उत्तर प्रदेश में आलू की कम कीमत के चलते राज्य के किसानों ने शनिवार तडके सुबह विधानसभा समेत राजधानी लखनऊ के अन्य वीआईपी इलाकों में कई क्विंटल आलू सड़क पर फेंककर अपना विरोध दर्ज कराया।
इसके पहले भी, प्रदेश के आलू किसानों ने कम कीमत और सुस्त सरकारी खरीद पर अपना विरोध दर्ज कराया था, परन्तु सरकार द्वारा कोई कदम न उठाया गया और कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही अपनी पीठ थपथपाते रहे की प्रदेश में पहली बार सरकार द्वारा आलू खरीदा गया है।
हालांकि, योगी आदित्यनाथ सरकार ने आलू फेंकने की घटना को विरोधियों की शाजिश करार दिया है और इस मामले में हजरतगंज इलाके में नाईट ड्यूटी पर तैनात एक पुलिस उपनिरीक्षक समेत चार पुलिसकर्मियों को निलंबत कर दिया है। इन पुलिसकर्मियों पर प्राथमिक आरोप है कि किसानों नें रात्री प्रहर में ट्राली से आलू फेंका, परन्तु उन्हें इसकी न तो भनक लगी और ना ही कोई कार्यवाही हुई।
मौजूदा समय में, प्रदेश के किसानों को आलू का करीब Rs 400 प्रति क्विंटल से दाम मिल रहा है, जबकि उनकी मांग करीब Rs 1,000 प्रति क्विंटल की है, क्योंकि इससे कम दाम में उनकी लागत भी नहीं निकलती है और उसकी ढुलाई में अतिरिक्त पैसे लग जाते हैं।
आलू फेंकने की घटना शनिवार सुबह पुलिस व प्रशासन की नजर में आई। तब तक विपक्ष और मीडिया समेत आमजन में इस घटना की खबर फ़ैल चुकी थी और योगी सरकार की काफी किरकिरी भी हो चुकी थी।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में कल एक जनसभा को संबोधित करते हुए, योगी नें कहा था कि फिलहाल प्रदेश में Rs 487 प्रति क्विंटल की दर से आलू की खरीद हो रही है, जिसको आवश्यकता पड़ने पर और बढाया जायेगा।
आंकड़ों पर नजर डालें तो, योगी सरकार ने सरकारी खरीद में 13,000 क्विंटल से भी कम आलू की खरीद की है, जबकि ज़्यादातर आलू, करीब 120 लाख टन, पहले ही प्रदेश की कोल्ड स्टोरेज में भण्डारण हेतु जा चुका था। दाम गिरने से, किसानों के पास अपने आलू को छुड़ा कर बाजार में बेच कर मुनाफा कमाना भी मुमकिन नहीं रहा था। कई कोल्ड स्टोरेज मालिकों ने तो स्वतः ही इस आलू को अपने भण्डार से बाहर कर दिया था क्योंकि किसान अपने उत्पाद को लेने ही नहीं आये थे।