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“स्टील सेक्टर सुधरने लगा तो सुधर रही बैंकों की सेहत”

मंदी से जूझ रहे स्टील सेक्टर में अब सुधार होता दिख रहा है, जिसका सबसे ज्यादा फायदा बैंकों को मिल रहा है।...
“स्टील सेक्टर सुधरने लगा तो सुधर रही बैंकों की सेहत”

मंदी से जूझ रहे स्टील सेक्टर में अब सुधार होता दिख रहा है, जिसका सबसे ज्यादा फायदा बैंकों को मिल रहा है। यही नहीं, मंदी की वजह से परेशान छोटे स्टील कारोबारियों की स्थिति भी सेक्टर के पटरी पर आने से सुधरी है। केंद्रीय इस्पात मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह आश्वस्त हैं कि हालात तेजी से सुधरेंगे। आखिर स्टील सेक्टर के लिए आगे की रणनीति क्या है, आने वाले दिनों में उनके गृह राज्य हरियाणा में क्या भूमिका रहेगी, इन सब सवालों पर उनसे आउटलुक के संपादक हरवीर सिंह और एसोसिएट एडिटर प्रशांत श्रीवास्तव ने विस्तार से बातचीत की है। प्रमुख अंशः

 

स्टील सेक्टर में एक बार फिर से सुधार होता दिख रहा है लेकिन ये पूरी तरह से बाहरी कारकों की वजह से हो रहा है, ऐसे में क्या हमारी नीति हमेशा बाहरी कारकों पर निर्भर रहेगी?

देखिए, मैंने जब से मंत्रालय का काम-काज संभाला, मेरा मानना है कि इंडस्ट्री को इस इंडस्ट्रियल साइकल के दबाव से बाहर निकलना चाहिए। मेरा फोकस है कि हमें स्टील में हर तरह की कैटेगरी के स्टील का उत्पादन करना चाहिए। हमें उच्च गुणवत्ता वाले स्टील का उत्पादन करना चाहिए। इससे इंडस्ट्रियल साइकल की वजह से दूसरे स्टील के उत्पादों की मांग में जो कमी आएगी, उसे उच्च गुणवत्ता वाले उत्पादों के निर्यात से पूरा किया जा सकता है। यानी हमें केवल उप्तादन बढ़ाने पर फोकस नहीं करना चाहिए बल्कि गुणवत्ता पर भी फोकस करना होगा।

स्टील का उत्पादन पिछले चार साल में कैसा रहा है। साथ ही किन क्षेत्रों में खपत बढ़ी है?

पहली बार स्टील का उत्पादन 102 मिलियन टन हुआ है। यानी हम 3 अंकों में पहुंचे हैं। जो कि चार साल पहले 81 मिलियन टन था। यानी पिछले चार साल में मंदी के बावजूद 30 मिलियन टन उत्पादन बढ़ा है। इस दौरान निर्यात 132 फीसदी बढ़ा है। वहीं, आयात में 38 फीसदी की गिरावट आई है। इसी तरह स्टील उत्पादन क्षमता भी 102 मिलियन टन से बढ़कर 134 मिलियन टन तक पहुंच गई है। स्टील की सबसे ज्यादा खपत कंस्ट्रक्शन सेक्टर में होती है, जिसकी कुल खपत में 40 फीसदी हिस्सेदारी है। पिछले दो साल में सबसे तेजी से खपत इन्‍फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर और रेलवे में बढ़ी है। जिसकी वजह इन सेक्टर में बजट आवंटन बढ़ना रहा है। पिछले साल इन्‍फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर के लिए बजट में चार लाख करोड़ का आवंटन किया गया, जबकि मौजूदा साल में 5.96 लाख करोड़ रुपये का आवंटन हुआ है, जिससे स्टील की खपत में तेजी आई है। दूसरी प्रमुख मांग रेलवे से आई है। आज से दो साल पहले तक हम रेलवे को 6-6.5 लाख टन स्टील की आपूर्ति करते थे, जो कि पिछले साल 30 फीसदी बढ़कर 9.2 लाख टन हो गया। वहीं, मौजूदा साल में हम 14 लाख टन स्टील की आपूर्ति करेंगे। पिछले चार साल के दौरान प्रति व्यक्ति स्टील की खपत 57 किलोग्राम से बढ़कर 68 किलोग्राम हो गई है।

स्टील सेक्टर की कई कंपनियों पर कर्ज नहीं चुकाने की समस्या बनी हुई है, जिसकी वजह से बैंकों का एनपीए बढ़ा है। खास तौर से छोटे कारोबारियों पर इसकी मार पड़ी है, इसमें कैसे सुधार होगा?

एनसीएलटी (नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल) में शुरुआती दौर में छह कंपनियां पहुंचीं उनमें से पांच अकेले स्टील सेक्टर की थीं, जिससे सेक्टर की गंभीर स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। वैसे, एनसीएलटी में जाने से इसके परिणाम अच्छे मिलने लगे हैं। सेक्टर में जो सुधार हुआ है, उसकी वजह से बैंकों को फायदा हुआ है, उनके फंसे पैसों में से, 60-70 फीसदी तक वापस मिल गया है। जबकि उन्हें बड़े पैमाने पर पैसे डूबने का डर था। कारोबारी फिर से अपनी कंपनी को बचाने की कोशिश करने लगे हैं। इस बदलाव के कारण बैंकों को एक तरह से सांस मिल गई है। इस संकट से सबसे बड़ी समस्या सेकेंड्री स्टील इंडस्ट्री की थी। इसमें ज्यादातर छोटे कारोबारी हैं, जिन्हें बैंकों से कर्ज नहीं मिल रहा था। लेकिन अब जब सेक्टर में सुधार हो रहा है। उसकी वजह से छोटे कारोबारियों के प्रति बैंकों का रवैया बदलेगा, जिसका उन्हें फायदा मिलेगा। जहां तक सेकेंड्री स्टील में एनपीए का सवाल है तो स्टील सेक्टर में उसकी केवल चार फीसदी ही हिस्सेदारी है।

स्टील सेक्टर में पिछले चार साल में नौकरियां कितनी आई हैं, साथ ही वैश्विक स्तर पर घरेलू इंडस्ट्री को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए क्या कदम उठाए गए हैं?

सेक्टर में पिछले चार साल में 10 लाख नई नौकरियां आई हैं। हमने घरेलू इंडस्ट्री को प्रतिस्पर्धी बनाने के लिए एमआइपी (न्यूनतम आयात मूल्य) से शुरुआत की थी, जिसकी वजह से आयात 38 फीसदी गिरा है। इसके बाद एंटी डंपिंग ड्यूटी जैसे कदम उठाए गए। सुधार के बाद हमने अब इस तरह के कदमों में ढील भी दी है। इन कदमों की वजह से हमें गुणवत्ता सुधारने का मौका मिला। भारतीय मानक ब्यूरो (बीआइएस) मानकों को लाने से घरेलू इंडस्ट्री की गुणवत्ता भी सुधर गई। इस समय 86 फीसदी स्टील उत्पाद बीआईएस के अंदर आ गए हैं। हाल ही में एक सर्वे के अनुसार हमारी उत्पादन लागत चीन के बराबर पहुंच गई, जिसका सबसे ज्यादा फायदा सेकेंड्री स्टील इंडस्ट्री को मिलेगा।

स्टील सेक्टर में फ्यूचर के लिए क्या बड़े प्लान हैं?

यहां तक पहुंचने के बाद अब हमारा फोकस दूसरे अहम कदमों पर है, जिसमें सबसे अहम स्क्रैप नीति है। स्टील मंत्रालय ने इस पर चर्चा के लिए संबंधित मंत्रालयों को प्रस्ताव भेज दिया है। अकेले स्क्रैप नीति में ऑटोमोबाइल सेक्टर से सात मिलियन टन तक स्टील की खपत बढ़ जाएगी। हमारी एक समग्र नीति होगी, जिसमें दरवाजे, बिजली के खंभों से लेकर गाड़ियों तक के लिए नीति तैयार होगी । इससे हमारी आयात पर निर्भरता कम होगी। अभी हम 8.5 मिलियन टन स्क्रैप आयात करते हैं। दूसरा अहम कदम लौह अयस्क के इस्तेमाल को कम कर 35-40 फीसदी तक लाना चाहते हैं, जिससे हमारे भंडार भी लंबे समय तक सुरक्षित रह सकेंगे।

आर्सेलर मित्तल और सेल का संयुक्त उपक्रम अभी मूर्त रूप नहीं ले पाया है, अड़चन कहां आ रही है?

अभी हाल ही में संबंधित पक्षों की मीटिंग हुई है। दोनों पक्षों ने दो महीने का समय मांगा है। सभी पक्षों का मानना है प्रोजेक्ट में जरूरत से ज्यादा देरी हो गई है। कंपनियां एक दूसरे के उत्पाद की वजह से आपस में प्रतिस्पर्धी न बनें इस पर अभी क्या मैकेनिज्म होगा, वह तय नहीं हो पाया है। ऐसे ही कई छोटे-छोटे मुद्दे हैं जिन्हें जल्दी दूर कर लिया जाएगा।

राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को अब संवैधानिक दर्जा मिल गया है, हरियाणा में जिस तरह से जाट आरक्षण की मांग लंबे समय से हो रही है, ऐसे में आगे की क्या रणनीति होनी चाहिए?

आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद आरक्षण को लेकर नया अध्याय शुरू करना चाहिए। जाट आरक्षण आंदोलन चलाने वाले संगठनों को चाहिए कि वह अपने पक्ष को नए सिरे से आयोग के सामने रखे। अगर हम इसके जरिए आरक्षण ले सकेंगे, तो पिछली बार की तरह उसे न्यायालय की समीक्षा में असफल नहीं होना पड़ेगा। कुल मिलाकर आयोग को संवैधानिक दर्जा मिलने के बाद सरकार और आंदोलनकर्ताओं को नए सिरे से सोचना होगा। राज्य सरकार को नई परिस्थितियों के अनुसार कानून बनाना चाहिए। जिससे न्यायालय के सामने जाट आरक्षण का पक्ष मजबूत हो सके।

आपके गृह राज्य हरियाणा में आपकी राजनीतिक सक्रियता काफी कम हो गई है, क्या आगे चुनाव लड़ने का इरादा नहीं है?

45-46 साल का मेरा राजनीतिक कॅरिअर है। अलग से मुझे सक्रिय होने की जरूरत नहीं है। इस स्तर पर पार्टी जब भी चाहेगी मैं उसके लिए काम करने को तैयार हूं। पार्टी समय-समय पर मेरा इस्तेमाल भी करती रहती है। चुनाव नजदीक आ रहे हैं, पार्टी सभी अनुभवी नेताओं का इस्तेमाल करेगी। जहां तक लोकसभा चुनाव की बात है तो मुझे नहीं लड़ना है। मेरी राज्य सभा सदस्यता 2022 तक है। ऐसे में चुनाव लड़ने का सवाल ही नहीं है। अगर पार्टी मुझे बड़ी जिम्मेदारी देती है, तो मैं एक बार फिर से सक्रिय राजनीति में आ सकता हूं, वैसे, ये फैसला पार्टी को करना है। जहां तक भाजपा से कुछ मिलने की बात है तो मेरे योगदान को देखते हुए मुझे पार्टी ने बहुत कुछ दिया है, जिसके लिए मैं उसका आभारी भी हूं।

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