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व्यापमं: खौफ के साये में आदिवासी छात्र

झाबुआ में नम्रता की हत्या मामले में चल रही तफ्तीश के अलग-अलग दिशाओं में जाने की आशंकाएं गरम
व्यापमं: खौफ के साये में आदिवासी छात्र

झाबुआ पर व्यापम की स्याह छाया की गहरी जकड़न महसूस की जा सकती है। व्यापमं का आदिवासी नौजवानों पर कितना खौफनाक असर पड़ा है, इसे यहां पर महसूस किया जा सकता है। बताया जाता है कि 90  फीसदी आदिवासी बहुल झाबुआ से 50 लोग अभियुक्त बनाए गए हैं। यानी सारे आदिवासी नौजवान। डर के मारे बड़ी संख्या में आदिवासी नौजवान बाहर भी भागे हुए हैं। झाबुआ की नम्रता डामोर की 2012 में हुई हत्या (पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार) के बाद से यहां के तमाम दूसरे परीक्षार्थियों और उनके परिजनों पर जो खौफ तारी था, अब वह पत्रकार अक्षय सिंह की मौत के बाद और गहरा हो गया है।

सीबीआई द्वारा नम्रता डामोर की हत्या के मामले की फिर से जांच शुरू होने से एक तरफ जहां नम्रता के परिजनों को इस बात की आस बंधी है कि अब शायद न्याय की दिशा में छानबीन बढ़े, वहीं दबी जुबान में यह भी कहा जा रहा है कि इस प्रकरण को व्यापम से अलग कर एक प्रेम प्रसंग के रूप में करने की कोशिश की जा रही है। नम्रता के भाई ओम प्रकाश डामोर ने आउटलुक से बातचीत के दौरान गहरे आक्रोश के साथ बताया, -अक्षय सिंह की मौत के बाद नम्रता का केस दोबारा खोला लेकिन दो घंटे में बंद कर दिया गया। जब हमने इसकी वजह जाननी चाहिए तो कहा गया कि चूंकि कोई नया सबूत नहीं मिला है, इसलिए बंद किया मामला।

ओमप्रकाश का भी मानना है कि नम्रता की हत्या के बाद से यहां के आदिवासी नौजवानों में बहुत डर है। दिनेश (नाम बदला हुआ) ने बताया कि उनका बेटा और भतीजा भी घर छोड़कर भागे हुए हैं, क्योंकि उन्हें डर है कि उन्हें गिरफ्तार करके फंसाया जा सकता है। इस तरह से बहुत से आदिवासी नौजवानों की जिंदगी तबाह हो गई है। जो अभियुक्त बनाए गए हैं, उनके खिलाफ तो मामला चल ही रहा है। उनके परिवारों की भी दयनीय स्थिति है।

नम्रता के भाई ओम की कहना है कि अब सीबीआई की जांच से अगर उन चार लड़कों के बारे के खिलाफ कोई कार्यवाई हो सके जिनका नाम शुरुआती तफ्तीश में आया था, तो सच सामने आ सकता है। इंदौर में महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज की छात्रा नम्रता डामोर की हत्या (पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार) जनवरी 2012 में हुई थी और बाद में उसके फोन के कॉल डिटैल से चार लड़कों के नाम सामने आए थे, जिसमें देवसिसौदिया (90 कॉल), विशाल वर्मा (60 कॉल), यश दिसावल (70 कॉल) और आलेख  द्वारा नम्रता को फोन करने की बात सामने आई थी। नम्रता के परिजनों का दावा है कि ये सारी पड़ताल भी उन्होंने अपने बलबूते कराई थी। नम्रता की पोस्टमार्टम रिपोर्ट में हत्या और बाद में पुलिस द्वारा इसे आत्महत्या बताने की गुत्थी के बारे में ओम का कहना है कि चूंकि जब उज्जैन के पास नम्रता की लाश मिली थी, तो वह लावारिस थी और इसलिए असल वजहों को लिख दिया गया था। बाद में जब पता चला कि यह नम्रता की लाश है तो लीपा-पोती चाली हुई। गौरतलब है कि 2014 में व्यापमं घोटाले के तहत जिन मेडिकल की पढ़ाई करने वाले छात्रों के दाखिले रद्द किए गए थे, उनमें नम्रता का नाम भी था।

नम्रता के जानने वालों का कहना है कि चूंकि वह व्यापमं घोटाल के सरगना जगदीश सागर से करीब थी और गवाह हो सकती थी, इसलिए उसे रास्ते से हटा दिया गया। परिवार के ऊपर अलग-अलग तरह के दवाब होने की बाते भी सामने आ रही हैं। जिसमें यह चर्चा तगड़ी है कि नम्रता के परिवार को इसे व्यापम से नहीं बल्कि प्रेम या दोस्ती में रंजिश से जोड़कर दर्शाने का दबाव है। अब जांच में होगा क्या, यह तो आने वाले दिनों में ही पता चलेगा। बहरहाल, झाबुओ में एक बार फिर व्यापमं और नम्रता डामोर की हत्या का मामला गरम हो उठा है। 

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