Advertisement

ये बच्चे बदललेंगे कल की तस्वीर

दिल्ली का इंडिया हैबिटैट सेंटर में रोज की तरह गहमा गहमी है। यहीं के एक हॉल में बिहार के अलग-अलग जिले से कुछ बच्चे आए हुए हैं, जोश और आत्मविश्वास से भरे हुए। अपनी बात कहने के लिए तत्पर।
ये बच्चे बदललेंगे कल की तस्वीर

कोमल कुमारी नवीं कक्षा में पढ़ती है। दूसरे बच्चों के मुकाबले वह कम बोलती है, पर है धुन की पक्की। बिहार के शादीपुर जिले में पढ़ने वाली कोमल ने अपनी एक सहेली की शादी टलवा दी। क्योंकि कक्षा में होने वाले ‘सेशन’ में उसे बताया गया था कि बाल-विवाह कानूनन अपराध है। उसने न सिर्फ अपनी सहेली के माता-पिता को समझाया बल्कि उन्हें पुलिस की धमकी भी दी।

कोमल की तरह नौशाद अली और सबा रिजाय भी ऐसे सेशन में जाते हैं और अपने साथियों को बताते हैं कि गुस्सा करने के क्या नुकसान हैं और अच्छे स्वास्थ्य के लिए क्या बातें ध्यान में रखी जानी चाहिए। नौशाद नवीं में पढ़ते हैं और दोस्तों को समझाते हैं कि यदि वे लोग लड़कियों को परेशान करेंगे तो हो सकता है उनके माता-पिता उन्हें स्कूल न भेजें। लड़की और लड़के में कोई फर्क नहीं उन्हें भी बराबर मौके मिलना चाहिए। नौशाद कहते हैं, ‘मेरे दोस्त लड़कियों से चिढ़ते थे। कहते थे, इन लोगों में दिमाग नहीं होता और ये लोग क्यों स्कूल चली आती हैं। फिर मैंने उनसे कहा, उन्हें भी सीखने दो। इसके बाद अब वे लोग भी लड़कियों की इज्जत करने लगे हैं।’

कोरस्टोन इंडिया फाउंडेशन और डेविड एंड ल्यूसिल पैकर्ड फाउंडेशन मिल कर यूथ फर्स्ट कार्यक्रम चलाते हैं। इस कार्यक्रम में नई पीढ़ी में शिक्षा, स्वास्थ्य और आत्मस्वाभिमान का पाठ पढ़ाया जाता है। स्कूली बच्चों के लिए यह बहुत जरूरी है कि वे अपने सहपाठी चाहे लड़का हो या लड़की से अच्छा व्यवहार करना सीखें।

 

इस तरह के सेशन लेने वाली सुशीला कुमारी पटना जिले के मनेर प्रखंड के ग्राम नगवां टोला से दिल्ली आई हैं। बहुत आत्मविश्वास से वह कहती हैं, ‘प्यार सबसे बड़ी भावना है। इसे कितने लोग जानते हैं। माफी बहुत छोटा सा शब्द है लेकिन इसके मायने बड़े हैं। हम बच्चों को यही सिखाते हैं कि कैसे अपनी बात को दूसरों को समझाएं और दृढ़ता सीखें।’ यह बराबरी का व्यवहार मूलभूत अधिकार है, जिसके लिए सभी को काम करना होगा। कुमकुम कुमारी उत्क्रमित माध्यमिक विद्यालय नयकारोल मनेर में अध्यापिका हैं। वह कहती हैं, ‘मैं पहले इस कार्यक्रम का हिस्सा होना नहीं चाहती थी। स्कूल में पहले ही इतने काम थे। लेकिन जब अपनी बात रखने के तरीके सीखे तो लगा इस श्रृंखला को आगे बढ़ाया जाना चाहिए।’

अब आप हिंदी आउटलुक अपने मोबाइल पर भी पढ़ सकते हैं। डाउनलोड करें आउटलुक हिंदी एप गूगल प्ले स्टोर या एपल स्टोर से
Advertisement
Advertisement
Advertisement
  Close Ad