भरतनाट्यम की मशहूर नृत्यांगना तथा गुरु सुश्री प्रिया वेंकटरमण ने अलग कैनवास पर नृत्य को नए-नए रूपों में सजाकर रंगत दी है। उनकी निगरानी में सीख रहे कुछ शिष्यों में कुशल कलाकार बनने की संभावनाएं दिख रही हैं। प्रिया ने विदेशों खासकर अमेरिका में भरतनाट्यम नृत्य प्रदर्शन के जरिए प्रचार-प्रसार करने के अलावा वहां के युवाओं को नृत्य सिखाने में अच्छा काम किया है। उनसे सीखे कई युवा कालाकारों ने नृत्य प्रदर्शन में अपने कौशल का परिचय दिया है। इस समय उनकी छत्रछाया में सीख रही युवा नृत्यांगना रेहया राम तेजी से उभर रही है।
बीते दिनों रेहयाराम ने नृत्य में पहली प्रस्तुति गुरुग्राम के एपिक सेंटर के सभागार में दी। एकल नृत्य में उनके थिरकते पावों में कई प्रकार की चालें, लयात्मक गति में संतुलित अंग संचालन, नृत्य के विविध आकार और नेत्राभिनय में सरस भाव को देखकर लगा कि रेहया राम को गुरु से पुख्ता तालीम मिली है। रेहया ने नृत्य का आरंभ गणेश पंचरत्नम से किया। हरि प्रसाद की यह रचना भगवान गणेश की उपासना और गुरु की श्रद्धा में अपर्ति थी। उसे इस युवा नृत्यांगना ने भक्ति भाव में प्रस्तुत किया।
श्री लालगुडी जयरमन रचित और राग चारूकेसी में निबद्ध वर्णम की प्रस्तुति खास थी। वर्णम भरतनाट्यम का सबसे प्रबल और मुख्य हिस्सा होता है। रेहया राम की वर्णम में समाहित संगीत, नृत्य और अभिनय भाव को गहरी सूझबूझ से पेश किया, वह वाकई में काबिलेतारीफ था। वर्णम रचना में नायिका अपने प्रियतम कृष्ण से आग्रह करती है कि मै समर्पित होकर तुम्हारी ही अराधना करती हूं, तुमसे मिलन न होने पर मेरी जो व्याकुल मन की दशा है, उसे दूर करो। इस भावपूर्ण कथा प्रसंग को नृत्यांगना ने बड़ी संवेदनशीलता और रंजकता से दर्शाने का प्रयास किया।
राग हंसनदीं में निबद्ध महाराजा स्वाति तिरुनाल की कृति शंकरा श्री गिरि में भगवान शिव के अलौकिक नृत्य और उससे निकलते लोक संदेश का आवाहन है। रचना के इस भाव को रेहया राम ने बड़े आवेग और तल्लीनता से पेश करके दर्शकों को मुग्ध किया। अगली राग हंसध्वनि में निबद्ध “परशक्ति जननी” में शक्ति के पराक्रम का संबोधन था। रचनाकार पापनासम शिवन की परिकल्पना को नृत्य और अभिनय से साकार करने का सराहनीय प्रयास नृत्यांगना ने किया। राग तोड़ी में रचित मां यशोदा का बालकृष्ण के प्रति वात्सल्य प्रेम, नटखट कृष्ण का लुभावना रूप बार-बार उसके मन को कैसे आनंदित करता है, उसकी मनोरम झांकी रेहया राम के नृत्य में चित्रित हुई। नृत्य का समापन पारंपरिक तिल्लाना से किया। विलंबित से द्रुत के चलन में लयात्मक गति का खूबसूरत प्रवाह था। रेहया के नृत्य के साथ नटुवांगम पर गुरु प्रिया वेंकटरमण, गायन में वेंकटस्वरन कुप्पूस्वामी, मृदंगम वादन में मनोहर बालचन्द्रन, वायलिन पर जी राघवेन्द्र और घटम पर वरुण राजशेखरन ने प्रभावी संगत की।