मैंगो ग्रोअर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष इंसराम अली ने आज यहां भाषा को बताया कि इस बार पेड़ों पर जबर्दस्त बौर (फूल) है। अगर हफ्ते भर तक मौसम इसी तरह सूखा रहा तो आम का उत्पादन 50 लाख मैट्रिक टन से अधिक हो सकता है, जो खुद में एक रिकॉर्ड होगा। पिछले साल 44 लाख मैट्रिक टन आम का उत्पादन हुआ था, जो अब तक का सर्वाधिक उत्पादन है।
उन्होंने बताया कि आम के पेड़ों पर इस बार इतना बौर आया है जितना कि पिछले 15-20 साल में नहीं देखा गया था। हाल-फिलहाल तो आंधी-पानी का दौर चलने का अनुमान नहीं है और अगर एक हफ्ते तक मौसम ऐसा ही रहा तो बौर मजबूत हो जाएगा और बागों में आम की फसल लहराएगी। अली ने बताया कि आम उत्पादकों को सरकार की तरफ से अपेक्षित सहयोग नहीं मिल पा रहा है। अगर सरकार की मदद मिले तो सोने पे सुहागा हो सकता है।
उन्होंने आरोप लगाया कि दशहरी की ब्रांडिंग के लिए उत्पादकों के स्तर पर तो प्रयास किए जा रहे हैं, लेकिन सरकार इस मौके की अनदेखी कर रही है। सरकार को प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की तर्ज पर औद्यानिकी फसलों को होने वाले नुकसान की भरपाई के लिए राज्य स्तर पर कोई योजना चलानी चाहिए।
अली ने बताया कि मैंगो ग्रोअर्स एसोसिएशन की अर्से पुरानी मांग है कि सरकार के अधीन संस्था मंडी परिषद द्वारा निर्यात में खर्च होने वाले विमान किराये की मद में दिए जाने वाले अनुदान को 40 प्रतिशत से बढ़ाकर 80 प्रतिशत किया जाए। एक बार जब दशहरी आम विदेश के बाजार में पैठ बना ले तो फिर इस अनुदान को कम भी किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि सरकार अगर सेब की तरह आम की पैकेजिंग पर भी अनुदान दे तो इससे उत्पादकों की और मदद हो सकती है।
अली ने बताया कि सरकार द्वारा अनदेखी से परेशान होकर बड़ी संख्या में आम उत्पादकों ने यह काम छोड़ दिया है। उन्होंने आंकड़ा देते हुए बताया कि वर्ष 2013 में करीब 12 हजार हेक्टेयर में फैले आम के बाग काट दिण् गण् और उनके मालिकों ने उस जमीन को दूसरे कामों में इस्तेमाल कर लिया। उन्होंने बताया कि लखनऊ के मलिहाबाद के अलावा सहारनपुर, उन्नाव, बाराबंकी, प्रतापगढ़, हरदोई, अमरोहा, मेरठ और बुलंदशहर की आम पट्टी में इस वक्त करीब ढाई लाख हेक्टेयर का रकबा है। जब तक फसल अच्छी हो रही है, तब तक तो ठीक है लेकिन अगर मौसम की मार पड़ी तो सरकार की अनसुनी से बेजार आम उत्पादक और भी लाचार हो जाएंगे।