सिर्फ 16.50 लाख ग्रामीण परिवार स्वत: वंचितों की श्रेणी में
एसईसीसी 2011 के मुताबिक, देश में कुल 24.39 करोड़ परिवार हैं, जिसमें से करीब 73.43 फीसदी यानी 17.91 करोड़ परिवार ग्रामीण इलाकों में रहते हैं। इस जनगणना में 10 हजार रुपये से ज्यादा मासिक आय, मोटर वाहन, आयकरदाता, ढाई एकड़ से ज्यादा सिंचित भूमि जैसे कुल 14 मानकों के आधार पर ग्रामीण परिवारों को बेहद वंचित की श्रेणी से स्वत: ही बाहर रखा है। इसी तरह बेघर, बंधुआ मजदूरी से मुक्त, सिर पर मैला ढोने जैसे 5 मानकों के आधार पर परिवारों को खुद-ब-खुद वंचित माना गया है। हैरानी की बात है कि पद्धति के आधार पर ग्रामीण भारत में सिर्फ 16.50 लाख यानी एक फीसदी से भी कम परिवार स्वत: वंचित की श्रेणी में आए हैं। जबकि केंद्र सरकार के अत्योदय कार्यक्रम में अत्यंत निर्धन माने जा रहे परिवारों की तादाद करीब दो करोड़ है। जबकि दूसरी तरफ, 17.91 करोड़ ग्रामीण परिवारों में से 7.05 करोड़ परिवार यानी करीब 39 फीसदी खुद ही वंचित ही श्रेणी से बाहर कर दिए गए हैं। बेहद गरीब और वंचितों की तादाद को कम दिखाने वाले इन आंकड़ों के आधार पर मोदी सरकार खाद्य सुरक्षा कानून और मनरेगा जैसी सामाजिक योजनाओं का दायरा सीमित करने की पैरवी कर सकती है। खाद्य सुरक्षा विशेषज्ञ बिराज पटनायक ने बेहद कम परिवारों को स्वत: ही वंचितों की श्रेणी में शामिल करने पर हैरानी जताते हुए जनगणना के तरीकों और आपत्तियों के निवारण की प्रक्रिया पर सवाल खड़े किए हैं।
आधी से ज्यादा ग्रामीण आबादी अस्थायी मजदूर
भले ही एक फीसदी से भी कम ग्रामीण आबादी को स्वत: ही वंचितों की श्रेणी में रखा गया लेकिन आधी से ज्यादा ग्रामीण आबादी अस्थायी मजदूरी पर निर्भर है। ग्रामीण इलाकों में रहने वाले 9.16 करोड़ यानी करीब 51 फीसदी परिवारों की जीविका का मुख्य स्रोत अस्थायी मजदूरी हैं जबकि करीब 30 फीसदी लोग खेती की आय पर निर्भर हैं। ग्रामीण इलाकों में आधी से ज्यादा आबादी का अस्थायी मजदूरी पर निर्भर होना, देश में विकास के दावों की कड़वी सच्चाई को उजागर करता है।
8.69 करोड़ परिवार किसी न किसी आधार पर वंचित
सामाजिक आर्थिक एवं जाति जनगणना में 48.52 फीसदी ग्रामीण परिवार किसी न किसी आधार पर वंचितों की श्रेण्ाी में रखे गए हैं। इस तरह के वंचित परिवारों की संख्या 8.69 करोड़ है। नए आंकड़ों से इतना तो जाहिर है कि इन 8.69 करोड़ वंचित परिवारों को किसी न किसी प्रकार की सरकारी मदद की अत्यंत आवश्यकता है। गौरतलब है कि खाद्य सुरक्षा कानून में तहत 75 फीसदी ग्रामीण परिवारों को सस्ती दरों पर अनाज मुहैया कराने का प्रावधान है, जिनकी संख्या एसईसीसी 2011 के हिसाब से करीब 13.4 करोड़ बैठती है। लेकिन इस गणना में सिर्फ 8.69 करोड़ परिवारों को ही किसी न किसी आधार पर वंचित माना गया है।
ग्रामीण भारत में 3.86 करोड़ एससी/एसटी परिवार
सामाजिक आर्थिक व जाति जनगणना के अनुसार ग्रामीण भारत में कुल 3.86 करोड़ यानी 21.53 फीसदी परिवार अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति के हैं।
30 फीसदी भूमिहीन परिवार
ग्रामीण संकट का अंदाजा जनगणना में सामने आए इस आंकड़े से भी लगता है कि ग्रामीण भारत में 5.37 करोड़ यानी करीब 30 फीसदी भूमिहीन परिवार हैं, जिनमें से अधिकांश मजदूरी के जरिये अपनी आजीविका कमाते हैं।
2.37 करोड़ ग्रामीण परिवारों के पास सिर्फ एक कमरा और कच्ची छत
हालिया आंकड़ों के अनुसार, ग्रामीण भारत में 2.37 करोड़ यानी करीब 13.25 फीसदी परिवारों सिर्फ एक कमरे, कच्ची मकान और कच्ची छत के मकान में रहने के लिए मजबूर हैं। वर्ष 2022 तक सबको आवास देने का दावा करने वाली माेदी सरकार के लिए यह आंकड़ा एक नई चुनौती पेश कर रहा है।
4.21 करोड़ परिवारों में 25 साल से ऊपर कोई पढ़ा-लिखा नहीं
ग्रामीण इलाकोें में 23.52 फीसदी यानी 4.21 करोड़ परिवारों में 25 साल से ऊपर का कोई व्यक्ति पढ़ा-लिखा नहीं है।
सरकारी योजनाओं में होगा नए आंकड़ों का इस्तेमाल
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कराई गई सामाजिक आर्थिक व जाति जनगणना के आंकड़ों का इस्तेमाल सरकार विकास से जुड़ी विभिन्न योजनाओं में करेगी।