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शाकाहारी शिवराज की अंडे पर पाबंदी

मध्य प्रदेश को शदुध शाकाहारी प्रदेश बनाने की सरकार की कवायद के तहत मध्य प्रदेश के आदिवासी बहुल इलाकों में छोटे बच्चों को दिन के खआने में अंडा देने से कड़ाई से मना कर दिया गया है। यह फैसला खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने किया है। और वह भी यह कहते हुए कि इस तरह की किसी योजना का प्रस्ताव भी उनके पास नहीं आना चाहिए।
शाकाहारी शिवराज की अंडे पर पाबंदी

इस तरह के प्रस्ताव देश के अनेक राज्यों में आ चुके, कई ने लागू भी किया। पिछले दिनों झारखंड सरकार ने भी इसकी कोशिश की थी, जिसका वरिष्ठ अर्थशास्त्री और भोजन के अधिकार कार्यकर्ता ज्यां द्रेज ने कड़ा विरोध किया था। उन्होंने ही देश भर कहां-कहां अंडे आंगनबाड़ी और मध्यान्ह भोजन में खिलाया जा रहा है, इसका नक्शा तैयार किया, जो हम इस स्टोरी में इस्तेमाल कर रहे हैं।

बहरहाल, शिवराज सिंह चौहान के पास यह प्रस्ताव आया था कि राज्य के आदिवासी इलाके अलिराजापुर, मंडाला और होंशंगाबाद जिलों में जहां बच्चों में भीषण कुपोषण है, वह आगंनवाड़ी में बच्चों को अंडा दिया जाए, ताकि उनके कुपोषण को ठीक किया जा सके। बताया जाता है कि इस प्रस्ताव को देखते ही शिवराज भड़क गए और उन्होंने कहा कि यह प्रस्ताव कैसे बनाया गया, जबकि मैं सार्वजनिक तौर पर यह घोषणा कर चुका हूं कि जब तक मैं मुख्यमंत्री हूं, आंगनबाड़ी में अंडे नहीं दिए जाएंगे।

इस बारे में आउटलुक से बातचीत करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता सचिन जैन ने कहा कि यह सिर्फ सरासर गरीब-कुपोषित बच्चों के साथ अन्याय ही नहीं है बल्कि राज्य को हिंदू शाकाहारी राष्ट्रवाद में लपेटने की कोशिश है। उन्होंने बताया कि आंगनवाडी में बच्चों को अंडा देने का प्रस्ताव पुराना है, जिसका जैन समाज संख्त विरोध कर रही है। हैरानी कि बात है कि इन आगंनबाड़ियों में न तो जैन बच्चे आते हैं और न ही उनका कोई लेना देना है। फिर इस तरह की अवैज्ञानिक सोच के आधार पर बच्चों का भविष्य तय किया जाना खतरनाक है।

बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं का कहना है कि अंडे के जरिए बिना किसी मिलावट और गड़बड़झाले के अच्छा प्रोटीन बच्चे को मिलने की गारंटी होती है। वरना बाकी चीजों में जैसे दाल-दूध में तो प्रचुर मात्रा में मिलावट होती है। लेकिन मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री सुनने को तैयार नहीं है। मुख्यमंत्री के प्रमुख सचिव एसके मिश्रा का कहना है कि यह पहले दिन से ही मुख्यमंत्री के लिए भावनात्मक विषय रहा है। वैसे, अंडे के अलावा दूसरे भी पैष्टिक विकल्प है।

किस तरह से कुपोषण जैसे मुद्दे पर धर्म औऱ समाज के हिसाब से सरकारें फैसला करती है, इसकी यह दिलचस्प बानगी है। हुआ यूं कि जब इस प्रस्ताव को तैयार करने की खबर जैन समुदाय तक पहुंची तो वे बेहद सक्रिय हो गए। उन्होंने सीधे मुख्यमंत्री से संपर्क किया। दिगंबर जैन महासमिति के प्रवक्ता अनिल बड़कुल ने बताया कि जब उन्हें सरकारी अधिकारियों से पता चला कि वे अंडे को आंगनवाड़ी में शामिल करने जा रहे हैं तो हमने कहा कि हम सीधे ही मुख्यमंत्री से बात करेंगे। उन्होंने अपने दर्शन के मुताबिक कहा, क्या अंडे पेड़ में उगते हैं। इसके सेवन से बहुत नुकसान होता है। जब बच्चे गैर-शाकाहारी भोजन करते हैं तो उनकी संवेदनशीलता मर जाती है। यानी ये जो कुछ भी है, वह संवेदनशीलता बचाने के लिए है।

गौरतलब है कि राज्य में दलितों में 63 फीसदी और आदिवासियों में 72 फीसदी कुपोषण है और बड़े पैमाने पर बच्चे कम वजन के पैदा हो रहे हैं। इससे लड़ने के बजाय कुछ खास धर्म और कुछ खास समुदायों की आस्था की रक्षा करने में राज्य सरकार मशगूल है। 

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