सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के ड्रीम प्रोजेक्ट सेंट्रल विस्टा को हरी झंडी दे दी है। इसी प्रोजेक्ट के तहत संसद की नई इमारत का निर्माण हो रहा है। इस पर रोक लगाने के लिए कई याचिकाएं दायर की गई थी जिस पर पिछले महीने कोर्ट ने रोक लगाई थी हालांकि, कोर्ट ने इस शिलान्यास समारोह को रोकने से इनकार कर दिया था। कोर्ट ने पर्यावरण कमेटी की रिपोर्ट को भी नियमों को अनुरुप माना है।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट मामले पर सुनवाई करते हुए जस्टिस एएम खानविल्कर, संजीव खन्ना और दिनेश माहेश्वरी की तीन जजों की बेंच ने मंगलवार को अपना फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को मंजूरी देते समय पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दी गई सिफारिशों को बरकरार रखती हैं।
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट का क्या है मास्टर प्लान
>> केंद्र ने राष्ट्रपति भवन से इंडिया गेट के बीच नई इमारतें बनाने के लिए सेंट्रल विस्टा का मास्टर प्लान तैयार किया है।
>> प्रोजेक्ट के मुताबिक पुराने संसद भवन के सामने गांधीजी की प्रतिमा के पीछे नए तिकोना संसद भवन का निर्माण किया जाएगा।
>> इसमें लोकसभा और राज्यसभा के लिए एक-एक इमारत होगी, लेकिन सेंट्रल हॉल नहीं बनेगा। यह इमारत 13 एकड़ जमीन पर तैयार किया जाएगा।
>> सेंट्रल सेक्रेटेरिएट के लिए 10 बिल्डिंग बनाई जाएंगी। राष्ट्रपति भवन, मौजूदा संसद भवन, इंडिया गेट और राष्ट्रीय अभिलेखागार की इमारत को वैसे ही रखा जाएगा।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने जस्टिस ए. एम. खानविलकर के नेतृत्व वाली बेंच से कहा कि केवल आधारशिला रखने का कार्यक्रम किया जाएगा, वहां कोई निर्माण कार्य या इमारतों को गिराने जैसा कोई काम नहीं होगा। इस परियोजना की घोषणा पिछले वर्ष सितंबर में हुई थी, जिसमें नए त्रिकोणाकार संसद भवन का निर्माण किया जाना है। इसमें 900 से 1200 सांसदों के बैठने की क्षमता होगी।
इसके निर्माण का लक्ष्य अगस्त 2022 तक है, जब देश स्वतंत्रता के 75वीं वर्षगांठ मनाएगा। साझा केन्द्रीय सचिवालय के बनने का अनुमान 2024 तक है। इसका निर्माण कार्य 2022 तक पूरा होने की संभावना है। याचिकाएं भूमि उपयोग बदलाव की मंजूरी सहित दी गई अन्य विभिन्न मंजूरियों के खिलाफ दायर की गई हैं। ये सभी अभी मामले शीर्ष अदालत में विचाराधीन है।