“मैंने तो नारी सशक्तीकरण के लिए हमेशा पहल की है”
दमन संभवत: वैवाहिक बलात्कार जैसे विषय पर बनी पहली भारतीय फिल्म थी। जब इस फिल्म का ऑफर लेकर कल्पना लाजमी आपके पास आईं, उस वक्त आप व्यावसायिक फिल्मों की शीर्ष अभिनेत्रियों में थीं। आपकी पहली प्रतिक्रिया क्या थी?
सच कहूं तो मैंने उस समय तक सार्थक फिल्मों की तरफ रुख करने का मन बना लिया था। मैं हमेशा नारी सशक्तीकरण और गर्ल चाइल्ड के लिए काम करती रही हूं और उनसे जुड़े मुद्दे मेरे दिल के करीब रहे हैं। मेरी हमेशा से राय रही है कि ईश्वर ने हमें नाम, यश, शोहरत सब कुछ दिया है और यह हमारा नैतिक दायित्व बना है कि हम समाज को कुछ वापस दें। सेलेब्रिटी के रूप में हमें उन मुद्दों पर जन-जागरूकता बढ़ाने में मदद करनी चाहिए, जिनमें हम स्वयं विश्वास करते हैं। मैंने तो नारी सशक्तीकरण के लिए हमेशा पहल की है। उस समय कल्पना (लाजमी) जी की निर्देशक के रूप में वैसे भी काफी प्रतिष्ठा थी क्योंकि उनकी फिल्मों को दर्शकों और समीक्षकों दोनों की प्रशंसा मिलती थी। उनकी हर फिल्म में एक संदेश होता था और उन्हें कई अवॉर्ड मिले थे। इसके अलावा, उन दिनों वह ऐसी महिला निर्देशकों में से थीं, जिनकी संख्या नहीं के बराबर होती थी। वैसे तो आज भी महिला निर्देशकों की संख्या पुरुषों के मुकाबले बेहद कम है। इसलिए मैं उनके साथ काम करने के अवसर के इंतजार में थी।
क्या आपको उस वक्त जानकारी थी कि समाज में महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा या वैवाहिक बलात्कार का मुद्दा कितना बड़ा है?
तब तक नहीं थी जब तक मुझे दमन में काम करने का अनुभव नहीं हुआ। मेरे लिए यह सब जानकर परदे पर उस किरदार को निभाना बड़ा कष्टप्रद अनुभव था। इस तरह के मामलों के बारे में पढ़कर-सुनकर मैं सिर्फ अनुमान लगा सकती थी कि घरेलू हिंसा और अन्य परिस्थितियों से जूझ रही महिलाओं की क्या दशा, मनोदशा होती होगी।
क्या आपने उस चरित्र को निभाने के लिए विशेष तैयारियां कीं?
दरअसल उन दिनों कलाकारों के लिए कोई वर्कशॉप नहीं होते थे। मैं कल्पना जी के साथ सिर्फ इस तरह के मामलों के बारे में बात करती थी और यह समझने की कोशिश करती थी कि विवाह जैसी खूबसूरत संस्था के भीतर दांपत्य जीवन में कुछ लोगों को किस हद तक घरेलू हिंसा और अन्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
जब आपने उस फिल्म की शूटिंग समाप्त की तो क्या आपको कोई उम्मीद थी कि आपको सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का राष्ट्रीय पुरस्कार मिल जाएगा?
बिलकुल नहीं। हालांकि कल्पना जी की फिल्मों की पहचान अवॉर्ड सेरेमनी और फिल्म फेस्टिवल में अवॉर्ड जीतने के लिए थी, लेकिन ईमानदारी से कहूं तो दमन अपने समय से आगे की फिल्म थी। उस समय तो मैरिटल रेप और डोमेस्टिक वायलेंस पर बात तक करना निषिद्ध लगता था। अधिकतर लोग उसके लिए तैयार न थे। यहां तक कि जब इस फिल्म को राष्ट्रीय पुरस्कार मिला तो बहुत विरोध हुआ। यह भी कहा गया कि रवीना टंडन जैसी कमर्शियल फिल्म की हीरोइन को कैसे नेशनल अवॉर्ड मिल सकता है? लेकिन, मुझे लगता है कि जूरी इस बात से आश्स्वत थी कि फिल्म समाज को एक बड़ा संदेश दे रही है और इसके आधार और कलाकारों के अभिनय को लेकर भी आश्वस्त थी। आम तौर पर उस समय तक फिल्मों में नारी का चित्रण ‘मेरा पति मेरा देवता है’ जैसे किरदारों से होता था। अगर किसी फिल्म का हीरो किसी विलेन को मारना चाहता था तो उसकी बहन उसके सामने आकर अपने सुहाग की रक्षा की भीख मांगते हुए आरजू करती थी कि उसे गोली मार दी जाए लेकिन उसके पति को छोड़ दिया जाए। दमन में पहली बार एक स्त्री अपनी बच्ची को उन परिस्थितियों से बचाने के लिए, जिनसे वह खुद गुजरी है, अपने पति को मार देती है। यह एक पथ-प्रदर्शक फिल्म थी। इसे बनाने में रिस्क था, लेकिन रिस्क लेना सफल रहा क्योंकि उस फिल्म को बड़े पैमाने पर स्वीकार किया गया।
फिर भी उस समय से अब तक मैरिटल रेप पर बॉलीवुड में बहुत कम फिल्में बनी हैं ...
यह सही है कि इस विषय पर बहुत कम फिल्में बनी हैं। लेकिन, मेरी हमेशा यह कोशिश रही है कि ज्यादा से ज्यादा ऐसी फिल्मों में काम करूं, जिनके माध्यम से समाज में कोई न कोई मजबूत संदेश जाता हो। मुझे उम्मीद है कि बाकी कलाकार भी बड़े प्लेटफॉर्म पर ऐसा करते रहेंगे ताकि लोगों में बड़े पैमाने पर जागरूकता आए।
दरअसल, मैरिटल रेप और घरेलू हिंसा आज बड़े मुद्दे हैं। इस संबंध में हमेशा कोई न कोई खबर आती रहती है। अब भी मैं इस बारे में पढ़ रही थी कि कैसे दिल्ली हाइकोर्ट के दो न्यायाधीश भी इस संबंध में अलग-अलग राय रखते हैं। हालांकि, मुझे लगता है कि धीरे-धीरे ही सही, परिस्थितियां आने वाले समय में जरूर बदलेंगी। हम सबको इसके लिए प्रयास करना पड़ेगा।
क्या आपको लगता है कि हमारा समाज उस दिशा में बढ़ रहा है जहां हर वैवाहिक संबंध पति-पत्नी के बीच समानता के आधार पर होगा?
जहां तक समानता की बात है, लोग भारत को अक्सर थर्ड वर्ल्ड या विकासशील देश कहते हैं, लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि यहां सदियों पहले कई महारानियों ने शासन किया, लड़ाइयां लड़ीं, जबकि इंग्लैंड जैसे देश में महिलाओं को 1918 में मतदान का अधिकार पहली बार मिला। हां, यह सही है कि हमारे यहां कुछ कमियां हैं, लेकिन भारत में शुरू से ही जो परिवर्तन हुए, कानून बनाए गए, वे सब महिलाओं के हक के लिए बने। उन पर पूरी तरह से पालन में समय लगता है। आजादी के बाद जिस हालत में हमें देश मिला, उसके बाद से निश्चित रूप से सशक्त महिलाओं ने हमेशा हर क्षेत्र में मजबूत भूमिका निभाई है, चाहे राजनीति हो, सेना हो या पुलिस फोर्स। महिलाएं आज हर बाधा को पार कर आगे बढ़ रही हैं। मैं आशावादी हूं और मुझे पूरा विश्वास है कि स्थितियां निश्चित रूप से बदलेंगी।
जब आपने अपना करियर शुरू किया था, उस समय से अब तक बॉलीवुड में महिलाओं की स्थिति में आपने क्या परिवर्तन देखा?
फिल्म इंडस्ट्री में भी बहुत परिवर्तन आया है। आज महिला कलाकारों के लिए सशक्त किरदार लिखे जा रहे हैं। उनके इर्दगिर्द फिल्में बन रही हैं। भविष्य में और परिवर्तन दिखेगा।
आपको हाल में अरण्यक वेब सीरीज और केजीएफ चैप्टर 2 जैसी सुपरहिट फिल्मों में देखा गया। क्या आज के दौर में ओटीटी के आने के बाद आप जैसी अभिनेत्रियों को ज्यादा अवसर मिल रहे हैं?
मुझे लगता है कि सिनेमा के लिए यह बेहतरीन दौर है। अच्छी कहानियों पर अच्छी फिल्में बन रही हैं। यह ट्रेंड अभी चलेगा और सिनेमा पहले से बड़ा और बेहतर बनता जाएगा।