झारखंड के आदिवासी बहुल सिमडेगा से एक दिलचस्प खबर सामने आई है। रविवार की रात ठेठई टांगर प्रखंड के कंदाबेड़ा गांव में एक कमरे में सोई तीन बच्चियों की मौत सांप के काटने से हो गई। इनमें दो सगी बहनें हैं। यहां के लोगों पर अंधविश्वास इस कदर हावी है कि मौत के बाद इलाज के लिए अस्पताल ले जाने के बदले झाड़-फूंक में लग गये।
पुलिस को खबर मिली तो सोमवार को दिन में ठेठईटांगर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र ले गए जहां चिकित्सकों ने इन्हें मृत घोषित कर दिया। इन्हें थाना भी लाया गया। वहां भी चंगाई ( झाड़-फूंक) करने वाले का इलाज चलता रहा। इसके बावजूद परिजन नहीं माने। मरी हुई बच्चियों के जी जाने की उम्मीद दिये सिमडेगा से सटे पड़ोसी राज्य ओडिशा के राजगानपुर गांव ले गये। झाड़-फूंक के लिए। पुलिस भी बेसहारा दिखी, थानेदार सत्येंद्र कुमार के अनुसार लोगों के संतोष के लिए ओडिशा ले जाने दिया गया। बात ऊपर पहुंची तो वहां के निर्देश के बाद पुलिस ओडिशा से शाम में बच्चियों को ले आई। उनका पोस्टमार्टम होगा। सांप काटने से हुई मौत के मामले में पोस्टमार्टम के बाद ही आपदा प्रबंधन के प्रावधान के तहत परिजन को चार-चार लाख रुपये का मुआवजा मिल पायेगा।
मरने वालों में गौरीडूभा गांव की एडलिन, अंकिता लकड़ा और हर्षिता लकड़ा हैं। अंकिता और हर्षिता सगी बहनें जबकि एडलिन इनकी चचेरी बहन थी। रविवार को एक धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने के बाद एडलिन भी इन बहनों के घर ठेठईटांगड़ के ही कंदाबेड़ा में रह गई थी। रात में जमीन पर तीनों सोई थी उसी दौरान सांप के काटने की घटना घटी। स्थानीय पत्रकार वाचस्पति बताते हैं कि कंदाबेड़ा और गौरीडूभा सिमडेगा जिला मुख्यालय से कोई 30-35 किलोमीटर दूर है। जंगल से गुजरते हुए पहाड़ी पर बसे गांव हैं। कोई दो-तीन किलोमीटर पैदल का सफर करना पड़ता है। यहां अभी भी आदिवासियों में डॉक्टर से ज्यादा झाड़-फूंक पर भरोसा है। सामाजिक मान्यता के कारण पुलिस भी बहुत दबाव डालने की स्थिति में नहीं होती। माना जा रहा है कि तीनों की मौत रविवार की रात ही हो गई थी मगर उसके बाद परिजन फिर से झाड़-फूंक, चंगाई में लग गए।