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इंटरव्यू । भूपेंद्र सिंह हुड्डा: ‘नेतृत्व परिवर्तन से ज्यादा जरूरी है एकजुटता’

“पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विपक्ष की भूमिका का जनादेश कांग्रेस को मिला है। हम जनादेश का...
इंटरव्यू । भूपेंद्र सिंह हुड्डा: ‘नेतृत्व परिवर्तन से ज्यादा जरूरी है एकजुटता’

“पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विपक्ष की भूमिका का जनादेश कांग्रेस को मिला है। हम जनादेश का सम्मान करते हैं”

हाल के विधानसभा चुनावों में पराजय के बाद कांग्रेस के नेतृत्व पर गहरे सवाल खड़े हुए और असंतुष्ट नेताओं के ‘जी-23’ के नेताओं ने कांग्रेस कार्यकारिणी में तीखे सवाल उठाए, जिसमें अध्यक्ष सोनिया गांधी ने खुद और राहुल और प्रियंका को नेतृत्व से अलग होने की पेशकश भी कर दी। इन नेताओं की अलग बैठक अपने अघोषित नेता गुलाम नबी आजाद के घर हुई। अगले ही दिन इस समूह में किसी एक समूचे राज्य में असर रखने वाले शायद इकलौते नेता, हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा असंतुष्ट नेताओं और कांग्रेस आलाकमान के बीच पुल बने और मुलाकातों का दौर शुरू हो गया। इसलिए फिर उठ खड़े होने की कांग्रेस की नई कोशिशों में हुड्डा महत्वपूर्ण कड़ी बन गए हैं। आउटलुक के हरीश मानव ने उनसे कांग्रेस की मौजूदा हालत और नेतृत्व पर कशमकश के साथ व्यापक सियासी मुद्दों पर चर्चा की। प्रमुख अंश:

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के प्रदर्शन को कैसे देखते हैं?

पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर में विपक्ष की भूमिका का जनादेश कांग्रेस को मिला है। हम जनादेश का सम्मान करते हैं।

माना जा रहा था कि उत्तराखंड और गोवा में कांग्रेस की सरकार आ रही है। चूक कहां हुई कि कांग्रेस वहां भी चूक गई?

इसे चूक नहीं कहेंगे। धर्मनिरपेक्ष कांग्रेस सत्ता के लिए समाज को धर्म के नाम पर नहीं बांटती तो क्या यह चूक है?

पंजाब भी कांग्रेस के हाथ से निकल गया। विधानसभा चुनाव से पहले संगठन और सरकार में बदलाव कांग्रेस के लिए ‘अपने पांव पर कुल्हाड़ी मारने’ जैसा साबित हुआ?

कांग्रेस की सरकार ने पंजाब में जनता के हित में कई कार्य किए मगर पंजाब के लोगों  ने इस बार बदलाव का मन बना लिया था। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि पंजाब में नेतृत्व परिवर्तन ऐन चुनाव के मौके पर न किया गया होता तो परिणाम बेहतर होता।

दिल्ली से आगे आम आदमी पार्टी (आप) की पंजाब में जीत को कैसे देखते हैं?

हार या जीत सामान्य लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा है। देखते हैं पांच साल में आम आदमी पार्टी पंजाब की जनता की उम्मीदों पर कितनी खरी उतरती है।

दो राज्यों में ‘आप’ की सरकार है। कांग्रेस भी दो राज्यों तक सिमट कर रह गई है। ‘आप’ अन्य राज्यों में भी विस्तार की तैयारी में है। अभी तक राष्ट्रीय राजनीति में विपक्ष की भूमिका में रही कांग्रेस की जगह क्या आम आदमी पार्टी लेगी?

आज भी देश में कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी दल है। देश भर में भाजपा के 1376 विधायकों के बाद दूसरे नंबर पर कांग्रेस के 690 विधायक हैं जबकि आम आदमी पार्टी के सिर्फ 156 विधायक हैं। 2018 के विधानसभा चुनाव में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने भाजपा को हराकर जीत दर्ज की थी। हरेक प्रदेश की राजनीतिक परिस्थिति भिन्न है।

बदले हालात में भाजपा की टक्कर में क्या कांग्रेस को क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन की राजनीति पर विचार करना चाहिए? क्या कांग्रेस से टूटकर बने क्षेत्रीय दलों जैसे ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी वगैरह को जोड़ने की कवायद की जानी चाहिए और क्या यह संभव है?

पहले से ही कुछ राज्यों में कांग्रेस का क्षेत्रीय दलों के साथ गठबंधन है। क्षेत्रीय दलों की विचारधारा कांग्रेस से मेल खाती है।

आम आदमी पार्टी के नेता कह रहे हैं कि राहुल गांधी के साथ मीटिंग से पहले अरविंद केजरीवाल के साथ आप की मीटिंग हुई। क्या यह दबाव की रणनीति थी कि उसके बाद राहुल गांधी ने मीटिंग के लिए आपको बुलाया? 

यह पूरी तरह से मनगढ़ंत कहानी है। 

हाल ही में आप की राहुल गांधी के साथ मीटिंग हुई। उसके बाद जी-23 के नेताओं की मीटिंग में भी आप शामिल हुए। पार्टी के प्रदर्शन को बेहतर करने के लिए आपने राहुल गांधी को कोई सुझाव दिया? 

पार्टी की बेहतरी और मजबूती के लिए कांग्रेस आलाकमान सबसे सुझाव लेता है। मेरा सुझाव भी पार्टी की एकजुटता और संगठन को मजबूत करने के लिए था।

‘कांग्रेस मुक्त भारत’ की बात भाजपा करती है, आज कांग्रेस के हालात वैसे ही क्यों होते जा रहे हैं? लगातार दो लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की हार के सिलसिले पर मंथन करके क्या कांग्रेस को बेहतरी के लिए गंभीरता से चिंतन करने की जरूरत है?

‘कांग्रेस मुक्त भारत’ भाजपा का राजनैतिक जुमला है। आज भाजपा जहां खड़ी है, वह ‘कांग्रेस युक्त’ भाजपा है। कांग्रेस से गए हमारे कई पुराने साथियों की वजह से ही आज भाजपा इस मुकाम पर है।

क्या समय की मांग कांग्रेस में नेतृत्व परिवर्तन की है? क्या गांधी परिवार के अलावा किसी और को नेतृत्व संभालना चाहिए? ऐसा कौन हो सकता है जिसकी अपील पूरे देश में हो सकती है?

जरूरत नेतृत्व परिवर्तन से अधिक एकजुटता की है। कांग्रेस की विचारधारा के प्रचार-प्रसार की जरूरत अधिक है।

यह धारणा बनी हुई है कि राहुल गांधी और प्रियंका नई कांग्रेस बनाना चाहते हैं और पुराने अनुभवी नेताओं से छुटकारा चाहते हैं। क्या यह संभव है?

ऐसी कोई धारणा नहीं है। यह मात्र दुष्प्रचार है।

कांग्रेस के बड़े नेताओं में पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के बारे में कहा जाता है कि उनके दरवाजे हर आम कार्यकर्ता के लिए खुले रहते थे। अब हरियाणा कांग्रेस के ही एक विधायक का वीडियो वॉयरल हुआ है कि ढाई साल हो गए उन्हें विधायक बने पर अभी तक वे पार्टी के शीर्ष नेताओं सोनिया गांधी और राहुल गांधी से नहीं मिल पाए। वहीं पीएम मोदी अपनी पार्टी के मेयर और पाषर्दों तक से मिलते हैं। शीर्ष नेताओं की आम कार्यकर्ता से दूरी भी कहीं कांग्रेस की इस हालत की एक वजह तो नहीं?

यह सही नहीं है। मैं ऐसा नहीं मानता। 

जी-23 में शामिल नेताओं में से ज्यादातर ‘ड्राइंगरूम पॉलिटिक्स’ करते रहे हैं। अप्रैल से जुलाई के दौरान राज्यसभा की कई सीटें खाली हो रही हैं, हो सकता है कि राज्यसभा में एंट्री के लिए ये नेता आलाकमान पर दबाव की रणनीति बना रहे हों?

पार्टी की बेहतरी के लिए कांग्रेस का हरेक नेता यथासंभव प्रयास कर रहा है। दबाव की राजनीति और रणनीति कांग्रेस का कल्चर नहीं है।

2024 के लोकसभा और विधानसभा चुनाव में केंद्र और हरियाणा में कांग्रेस की वापसी के लिए कामयाब रणनीति क्या हो सकती है?

एकजुटता से भाजपा की जन-विरोधी नीतियों का विरोध करना और लोगों की आवाज बनना प्रमुख विपक्षी दल के तौर पर कांग्रेस का काम है। इसे रणनीति मानें या जनभावना का सम्मान।

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