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द गोल्डन रोड बुक रिव्यू: रोमन साम्राज्य से लेकर चीन तक, कैसे प्राचीन भारत ने दुनिया को बदला?

किताब का नाम- द गोल्डन रोड लेखक- विलियम डैलरिम्पल प्रकाशक- ब्लूम्सबरी पृष्ठ- 290 मूल्य- 550 विलियम...
द गोल्डन रोड बुक रिव्यू: रोमन साम्राज्य से लेकर चीन तक, कैसे प्राचीन भारत ने दुनिया को बदला?

किताब का नाम- द गोल्डन रोड

लेखक- विलियम डैलरिम्पल

प्रकाशक- ब्लूम्सबरी

पृष्ठ- 290

मूल्य- 550

विलियम डैलरिम्पल की नई किताब The Golden Road बीते समय की उस सुनहरी धड़कन को जीवित करती है, जब भारत ने तलवार से नहीं, बल्कि विचारों, कला, धर्म, गणित और व्यापार के ज़रिए दुनिया को प्रभावित किया। लगभग 250 ईसा पूर्व से 1200 ईस्वी के बीच का यह काल भारत की सांस्कृतिक और बौद्धिक शक्ति का वह दौर था, जिसे लेखक “गोल्डन रोड” यानी स्वर्ण मार्ग नाम देते हैं। यह एक ऐसा नेटवर्क था, जो रोमन साम्राज्य से लेकर कोरिया और जापान तक फैला हुआ था।

इस किताब का केंद्रीय विचार है “इंडोस्फ़ेयर”, यानी वह सांस्कृतिक क्षेत्र जो भारतीय प्रभाव से आकार लेता है। बौद्ध धर्म के प्रसार से लेकर हिंदू कला और स्थापत्य, गणित से लेकर खगोलशास्त्र और वस्त्र व्यापार तक, भारत की गूँज दूर-दूर तक सुनाई देती थी। रोम की गलियों में पारदर्शी ढाका की मलमल चर्चा का विषय थी, तो चीन के राजदरबार में भारतीय बौद्ध कथाएँ सम्राट की वैधता की नींव बन रही थीं। डालरिम्पल बताते हैं कि कैसे भारत केवल व्यापारिक सामान ही नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और बौद्धिक पूँजी भी निर्यात कर रहा था।

किताब का सबसे जीवंत हिस्सा है चीन की महारानी वू ज़ेटियन और भिक्षु श्वेनज़ांग (Xuanzang) का प्रसंग। एक उद्धरण में लेखक लिखते हैं, “देवी की भविष्यवाणी यह है कि वह स्त्री के शरीर में इस भूमि पर शासन करेगी… मैं उसे सोने की छड़ें दूँगा ताकि वह किसी भी अहंकारी और हठी पुरुष को दंडित कर सके।” यह दृश्य दिखाता है कि किस तरह भारतीय बौद्ध आख्यानों ने चीन की सत्ता और राजनीति को वैधता प्रदान की।

रोमन इतिहासकार प्लिनी द एल्डर भारत से बहते इस विशाल धन को देखकर हैरान थे। उन्होंने भारत को “दुनिया के सबसे बहुमूल्य धातुओं का गटर” कहा और लिखा, “कोई भी वर्ष ऐसा नहीं गुजरता जिसमें हमारी साम्राज्य की खज़ानों से कम से कम पचपन मिलियन सेस्टर्स (रोमन मुद्रा) का बहाव न हो।” यह कथन इस बात का प्रमाण है कि कैसे भारत के साथ व्यापार ने रोमन खज़ानों को खाली कर दिया, क्योंकि मसाले, रत्न और वस्त्रों के बदले बहुमूल्य सोना-चाँदी बहता चला गया।

गणित और खगोलशास्त्र पर भी किताब गहरी रोशनी डालती है। आर्यभट, ब्रह्मगुप्त और अन्य भारतीय विद्वानों के योगदान ने दशमलव पद्धति, शून्य और बीजगणित जैसे विचारों को अरब जगत और फिर यूरोप तक पहुँचाया। डालरिम्पल लिखते हैं कि फिबोनाची जैसे यूरोपीय गणितज्ञ भी भारतीय ज्ञान की विरासत से प्रभावित थे।

किताब की खासियत यह है कि यह केवल अकादमिक इतिहास नहीं है, बल्कि डैलरिम्पल की मशहूर कहानी कहने की शैली इसमें जीवन डाल देती है। उनके वर्णन में बोरोबुदुर, अंगकोर वाट और अजन्ता-एलोरा की गुफाएँ केवल स्थापत्य नहीं, बल्कि जीवित सांस्कृतिक संवाद बन जाते हैं।

हालांकि, लेखक का ध्यान ज़्यादातर विशिष्ट विद्वानों और शाही चरित्रों पर है, जबकि साधारण समाज और व्यावहारिक ज्ञान की भूमिका कहीं पीछे छूट जाती है। “भारत ने केवल विचारों से दुनिया को जीता” कहना शायद अतिशयोक्ति हो सकता है,  क्योंकि सांस्कृतिक आदान-प्रदान बहुआयामी था। फिर भी, अधिकांश समीक्षाएँ इसे एक “टूर डी फ़ोर्स” मानती हैं। 

कुल मिलाकर, The Golden Road हमें याद दिलाती है कि प्राचीन भारत केवल उपमहाद्वीप तक सीमित नहीं था, बल्कि वह एक वैश्विक शक्ति था जिसने विचार, विज्ञान, कला और अध्यात्म से पूरी दुनिया को आकार दिया। विलियम डालरिम्पल की लेखनी इसे इतिहास का ठंडा ब्यौरा नहीं रहने देती, बल्कि एक जीवंत गाथा बना देती है। यह किताब उन सभी के लिए ज़रूरी है, जो यह समझना चाहते हैं कि भारत ने अतीत में किस तरह से दुनिया को बदला और क्यों आज इस स्मृति को फिर से ज़िंदा करना अहम है।

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