"दीवाली से कुछ दिन पहले उनके मंदिर को तोड़ दिया गया था। बौखनाग देवता को इलाके का रक्षक माना जाता है।"
उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के निर्माणाधीन सिलक्यारा सुंरग में फंसे 41 श्रमिकों के रेस्क्यू का अभियान मंगलवार शाम को सफ़ल हो गया। जैसे ही आखिरी श्रमिक को लेकर एंबुलेंस चिन्यालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए रवाना हुई, वैसे ही मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी और केंद्रीय राज्य मंत्री वी के सिंह स्थानीय बौखनाग देवता के मंदिर में उनके प्रति आभार प्रकट करने गए। कहा जा रहा है कि सुरंग ढहने से कुछ ही दिनों पहले उनके मंदिर को तोड़ा गया था।
बहरहाल, मंगलवार शाम को 41 श्रमिकों ने सुरंग के बाहर सांस ली तो मानो पूरे देश की आंखें नम हो गईं। देशवासियों ने एक सुर में ईश्वर को याद करते हुए रेस्क्यू दलों के सदस्यों का आभार व्यक्त किया। श्रमिकों को बाहर निकालने के दौरान सीएम धामी भी मौजूद थे। मंगलवार शाम को अभियान की सफलता के बाद आयोजित संवाददाता सम्मेलन में सीएम धामी ने कहा कि सिलक्यारा सुरंग के मुहाने पर स्थित बाबा बौखनाग के छोटे मंदिर को भव्य बनाया जाएगा।
क्या है मान्यता ?
चारधाम यात्रा मार्ग पर बन रही सिलक्यारा सुरंग का एक हिस्सा 12 नवंबर को ढह गया था जिससे उसमें काम कर रहे 41 श्रमिक मलबे के दूसरी तरफ फंस गए थे। स्थानीय लोग इस हादसे का कारण बौखनाग देवता के प्रकोप को मान रहे थे क्योंकि दीवाली से कुछ दिन पहले उनके मंदिर को तोड़ दिया गया था।
निर्माण एजेंसी ने पहले कहा था कि सुरंग के निर्माण के कारण मंदिर को हटाना पड़ा। हालांकि, बाद में गलती का अहसास होते ही उनकी माफी पाने के लिए सुरंग के बाहर बौखनाग देवता का छोटा मंदिर स्थापित कर दिया गया। दरअसल, बौखनाग देवता को इलाके का रक्षक माना जाता है ।
मंदिर स्थापित करने के बाद नियमित रूप से बाबा बौखनाग की पूजा की गई और उनसे सुरंग में फंसे श्रमिकों को सकुशल बाहर निकालने के लिए आशीर्वाद मांगा गया। अभियान के17 वें दिन बचावकर्मियों को सफलता मिली और सभी 41 श्रमिकों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया।