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दास्ताने दंगाः औरतों का वाकई घर नहीं होता

दंगा कैसा भी हो कहीं का भी हो उसकी सबसे ज्यादा मार औरतों और बच्चों पर पड़ती है। बीती 25 मई को हरियाणा के गांव अताली में फैली सांप्रदायिक हिंसा में भी ऐसा ही हुआ। इतिहास गवाह है कि दंगों की सबसे कमजोर कड़ी महिलाएं रही हैं। इसे देखते हुए अताली गांव के मुसलमान परिवारों ने 25 मई को हुए पहले हमले के फौरन बाद अपनी बहू-बेटियों महफूज ठिकानों पर भेज दिया। अताली में 4 जुलाई हुए दूसरे हमले में मुसलमान घरों में जवान बहू-बेटियां नहीं थीं।
दास्ताने दंगाः औरतों का वाकई घर नहीं होता

 

 

बेटे को छत से फेंका

इस हमले के वक्त रूखसाना बेगम अपने पड़ोसियों के घर में थीं। वह बताती हैं  ‘ जैसे ही हमला हुआ मुझे कुछ समझ नहीं आया और मैं अपने छोटे से बेटे सुलेमान को लेकर शौचालय में छिप गई। दो घंटे मैं वहां बंद रही और फिर दीवारे फांद कर किसी तरह अपने घर पहुंची। मैं तो दीवार फांद गई लेकिन मुझे अपने बेटे को छत से नीचे गिराना पड़ा। उसे लेकर दीवार से कूदा नहीं जा सकता था। ’ गिरने की वजह से सुलेमान की पीठ पर चोटों के निशान देखे जा सकते हैं। इस हमले के फौरन बाद रुखसाना बेगम ने अपनी तीन बेटियों को महफूज जगह भिजवा दिया।  

 

बहूओं को मायके भेज दिया

गांव की बुजुर्ग महिला बतुलन बताती हैं कि 4 जुलाई वाले हमले में हमारे किसी घर में जवान बहू-बेटी नहीं थी। यहां तक कि चलने फिरने में असमर्थ बुजुर्गों को भी इन लोगों ने महफूज जगह भिजवा दिया था। 25 मई वाले हमले के बाद घर की रखवाली के लिए घर में अधेड़ की महिलाएं थी। बतुलन ने भी अपनी चार बहूओं समीना, सितारा, निसारा और साइना को उनसे मायके भिजवा दिया। बतुलन का कहना है कि उनके चारों बेटे भी अपने-अपने ससुराल में रह रहे हैं। बहूओं के गांव लौटने के फिलहाल लंबे अरसे तक कोई आसार भी नहीं हैं।

 

अस्थमा के मरीज पति को बेटी के घर छोड़ दिया

अताली में पहले वाले हमले के बाद 50 वर्षीय हसीना ने भी अपनी दो बहूओं साबरा और शबाना को उनके मायके भेज दिया। उनका कहना है कि वह उन्हें गांव बुलवाएंगी भी नहीं। हसीना के पति अस्थमा के मरीज हैं और दौड़ नहीं सकते, इसलिए हसीने ने अपने पति को अपनी शादीशुदा बेटी के घर छोड़ दिया। वह बताती हैं कि पहले वाले हमले के बाद गांव में तनाव इतना हो गया था कि बहू-बेटियों को घर में रखने का सवाल ही पैदा नहीं था। दूसरे हमले के वक्त हसीना घर में अकेली थीं।

 

बेटी को मामा के घर छोड़ा

मीना अताली में परचून की दुकान करती थी। जिस समय गांव में मुसलमानों के सामाजिक बहिष्कार की घोषणा की गई और ऐलान किया गया कि जो कोई इन्हें सहयोग करेगा उसे 11,000 जुर्माना भरना होगा तो मीना ने अपनी दुकान में और सामान भर लिया। लेकिन मीना का आरोप है कि एक रोज दुकान बंद थी तो उसकी दुकान के ताले तोड़कर सारा सामान लूट लिया गया। उसके बाद मीना इतना डर गई कि उसने अपनी 15 वर्ष की बेटी को उसके मामा के यहां भेज दिया। उसका कहना है कि अब वह वहीं रहेगी।

 

आनन-फानन में निकाह

गांव की इमरती ने अपनी बेटी के लिए ऐसी कोई महफूज जगह नहीं पाई तो उसने अपनी बेटी का आनन-फानन में निकाह कर दिया। बेटी ने हाल ही में दसवीं पास की थी। इमरती की एक बहू भी है सहरोना। सहरोना का उसके माएके भेज दिया।   

 

 

 

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