इससे आसपास जातिगत हिंसा और फैलने की आशंका है हालांकि नागौर के पुलिस अधीक्षक इसे जातिगत हिंसा या दलित उत्पीड़न की घटना मानने से इनकार करते हैं। वह इस हिंसा-प्रतिहिंसा को आपसी रंजिश का नतीजा बताते हैं।
पुलिस के इस रवैये की आलोचना करते हुए मानवाधिकार संगठन पीयूसीएल ने अफसोस प्रकट किया है कि सामाजिक हिंसा की इतनी बड़ी वारदात के तीन दिन गुजर जाने के बावजूद स्थानीय पुलिस अब तक किसी को गिरफ्तार नहीं कर सकी है। न पहली हत्या के मामले में, न बाद में तीन दलितों की हत्या और उनकी औरतों के साथ बलात्कार के आरोपों में। पीयूसीएल, राजस्थान के अनुसार गांव की दलित महिलाओं के साथ स्थानीय दबंगों ने बलात्कार भी कियाः उनके गुप्तांगों के साथ छेड़छाड़ की गई और उनमें रॉड डालने की कोशिश की गई। दबंगाें की हिंसा मे कुल 20 लोग घायल बताए जाते हैं।
राजस्थान पीयूसीएल के अध्यक्ष प्रेमकृष्ण शर्मा द्वारा जारी विज्ञप्ति में आरोप लगाया गया है कि दलितों पर प्रतिहिंसा की घटना स्थानीय पुलिस की देखरेख में हुई। पीयूसीएल ने यह भी कहा कि सवर्ण व्यक्ति की हत्या के बाद यदि पुलिस तत्काल कार्रवाई करती तो मामला इतना संगीन रूप नहीं लेता। स्थानीय पुलिस पर पूर्वाग्रह के आरोपों के संदर्भ में पीयूसीएल ने पूरे घटनाक्रम की सीबीआई जांच की मांग की है। पीयूसीएल के अनुसार यह हिंसा दलितों की जमीन पर कब्जे की दबंगों की कोशिश के कारण हुई।
स्थानीय लोगों के अनुसार एक जाति पंचायत ने दलितों पर इस हमले को नियोजित किया। दलितों के अनुसार पंचायत उन्हें बेदखल का उनकी जमीन पर कब्जा करना चाहती थी।