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ऐसी नीतियों से कतई नहीं मिलेगा किसान को मुआवजा

केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से किसानों की मदद के बड़े-बड़े दावे किए जा रहे हैं। फसलों को हुए नुकसान के सर्वे की रस्म अदायगी भी जारी है। लेकिन मेहनत की कमाई लुटा चुके किसानों के हाथ से मुआवजा अभी दूर है। दरअसल, फसलों के बीमा और मुआवजे की प्रक्रिया में इतने झोल हैं कि किसान तक सिर्फ आश्‍वासन ही पहुंच पाते हैं।
ऐसी नीतियों से कतई नहीं मिलेगा किसान को मुआवजा

बेमौसम बारिश की मार झेल रहे ज्यादातर किसानों को अभी तक मुआवजा नहीं मिला। अगर कहीं मिला भी तो मामूली रकम वाले चेक की शक्ल में। जबकि लगातार दूसरे फसल चक्र में किसानों पर मौसम की मार पड़ रही है। पिछले साल मॉनसून देर से पहुंचा और पूरे मौसम के दौरान देश में सामान्य से करीब 12 फीसदी कम बारिश के चलते खरीफ की फसल खराब हुई थी। खरीफ के नुकसान की भरपाई रबी से करने की आस लगाए किसानों पर मार्च-अप्रैल की बारिश कहर बनकर टूटी। हरियाणा, पंजाब से लेकर राजस्थान, मध्य प्रदेश, यूपी, बिहार, महाराष्ट्र तक गेहूं, सरसों की खड़ी फसल तबाह हो गई है।

 

ऐसे में सवाल उठता है कि हर साल जोखिम के साये में रहने वाली खेती और किसानों को बचाने का कोई कवच क्यों नहीं है। किसानों की जो तबाही का मंजर सबको दिखाई दे रहा है, किसानों को खुदकुशी करने पर मजबूर कर रहा है। उसका मुआवजा कहां अटक जाता है? इस सवाल का जवाब हाल में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की घोषणा से मिल सकता है। उन्होंने ऐलान किया है कि आपदा से पीडि़त किसानों को अब 50 के बजाय 33 फीसदी फसल बर्बाद होने पर भी मुआवजा मिल सकेगा। हालांकि, प्रधानमंत्री ने यह नहीं बताया कि मुआवजे की सीमा सिर्फ 2 एकड़ तक सीमित रखी गई है। यानी 10 एकड़ खेती बर्बाद होने पर भी सिर्फ दो एकड़ का मुआवजा मिलेगा। दरअसल, खेती के जोखिम से किसानों को बचाने की योजनाएं ऐसी तमाम छोटी-बड़ी शर्तों के जाल में उलझी हैं। इनके शिकंजे से बचकर किसान तक पहुंचने वाली राहत 2 रुपये जितनी मामूली भी हो सकती है।

 

केंद्र की सत्ता में आने के बाद मोदी सरकार ने किसानों को फसल और आय की गारंटी दिलाने का वादा किया था। कृषि एवं खाद्य नीति के विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा बताते हैं कि फसल बीमा की मौजूदा योजनाएं पूरी तरह किसान विरोधी हैं। सैटेलाइट तकनीक इतनी विकसित होने के बावजूद किसान की पूरी फसल बर्बाद हो जाए तब भी संबंधित विकास खंड में हुए औसत नुकसान के आधार पर मुआवजा मिलेगा। यही वजह है कि 14 राज्यों में करीब 110 लाख हेक्टेअर में फसलों की बर्बादी के बावजूद आपदा राहत और फसल बीमे का मुआवजा किसानों की पहुंच से दूर है। सरकार ने सिंचित भूमि के लिए अधिकतम 18 हजार रुपये प्रति हेक्टेअर मुआवजा तय किया है जबकि एक हेक्टेअर में गेहूं की खेती बर्बाद होने पर किसान को कम से कम 55-60 हजार रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा। अपनी जमा-पूंजी खेती में लगाकर कुदरत की मार झेल रहे किसानों की आत्मघाती प्रवृत्ति इसी तरह के अर्थशास्त्र की उपज है।

 

सिर्फ बैंक और बीमा कंपनियों को लाभ

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के विशेषज्ञ डॉ. जेपीएस डबास बताते हैं कि फसल बीमा की योजनाओं से किसानों के बजाय बैंक और बीमा कंपनियों को लाभ पहुंचा है। राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना और मौसम आधारित बीमा योजनाओं के तहत दरअसल किसानों के बजाय उन्हें कर्ज देने वाले बैंकों का जोखिम कवर होता है। राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के 2013 में हुए सर्वे के अनुसार सिर्फ 5 फीसदी किसानों ने फसल बीमा करवाने में दिलचस्पी दिखाई है। कृषि बीमा का महंगा प्रीमियम भी इसकी एक बड़ी वजह है। नतीजा देश के करीब 14 करोड़ हेक्टेअर फसल क्षेत्र में सिर्फ डेढ़ करोड़ हेक्टेअर तक फसल बीमा हो पाया है। हैरानी की बात है कि आज के दौर में किसी कार के दुर्घटनाग्रस्त होने पर उसके बीमा की राशि मिल सकती है लेकिन खेती को हुए नुकसान का मुआवजा तभी मिलेगा जब पूरे इलाके में तय सीमा से ज्यादा नुकसान होगा। इस नुकसान के आकलन का तरीका और मानक भी पूरी तरह बीमा कंपनियों के पक्ष में झुके हुए हैं।

 

मोदी सरकार भी उसी राह पर 

अब मोदी सरकार एक नई फसल बीमा योजना लाने की तैयारी कर रही है। कृषि मंत्रालय से जुड़े सूत्रों का कहना है कि जल्द ही देश के 50 जिलों में नई योजना का पायलट प्रोजेक्ट शुरू हो जाएगा। इस योजना के तहत कृषि उत्पादों को कीमत में उतार-चढ़ाव के जोखिम से बचाने का दावा किया जा रहा है। लेकिन इस नई योजना में मुआवजे की प्रक्रिया भी पुरानी योजनाओं की तरह किसान विरोधी प्रतीत होती है। योजना के ड्राफ्ट के मुताबिक, इस योजना में भी जिले में हुए औसत नुकसान का अधिकतम 70 फीसदी ही मुआवजा मिल सकेगा। इसी तरह न्यूनतम समर्थन मूल्य से नीचे कीमतों में गिरावट पर सिर्फ 20 फीसदी मुआवजा या निश्चित आय मिलेगी। यानी अगर गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1450 रुपये प्रति क्विंटल है और किसानों को बाजार में 950 रुपये के भाव पर बेचना पड़ता है तो नई बीमा योजना के तहत किसानों को अधिकतम 1050 रुपये तक का मुआवजा मिलेगा, जो करीब 100 रुपये बैठेगा।

 

सिर्फ 4 नूमनों के आधार पर फैसला 

सरकार और बीमा कंपनियों ने आपदा से फसलों को हुए नुकसान के आकलन का तरीका ऐसा बनाया है कि फसल चौपट होने के बावजूद किसानों को न तो समय पर मुआवजा मिल पाता है और न ही पर्याप्त राहत। संशोधित राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना के तहत पंचायत स्तर पर फसलों को हुए नुकसान के लिए जो सर्वे होगा उसमें प्रमुख फसलों के सिर्फ 4 नमूने लिए जाएंगे। यानी अगर ये चार नमूने सही निकले तो बाकी किसी किसान की कितनी भी फसल बर्बाद हो जाए, उसे मुआवजा नहीं मिलेगा। भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्‍ता राकेश टिकैत बताते हैं कि फसल बीमा योजनाओं के नियम और शर्तें नौकरशाह और बीमा कंपनियों ने मिलकर तय कर ली हैं। किसान तक तो फसल बीमा का फायदा पहुंच ही नहीं पाता। हाल में खराब हुई फसलें और आत्महत्या करते किसान इसका जीता-जागता उदाहरण हैं।

 

 

 

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