यथार्थ की खुरदरी सतह से सपनों की मखमली जमीन, आंखों के खारे पानी से दबे पांव चुपचाप चली आने वाली रात की सरगोशियों के एहसासात को अपनी कलम के जरिए कागज पर उतारने वाले अनुभवी और जाने माने लेखक गीतकार गुलजार ने कविताओं के अपने नए संग्रह को दूर आसमान की दुनिया से धरती की तरफ झुकते प्लूटो को समर्पित किया है।
अपने नए संग्रह प्लूटो में भी गुलजार की कलम रिश्तों, कुदरत, वक्त और खुदा से उनके ताल्लुकात की गलियों में घूमती नजर आती है, जिसमें गुलजार की वही जानी पहचानी कभी तल्ख तो कभी बेहद नफीस कैफियत और शब्दों के एकदम अलहदा मायने नजर आते हैं। गुलजार की रचनाओं का निरूपमा दत्त ने अंग्रेजी में तर्जुमा किया है। हार्परकोलिंस इंडिया ने इस किताब को प्रकाशित किया है और पहली बार ऐसा हुआ है कि इसमें गुलजार के कुछ अपने रेखाचित्र भी हैं।
गुलजार कहते हैं, हाल ही में प्लूटो ने ग्रह का अपना दर्जा खो दिया है। वैग्यानिकों ने प्लूटो से कहा, दूर हटो... हम तुम्हें अपने नौ ग्रहों के परिवार में शामिल नहीं करते... तुम उन जैसे नहीं हो। बहुत अर्सा पहले मैंने भी अपना मुकाम खो दिया था, जब मेरे परिवार ने कहा, कारोबारियों के परिवार में एक मिरासी का क्या काम। उनकी खामोशी के मायने थे कि तुम हमारे जैसे नहीं हो।
वह कहते हैं, प्लूटो को इस तरह दुत्कारे जाने पर मेरा दिल दुख से भर गया। हालांकि वह बहुत दूर है... बहुत छोटा है... इसलिए मैंने मेरी सारी कविताएं उसके नाम कर दीं। कुछ लम्हे इतने छोटे होते हैं कि पल में गुजर जाते हैं, हम अकसर उन्हें पकड़ नहीं पाते, मुझे उन्हीं लम्हों को पकड़ना पसंद है। गुलजार के अनुसार इस संग्रह की 111 कविताओं में से बहुत सी कविताएं रवायत से बंधी नहीं हैं और ऐसा होना कुछ गलत भी नहीं है।
दत्त का कहना है कि गुलजार उन छोटी-छोटी बातों को कलमबंद करने में माहिर है, जो उनके लिए मायने रखती हैं। कुछ नन्हीं सी बातें, कुछ छोटे से लम्हे वह बड़ी खूबसूरती से पकड़ लेते हैं। छोटे-छोटे करिश्में उन्हें जिग्यासा से भर जाते हैं।