कमानी सभागार में आयोजित एक भव्य समारोह में आज साहित्य अकादेमी पुरस्कार 2014 दिए गए। कुल 24 भारतीय भाषाओं में प्रतिवर्ष दिए जाने वाले इस प्रतिष्ठित पुरस्कार में एक लाख रुपये का चेक, उत्कीर्ण ताम्र फलक और शॉल प्रदान किए जाते हैं। अकादेमी के अध्यक्ष प्रो. विश्नाथ प्रसाद तिवारी ने पुरस्कृत लेखकों को अकादेमी पुरस्कार प्रदान किए। अकादेमी के उपाध्यक्ष चंद्रशेखर ने पुरस्कृत लेखकों का स्वागत किया गया। पुरस्कृत बांग्ला लेखक उत्पल कुमार बासु और अंग्रेजी लेखक आदिल जस्सावाला अस्वस्थ होने के कारण नहीं आ सके उनकी जगह यह पुरस्कार उनके परिवारजनों ने ग्रहण किए।
अकादेमी के अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि सभी पुरस्कृत लेखक हमारे लोक की आवाज हैं। साहित्य मौन को मुखर करता है और सन्नाटे को शब्द देता है। साहित्य ने गांधी जी से पहले स्वदेशी और निज भाषा का नारा दिया था। आगे उन्होंने कहा कि सत्ता कोई भी हो, चाहे धर्म की, राजसत्ता या विचारों की, वह जनविरोधी रूप अख्तियार कर लेती है। आज हम तकनीकी रूप से सक्षम तो हुए हैं लेकिन तकनीक भाव विरोधी होता है। भाव तो साहित्य ही बचा सकता है। उन्होंने पूरे देश में मनाए जा रहे साहित्योत्सवों की भीड़ में साहित्य अकादेमी के इस गंभीर उत्सव की प्रशंसा करते हुए सभी पुरस्कृत लेखकों को बधाई दी।
पुरस्कार समारोह के अंत में मुख्य अतिथि केदारनाथ सिंह ने सभी पुरस्कृत रचनाकारों को बधाई देते हुए कहा कि भारतीय सृजन की विलक्षण विविधता ही हमारी सबसे बड़ी विषेशता है। आगे उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य बीसवीं सदी के हैंगओवर से निकलकर नए रास्ते खोज रहा है और इस नए रास्ते का सूर्योदय पूर्वोत्तर से हो रहा है। उन्होंने अलक्षित भाषाओं और उनके साहित्य पर ध्यान दिए जाने की जरूरत पर बल दिया और साहित्य अकादेमी की प्रशंसा करते हुए कहा कि अकादेमी इन सबके विकास के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण काम कर रही है। अकादेमी के उपाध्यक्ष चंद्रषेखर कंबार ने अंत में सभी के प्रति धन्यवाद ज्ञापित किया।
कार्यक्रम के प्रारंभ में अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवास राव ने अकादेमी की उपलब्धियों की चर्चा करते हुए लेखकों और उपस्थित श्रोताओं का स्वागत किया।
अकादेमी की चित्र प्रदर्शनी का उद्घाटन करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने कहा कि देश की प्रत्येक भाषा, अपने प्रदेश के साथ-साथ देश के जनजीवन को अंकित करती है और अनेकता में एकता के हमारे सूत्र को मजबूती प्रदान करती है। आगे उन्होंने कहा कि साहित्य अकादेमी सभी भारतीय भाषाओं के मिलन का मंच है। इन भाषाओं के संवाद से ही पाठकों का विस्तार होता है। इस अवसर पर साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष प्रो. विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने कहा कि साहित्य अकादेमी अपने कार्यक्रम जन-जन तक और छोटे-से-छोटे कस्बे तक पहुंचाना चाहती है। पिछले वर्ष की हमारी उपलब्धियां इसी का प्रमाण है। हमने विगत वर्षों से लगभग दोगुने कार्यक्रम इस वर्ष किए हैं।
अन्य भारतीय भाषा के साथ हिंदी के लिए रमेशचंद्र शाह और उदू् के लिए मुनव्वर राणा को इस साल का अकादेमी पुरस्कार दिया गया है।