कोलकाता के पड़ोस में स्थित बोकुलबागान, किद्दरपुर, हिंदुस्तान पार्क, भोवानीपुर, गांगुली बागान, सरत बोस रोड तथा बाग बाजार ऐसे इलाके हैं जहां आलीशान मकान हैं। उन्होंने कहा कि इन्हें विरासत घोषित किया जाना चाहिए और शहरीकरण को नए सिरे से परिभाषित करने के किसी भी प्रयास में इनका ध्यान रखा जाना चाहिए।
कोलकाता के वास्तुशिल्प पर हाल ही में गार्डियन में एक लेख लिखने वाले चौधरी कहते हैं कि उत्तरी कोलकाता में अभी भी ऐसी बहुत सी इमारतें हैं जो अपनी अनूठी वास्तुकला की बोलती तस्वीरों जैसी लगती हैं। इन्हें या तो ढहने के लिए छोड़ दिया गया है या वे अपनी मरम्मत और देखभाल की गुहार लगा रही हैं। चौधरी ने कहा, ‘इन मकानों की जो वास्तुकला है, वह न तो नव गॉथिक है और न ही नवजागरण शैली की है बल्कि ये दोनों का मिश्रण है जो शहर के चरित्र को संवारती है।’
वह कहते हैं, लोग इन खूबसूरत इमारतों के इतिहास और उनकी वास्तुशैली पर ध्यान दिए बिना उन्हें गिरा रहे हैं। हमें उनके संरक्षण के लिए नए दिशा-निर्देश और नए कानून बनाने चाहिए।
चौधरी कोलकाता को ऐसा आाधुनिक शहर बताते हैं जिसने 19वीं सदी से खुद अपनी पहचान बनाई और 80 के दशक तक सांस्कृतिक केंद्र रहा। प्रख्यात लेखक ने इस वर्ष मई में पश्चिम बंगाल सरकार को लिखे एक पत्र में कहा था, इस प्रकार के उपाय कोलकाता के लिए नए नहीं हैं। दुनियाभर में सभी बड़े शहरों, चाहे वे यूरोप के लंदन, बर्लिन पेरिस हों या उत्तर और लातिन अमेरिका के शहर हों, वहां इस प्रकार के कानून हैं जो मौजूदा इमारतों को ढहाए जाने को प्रतिबंधित करते हैं।