जनता दल (यूनाइटेड) के राष्ट्रीय महासचिव पवन वर्मा ने आउटलुक को विशेष इंटरव्यू में बताया है कि भाजपा के साथ गठबंधन का बिहार से बाहर विस्तार करने से पहले पार्टी को वैचारिक स्पष्टता लानी चाहिए। दिल्ली में भाजपा के साथ जदयू के गठबंधन पर पार्टी प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लिखा पत्र सार्वजनिक करने के एक दिन बाद वर्मा ने कहा है कि वह भविष्य की योजना पर जल्दी ही फैसला करेंगे। आउटलुक से साथ बातचीत में उन्होंने कहा कि 2017 में जब जदयू ने भाजपा से हाथ मिलाया था, उस समय पार्टी के अनेक शीर्ष नेता आशंकित थे। आउटलुक से बातचीत के प्रमुख अंशः
मंंगलवार को आप पटना में थे। पत्र सार्वजनिक करने के बाद क्या आपकी नीतीश कुमार से कोई संवाद हुआ हुआ?
मुझे उनकी ओर से कोई जवाब नहीं मिला है।
जदयू की आधिकारिक प्रतिक्रिया है कि आपका बयान आपकी निजी राय है और पार्टी से इसका कोई लेना-देना नहीं है। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?
जी हां, ये मेरे निजी विचार हैं। पार्टी का पदाधिकारी होने के नाते किसी राय को राष्ट्रीय अध्यक्ष तक पहुंचाना मेरा अधिकार है। मैंने यही किया है। मैंने कहा है कि पार्टी को वैचारिक स्तर पर ज्यादा स्पष्टता लाने की जरूरत है। पार्टी किस ओर बढ़ रही है और बिहार के बाहर भाजपा से गठबंधन किया जाए या नहीं, इस पर स्पष्टता की जरूरत है।
मैंने जो कहा है, उसका भाव और निष्कर्ष यही है। मैंने पार्टी को आगे बढ़ने से रुकने और मुद्दों पर वैचारिक स्पष्टता लाने के लिए कारण भी बताए हैं।
पत्र को सार्वजनिक किए जाने के पीछे क्या कारण है?
भाजपा के कई साल पुराने सहयोगी अकाली दल ने भी नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के मुद्दे पर मतभेद होने के कारण अपना वैचारिक नजरिया स्पष्ट किया है। उन्होंने भाजपा के साथ गठजोड़ न करने का फैसला किया है। इसलिए पार्टी को वैचारिक स्पष्टता लानी चाहिए।
पत्र में आपने यह भी कहा था कि नीतीश कुमार को भी आशंका थी कि भाजपा के नेतृत्व से देश खतरनाक दौर की ओर जा रहा है। आपने यह बात किस संदर्भ में कही थी।
निजी बातचीत उजागर करने की मेरी कोई मंशा नहीं थी। अगर मैंने यह शुरू किया तो मुझे बहुत लंबे पत्र लिखने होंगे। मेरा कहना था कि 2017 के बाद भी, जब हमने भाजपा के साथ हाथ मिलाया, उस समय शीर्ष नेतृत्व और कई मुद्दों पर पार्टी की दिशा को लेकर हमारी पार्टी के शीर्ष नेताओं के मन में आशंकाएं थीं। अब इन आशंकाओं को नजरंदाज नहीं किया जा सकता है। अगर आप कहते हैं कि एनआरसी लागू नहीं होगा और भाजपा कहती है कि एनआरसी लागू होगा तो मतभेद सामने आ गए। पार्टी को बैठकर समूची स्थिति पर विचार करना चाहिए और अपना रुख स्पष्ट करके फैसला करना चाहिए। उसके बाद ही भाजपा के साथ गठबंधन को बिहार से आगे ले जाना चाहिए।
आप दिल्ली में भाजपा के साथ गठजोड़ को लेकर या फिर सीएए, एनआरसी और एनपीआर पर वैचारिक स्थिति पर चिंतित हैं?
मैंने कहा है कि गठबंधन को बिहार के बाहर ले जाने से पहले पार्टी को अपना रुख स्पष्ट करने की आवश्यकता है। उदाहरण के लिए, सीएए और एनआरसी को लेकर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। पार्टी का इसके बारे में क्या रुख है। क्या वह सीएए का समर्थन करती है। लेकिन पार्टी ने कहा है कि एनआरसी लागू नहीं होगा और एनपीआर पर फैसला बाद में करेंगे।
पार्टी ने संसद में सीएए का समर्थन किया जबकि नीतीश कुमार कहते हैं कि अगर आप चाहते हैं तो हम बातचीत कर सकते हैं। यह वैचारिक स्पष्टता का अभाव है।
अब, अगर आप एनआरसी से इन्कार करते हैं तो आप सीएए को कब तक समर्थन करते रहेंगे? अमित शाह बार-बार कह चुके हैं कि सीएए और एनआरसी एक-दूसरे से जुड़े हैं। आपका क्या नजरिया है? पार्टी उन मुद्दों पर हमेशा के लिए अनिश्चित नहीं रह सकती है जो अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
कुमार इस पर गर्व करते हैं कि उनकी राजनीतिक सिद्धांतों पर आधारित है और उनके महान पुरुषों में महात्मा गांधी, जयप्रकाश नरायण और राम मनोहर लोहिया हैं जो कई मायनों में महान विचारक हैं।
आप और वरिष्ठ नेता प्रशांत किशोर दिल्ली चुनाव के स्टार प्रचारकों की सूची से गायब हैं। क्या यह कुमार की ओर से स्पष्ट संदेश है कि बागी रवैया स्वीकार नहीं किया जाएगा?
मुझे नहीं लगता है कि ऐसा कोई संदेश है। हम गठबंधन से ही सहमत नहीं हैं तो फिर हम स्टार प्रचारक कैसे हो सकते हैं?। आखिर इस तरह के फैसले पार्टी अध्यक्ष द्वारा ही लिए जाते हैं। मुझे इसमें कोई समस्या नहीं है। ये तकनीकी बिंदु हैं।
पत्र को सार्वजनिक करने के पीछे क्या यह भी एक कारण है?
नहीं। मैंने सार्वजनिक रूप से उन्हें लिखा है क्योंकि उन्होंने सीएए और एनआरसी पर कोई बयान नहीं दिया है। उन्होंने विधानसभा में कहा था कि सीएए पर आगे विचार िवमर्श किया जाएगा। लेकिन उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी ने एकतरफा तौर पर एनपीआर की प्रक्रिया के लिए तारीखें घोषित कर दीं।
सीएए और एनआरसी पर पार्टी के रुख को लेकर जदयू में असंतोष के तमाम स्वर उभर रेह हैं। क्या आप भी इसी राह पर आगे बढ़ेंगे?
मुझे जानकारी है कि पार्टी में कई आशंकाएं और चिंताएं उभर रही हैं। पूर्व सांसद और मौजूदा एमएलसी गुलाम रसूल बलयावी ने कुमार को खुला पत्र भेजकर कहा है कि सीएए-एनआरसी को समर्थन देने पर पार्टी के भीतर दोबारा चर्चा होनी चाहिए। दूसरे राष्ट्रीय महासचिव सहित कई अन्य नेता भी सहमत नहीं हैं।
मुख्य मुद्दा है कि गठबंधन का विस्तार करने के बारे में फैसला पार्टी के हित को ध्यान में रखकर और देश में माहौल को देखकर लेना चाहिए।
लेकिन केंद्रीय गृह मंत्री स्पष्ट रूप से कहा है कि सीएए को वापस लेने की कोई योजना नहीं है।
मैं शाह को कोई बड़ा लोकतंत्रवादी नहीं मानता हूं। इसलिए, उनका मानना है कि उनका साथ देना हो तो दो, नहीं तो आगे बढ़ो। उन्होंने सीएए और एनआरसी लागू करने का फैसला किया है। प्रधानमंत्री एनआरसी के बारे में जो कहते हैं, शाह ने सीएए के साथ एनआरसी को जोड़कर नौ बार वही दोहराया। वे इस पर आगे बढ़ेंगे जबकि देश का नजरिया कुछ और है। मेरा मानना है कि सरकारों को जनता की राय को समझना चाहिए और बातचीत करनी चाहिए।
अब आपकी क्या योजना है? अगर आपको नीतीश कुमार से कोई सकारात्मक जवाब नहीं मिला तो क्या आप पार्टी छोड़ देंगे?
मैंने कल ही पत्र भेजा है। मैं न सिर्फ अपने ताजा पत्र बल्कि पिछले पत्रों का भी जवाब मिलने के बाद अपने अगले कदम के बारे में फैसला करूंगा।