क्या भारत में स्थापित प्रतीकों और मूल्योंसे किसी को असहमत होने का अधिकार नहीं है?
क्या काटजू सिर्फ लोगों का ध्यान खींचने को ऐसा बयान दे रहे हैं या वह गांधी और बोस की ऐतिहासिक भूमिका से असहमत उनकी जायज आलोचना कर रहे हैं?
क्या किसी भी व्यक्ति को आलोचनाओं से परे मान लेना लोकतांत्रिक है?
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