उच्चतम न्यायालय ने उस जनहित याचिका पर बिहार सरकार और भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (एनएचएआई) समेत अन्य से सोमवार को जवाब मांगा, जिसमें बिहार में पिछले कुछ हफ्तों में कई पुल ढह जाने के मद्देनजर राज्य में पुल की सुरक्षा और स्थिरता को लेकर चिंताएं व्यक्त की गई हैं।
भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जनहित याचिका पर बिहार सरकार तथा अन्य को नोटिस जारी किए। याचिका में उन पुल की पहचान करने के लिए एक संरचनात्मक ऑडिट और एक विशेषज्ञ समिति गठित करने के लिए दिशा-निर्देश दिए जाने का अनुरोध किया गया है, जिन्हें इसके निष्कर्षों के आधार पर या तो मजबूत बनाया जा सकता है या ध्वस्त किया जा सकता है।
बिहार और एनएचएआई के अलावा शीर्ष न्यायालय ने सड़क निर्माण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, बिहार राज्य पुल निर्माण निगम लिमिटेड के अध्यक्ष और ग्रामीण कार्य विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को भी नोटिस जारी किए।
वकील ब्रजेश सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका में राज्य में पुल की सुरक्षा और स्थिरता को लेकर चिंताएं व्यक्त की गई हैं। बिहार में मानसून के दौरान भारी बारिश होने से अक्सर बाढ़ की समस्या सामने आती है।
याचिका में एक उच्च स्तरीय विशेषज्ञ समिति गठित करने के अलावा केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के मानदंडों के अनुसार पुल की निगरानी करने का भी अनुरोध किया गया है। याचिकाकर्ता ने कहा कि यह गंभीर चिंता का विषय है कि बिहार भारत में बाढ़ के लिहाज से सबसे अधिक संवेदनशील राज्य है। राज्य में बाढ़ से प्रभावित होने वाला कुल क्षेत्र 68,800 वर्ग किलोमीटर है, जो उसके पूर्ण भौगोलिक क्षेत्र का 73.06 फीसदी है।
याचिकाकर्ता ने कहा, ‘‘अत:, बिहार में पुल गिरने की इस तरह की आए दिन होने वाली घटना अधिक विनाशकारी है, क्योंकि इससे बड़े पैमाने पर लोगों का जीवन खतरे में है। इसलिए लोगों की जान बचाने के लिए इस अदालत के तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता है, क्योंकि निर्माणाधीन पुल बनने से पहले ही ढह जाते हैं।’’
पुल ढहने की घटनाओं के मद्देनजर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने सड़क निर्माण और ग्रामीण कार्य विभाग को राज्य के सभी पुराने पुल का सर्वेक्षण करने और तत्काल मरम्मत की आवश्यकता वाले पुल की पहचान करने का निर्देश दिया है।