों के निर्वाचित विधायक ही शामिल है। इन जिलों में पौड़ी, देहरादून के 2-2, चम्पावत, उधमसिंह नगर, अल्मोड़ा व टिहरी के 1-1 विधायक शामिल है। जबकि प्रदेश के आधे से अधिक 7 जिलों नैनीताल, पिथौरागढ़, बागेश्वर, उत्तरकाशी, हरिद्वार, चमोली तथा रूद्रप्रयाग के कोई विधायक ही शामिल नहीं है। इस असंतुलन को ठीक किया जाना भी लोकतंत्र को मजबूत बनाने व अधिकतर जिलों व क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने के लिये आावश्यक है। उल्लेखनीय है कि जिन जिलों के विधायकों का सरकार में मंत्रियों के रूप में प्रतिनिधित्व नहीं है जनगणना 2011 के आंकडों के अनुसार उनकी कुल आबादी प्रदेश की कुल आबादी की 45 प्रतिशत है।

13- यह कि भारतीय संविधान के अन्तर्गत अनुच्छेद 164(1) के अन्तर्गत मुख्यमंत्री की सलाह पर मंत्रियों की नियुक्ति महामहिम राज्यपाल को करनी है इसलिये उन्हें निर्देशित करने का भी महामहिम राज्यपाल को अधिकार है।

गौरतलब है कि निवेदक उच्च न्यायालय सहित विभिन्न न्यायालयों में पिछले 32 वर्ष से प्रैक्टिस करने वाला अधिवक्ता है तथा उसने 13 वर्षों से अधिक समय तक एल-एल.बी. कक्षाओं का शिक्षण भी किया है, वर्तमान  में भी इसके यू ट्यूब पर उपलब्ध एल एल.बी. की लैक्चर्स से वर्तमान एल एल.बी. विद्यार्थी व कानूनी जानकारी में यचि रखने वाले हजारों लोग लाभंवित हो रहे हैं। उसकी सूचना अधिकार, मानवाधिकार, जी.एस.टी., आयकर, फौजदारी, भ्रष्टाचार नियंत्रण, उपभोक्ता आदि कानूनी विषयों पर 44 पुस्तकंें प्रकाशित हो चुकी है तथा उनमें से विभिन्न पुस्तकें आॅमेजन व फिलिपकार्ड के माध्यम से पूरे देश में उपलब्ध है। निवेदक जनहित में सूचना का अधिकार का प्रयोग तथा प्रचार प्रसार करने वाला राष्ट्रीय स्तरीय सूचना अधिकार कार्यकर्ता है।

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