गाजीपुर-गोरखपुर हाइवे से मात्र छह किलोमीटर दूर स्थित इस चिकित्सालय से यहां के आसपास के गांवों की करीब पांच हजार आबादी चिकित्सा सेवा पर निर्भर है। लेकिन डाॅक्टर को आना है या नहीं आना है कोई मायने नहीं रखता। स्थानीय लोगों ने बताया कि इस अस्पताल का यही हाल है। अगर डाॅक्टर आ भी जाए तो दवा नहीं मिलती। बच्चों को टीका लगाने के लिए बुधवार का दिन निर्धारित किया गया है।
भारतीय प्रतिष्ठान द्वारा किए जा रहे एक शोध के दौरान पाया गया कि सुबह से महिलाएं छोटे-छोटे बच्चों को लेकर टीका लगवाने के लिए पहुंच जाती है। दस बजते ही नर्स आती है और यह कह देती है कि टीका खत्म हो गया इसलिए आप लोगों को जिला अस्पताल जाना पड़ेगा। ऐसी समस्या केवल एक दिन की नहीं बल्कि रोज-रोज की है। स्थानीय निवासी गप्पू यादव बताते हैं कि कुछ समय पहले जब यह चिकित्सालय गांव के अंदर हुआ करता था तब तो वहां डाॅक्टर आ जाते थे। उस समय यह किराए के मकान में था। लेकिन जबसे अस्पताल की अपनी इमारत बनी है तबसे यहां डाॅक्टर कभी-कभार आते हैं।
गांव के पुराने लोगों का कहना है कि कुछ डाॅक्टर अपने पेशे को लेकर काफी ईमानदार रहे इसलिए वह समय से अस्पताल आते रहे लेकिन आजकल समस्या गंभीर है। पहितियां गांव की तरह ही सुभाखरपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थिति है। यहां भी डाॅक्टरों की गैरहाजिरी एक समस्या बनी हुई है। यहां पर तो बाकायदा ग्रामीणों ने धरना देकर गैर हाजिर चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग की। ग्रामीणों की समस्या सुनने गए एसडीएम अरुण कुमार सिंह ने बताया कि जो चिकित्सक गैरहाजिर हैं उनके खिलाफ मुख्य चिकित्साअधिकारी के यहां कार्रवाई करने के निर्देश दे दिए गए हैं।
स्थानीय लोगों ने बताया कि चिकित्सक डा. आरके सिन्हा मनमाने ढंग से स्वास्थ्य केंद्र पर आते-जाते हैं। उनकी अनुपस्थिति में स्वास्थ्य कर्मी भी लापरवाह हो गए हैं। अगर कोई मरीज चला जाए तो उससे सीधे मुंह बात नहीं करते। चिकित्सक की गैर मौजूदगी में फार्मासिस्ट मरीजों का इलाज करता है। उलटी-सीधी दवाईयां दे दी जाती हैं और जब मरीज की तबियत बिगड़ जाती है तो दूसरे डाॅक्टर के पास इलाज के लिए भेज दिया जाता है। लोगों का कहना है कि अस्पताल में गंदगी का अंबार लगा रहता है। पहले तो गांव वालों ने स्थानीय स्तर पर समस्या सुलझाने का प्रयास किया। अधिकारियों से शिकायत की। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई तब जाकर धरने पर बैठे।
मौके पर पहुंचे एसडीएम को ग्रामीणों ने बताया कि अस्पताल में गंदगी का अंबार लगा रहता है। दवा के नाम पर पर्ची लिखकर दे दी जाती है और कह दिया जाता है कि बाजार से दवा खरीद लो। स्थिति यह है कि दवा की पर्ची लिखने के लिए भी कर्मचारी पैसे लेते हैं। अगर कोई महिला प्रसव के लिए आए तो उससे भी रुपये लेने में कोई संकोच नहीं होता। स्थानीय निवासी विवेकानंद पांडेय का कहना है कि अगर इस स्वास्थ्य केंद्र पर डाॅक्टरों की मनमानी खत्म नहीं होगी तो बड़े स्तर पर आंदोलन होगा।
यह समस्या केवल इन दो गांवों की नहीं है बल्कि जिले के कई ऐसे गांव हैं जहां चिकित्सा केंद्र तो हैं लेकिन डाॅक्टरों की मनमानी एक समस्या बनी है। कई संगठनों के लोगों ने बताया कि डाॅक्टरों की मनमानी के चलते मरीजों को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
(यह रिपोर्ट भारतीय प्रतिष्ठान और सेव द चिल्ड्रेन द्वारा किए जा रहे शोध पर आधारित है)