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यूपी उपचुनाव: नए चेहरों पर दांव, सफल रही बीजेपी की रणनीति

उपचुनाव के नतीजों को जीतने और हारने के बाद दोनों ही स्थिति में सत्ताधारी पार्टी और सरकार से जोड़कर...
यूपी उपचुनाव: नए चेहरों पर दांव, सफल रही बीजेपी की रणनीति

उपचुनाव के नतीजों को जीतने और हारने के बाद दोनों ही स्थिति में सत्ताधारी पार्टी और सरकार से जोड़कर देखा जाता है। भारतीय जनता पार्टी के लिए उपचुनाव के नतीजे शुभ रहे तो उसने 7 में से 6 सीटें जीत ली और इसका श्रेय भी अब योगी सरकार को ही जाएगा ।सरकार के कामकाज को ही मिलेगा ।लेकिन हर चुनाव कुछ न कुछ संदेश चाहे वह विपक्षी पार्टियां हो जो लड़ती हैं उनको भी देकर जाता है और सत्ताधारी को भी ,कि कहां क्या खास है कहां पर और मेहनत करने की बात है। इन नतीजों ने भी 2022 में भारतीय जनता पार्टी के लिए एक बड़ा संदेश दे दिया है क्योंकि वह संदेश है कि 7 सीटों में बीजेपी ने 4 सीटें नए चेहरों के लिए प्रयोग किया और उन्हें उतारा।

इनमें से 5 सीटें विधायकों के मृत्यु के कारण रिक्त हुई थी जबकि उन्नाव के बांगरमऊ में भाजपा विधायक कुलदीप सेंगर की उम्र कैद के कारण सदस्यता रद्द हो गई थी। टूंडला में भाजपा के डॉ एस पी बघेल ने सांसद निर्वाचित होने के बाद त्याग पत्र  दिया था ।इस उपचुनाव में 6 से 2 सीटों पर सिर्फ नौगांवा सादात और बुलंदशहर छोड़कर शेष चार देवरिया, टूंडला, घाटमपुर और बांगरमऊ में वहां से विधायक रहे नेताओं के परिवारों की बजाय भाजपा ने आम कार्यकर्ताओं पर भरोसा किया ।

कार्यकर्ताओं जिनकी संगठन दायित्वों के निभाने के सिवाय को बड़ी पहचान नहीं थी ।ऐसे थे उम्मीदवार भाजपा के सफल प्रदर्शन ने यह संदेश दे दिया कि जनता का रुझान भाजपा के पक्ष में है ना की किसी व्यक्ति विशेष के प्रभाव में ।भारतीय जनता पार्टी को लगता है कि अब इन नतीजों के कारण आने समय आने वाले समय में पार्टी के   विधायक रहे लोगों के परिवार के सदस्य लगातार टिकट मांग रहे थे टिकट ना मिलने से उनकी नाराजगी भी थी देवरिया में तो टिकट ना मिलने से नाराज स्वर्गीय विधायक जन्मेजय सिंह के पुत्र अजय ने तो बगावत कर मैदान में निर्दलीय चुनाव लड़ा और पार्टी को ताल ठोक दी थी बावजूद इसके देवरिया सहित सभी सेटिंग सीटों पर भाजपा को विजय मिली।

भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्र देवऔर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की रणनीति का यह कमाल ही कहेंगे सुनील बंसल की रणनीति कामयाब रही कि भारतीय जनता पार्टी को जनता पसंद करती है ना कि किसी व्यक्ति विशेष को और ना ही किसी खास परिवार को। बीजेपी के लिए एक बड़ा सर दर्द अभी से ही खत्म होता हुआ दिखाई पड़ रहा है जो विधायक सरकार को लेकर सार्वजनिक विरोध कर देते हैं कहीं सरकार को लेकर फजीहत कराते हुए चिट्ठी लिख देते हैं कोई सोशल मीडिया पर जाकर के कुछ लिख देता है ऐसे विधायकों के लिए एक चुनौती भी है और चेतावनी भी, पार्टी के बगैर वह कुछ नहीं है और अगर उन्होंने विपक्ष की तरफ आंख लगा भी रखी है तो नतीजे सामने हैं। भारतीय जनता पार्टी के लिए इस लिहाज से उपचुनाव एक राहत भरी जीत के साथ एक उनकी राजनीतिक मुस्किल से निकाल रही है, बीजेपी को वोट डालती है ना कि किसी व्यक्ति विशेष को और अगर आम कार्यकर्ता भी बीजेपी का खड़ा होगा तो वह जीतेगा अगर नए चेहरे पर दांव लगाया जाएगा तो जीत की गारंटी में बदलेगा ही।

 

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