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इंटरव्यू - पुनीत तिवारी - "देर तक वही बने रहेगा, जिसमें धैर्य और प्रतिभा होगी"

जब से ओटीटी प्लेटफॉर्म और यूट्यूब चैनल्स पर कॉन्टेंट बनने की परंपरा लोकप्रिय हुई है, तब से कलाकारों को...
इंटरव्यू - पुनीत तिवारी -

जब से ओटीटी प्लेटफॉर्म और यूट्यूब चैनल्स पर कॉन्टेंट बनने की परंपरा लोकप्रिय हुई है, तब से कलाकारों को बहुत लाभ हुआ है। आज जिन कलाकारों में प्रतिभा है, वह ओटीटी प्लेटफॉर्म से बड़े पर्दे तक का सफर तय कर पा रहे हैं। पुनीत तिवारी एक ऐसे ही कलाकार हैं, जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर विशेष जगह बनाई है।पुनीत तिवारी ने वेब सीरीज "संदीप भैया" में अपने अभिनय का लोहा मनवाया और दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। पुनीत तिवारी से उनके जीवन और अभिनय सफर के बारे में आउटलुक से मनीष पाण्डेय ने बातचीत की। 

साक्षात्कार से मुख्य अंश :

 

अपने शुरुआती जीवन के बारे में बताइए? 

मेरा जन्म सामान्य भारतीय परिवार में हुआ। घर में सिनेमा या अन्य कलाओं को लेकर बहुत उत्साहवर्धक माहौल नहीं था। स्कूल में भी जब कभी मौका मिलता तो मैं जरूर सांस्कृतिक गतिविधियों में शामिल होता था। मगर इसके लिए घर से अधिक प्रोत्साहन नहीं था। स्कूल में मैंने दादी की चप्पल पहनकर भांगड़ा नृत्य किया था। इसकी याद मुझे हमेशा ताजा रहती है। हालांकि पिताजी हमेशा डिबेट आदि के लिए उत्साह बढ़ाते थे। उनका मानना था कि इससे व्यक्तित्व विकास होता है।स्कूल की पढ़ाई लिखाई पूरी कर के मैं दिल्ली आ गया। दिल्ली में पढ़ाई शुरु की। फिर कुछ समय नौकरी की लेकिन मन नहीं लगा। तब जामिया से पत्रकारिता पढ़ने लगा और जेएनयू में थियेटर से जुड़ गया। इस सबमें दादी ने बहुत साथ दिया और हिम्मत बढ़ाई। इस दौरान घर परिवार से ताल्लुक असामान्य हो गया। लोग पिताजी से मुझे लेकर सवाल जवाब करते थे और उनके पास सटीक जवाब नहीं होते थे। इस स्थिति में पिताजी असहज हो जाते थे और उनका गुस्सा मुझ पर निकल जाता था। मैंने कई बार नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में प्रवेश पाने की कोशिश की लेकिन असफल रहा। तब मैंने मध्य प्रदेश स्कूल ऑफ ड्रामा में दाखिला लिया और अभिनय की बारीकियां सीखी। कुछ इस तरह से मेरी यात्रा शुरु होते हुए परवान चढ़ी।

 

 

सिनेमा की दुनिया में किस तरह से कदम रखा ? 

 

मध्य प्रदेश नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से अभिनय का प्रशिक्षण लेने के बाद मैंने कुछ समय दिल्ली में थियेटर किया। इस दौरान मुझे लगा कि मैं कुछ नया नहीं सीख रहा हूं और मेरे काम में दोहराव आने लगा है। तब मुझे लगा कि सिनेमा की दुनिया में कदम रखना चाहिए। मैंने दिल्ली में रहते हुए दो फिल्में की। सोनी और पंचलैट नामक यह फिल्में मुझे बहुत सारे अनुभव देकर गई। इस तरह से मेरे फिल्मी सफर की शुरुआत हुई।

 

 

मुम्बई आने के बाद किस तरह के संघर्ष रहे?

मुंबई आने के बाद मैं एक साल तक भटकता रहा। मेरा किसी भी ऑडिशन में चयन नहीं हुआ। उस दौरान मनोबल गिरने लगता था। तब मैंने तय किया कि मैं सीखता रहूंगा। मैं अभिनेताओं के इन्टरव्यू देखता था। साथ ही पृथ्वी थियेटर जाकर होने वाली प्रस्तुतियां देखता था। मेरी कोशिश थी कि अपने आप को पूरी तरह से तैयार कर लूं। जिससे कि अवसर आने पर, मेरे पास कोई बहाना न हो। इस दौरान समय बदला और मेरे पास छोटी छोटी भूमिकाएं आने लगीं। उस दौरान मैंने जामुन, लाखों में एक जैसे शो में काम किया। जिन लोगों ने मेरा काम देखा, उन्होंने हौसला अफजाई की। मुझे लगने लगा था कि अब सब सही हो जाएगा। लेकिन तभी कोराेना महामारी का आगमन हो गया। पूरी दुनिया में खलबली मच गई और सारा काम रुक गया। मेरे लिए वो समय बहुत अजीब था। धीरे धीरे उम्र बीत रही थी। कुछ साल बाद, मैं वह किरदार नहीं निभा सकता था, जिनके लिए मैं कोरोना के पहले ऑडिशन दे रहा था। एक घबराहट सी थी। लेकिन जब सारी दुनिया में हाहाकार मचा था, तब मैं क्या कर सकता था सिवा सब्र के। और सब्र का फल मीठा होता है। मुझे सब्र का फल मिला और मेरी कास्टिंग वेब सीरीज "संदीप भैया" में हो गई। इसके बाद से कहानी में सुधार आया। लोगों ने मेरा काम को पसंद किया और मुझे भी ऐसा लगा कि मैं अपनी प्रतिभा को परफॉर्मेंस में बदल पाया हूं।

 

 

"संदीप भैया" के बारे में कुछ बताइए, किस तरह आप इस शो का हिस्सा बने?

मैं निरंतर प्रयास कर रहा था। हजारों दरवाजे खटखटा रहा था। उन्हीं में से एक दरवाजा खुला और मुझे संदीप भैया में काम मिला। संदीप भैया से पहले मैंने जितनी भी कोशिशें की, किसी न किसी वजह से मंजिल तक नहीं पहुंचीं। तब मैं सोच चुका था कि केवल सार्थक काम करूंगा। उन्हीं दिनों संदीप भैया के ऑडिशन का अवसर आया। मैंने अपने हिसाब से ऑडिशन वीडियो भेजा। शो से जुड़े लोगों को ऑडिशन वीडियो पसंद आया और मैं शो का हिस्सा बन गया। शो का हिस्सा बनने के बाद, मुझे पर अत्यधिक दबाव भी था। मुझे खुद को साबित करना था। क्योंकि यदि मैं अच्छा परफॉर्म नहीं करता तो दस लोगों की उंगलियां उठने लगती। लोग मुझे मिले अवसर तो तुक्का कहने लगते। यह मेरी मेहनत और निष्ठा का परिणाम रहा कि न केवल मैंने अपने किरदार को अच्छे ढंग से पेश किया बल्कि सभी दर्शकों के दिल में जगह भी बनाई। इस नाते संदीप भैया मेरे लिए हमेशा विशेष रहेगा।

 

 

ऐसा देखा जा रहा है कि जिन लोगों के सोशल मीडिया पर अधिक संख्या में फॉलोअर हैं, उन्हें वेब सीरीज, फिल्मों में तरजीह दी जा रही है।इस बारे में क्या कहेंगे ? 

 

मैं बहुत आशावादी हूं। मैं हमेशा सकारात्मक रहता हूं। इस विषय में भी मेरा दृष्टिकोण सकारात्मक है। मेरा मानना है कि पहला अवसर आपको सोशल मीडिया फॉलोअर के आधार पर मिल सकता है। लेकिन यदि आप कैमरे के सामने चूक जाएंगे तो न दर्शक आपको पसंद करेंगे और न ही फिल्म बनाने वाले आपको दोबारा बुलाएंगे। आखिर यह एक बिजनेस है और इसमें उसी पर पैसा लगाया जाता है, जो पैसा कमा के दे सके। सत्य तो यही है कि जब संवाद बोलने, भाव प्रकट करने और सही मायने में अभिनय करने की बात आएगी तो पारंपरिक तरीके से तैयार हुए अभिनेता ही बाजी मारेंगे। रील बनाने और अभिनय करने में अंतर है। रील बनाने वाले को यदि आप फिल्म, वेब सीरीज में कास्ट करेंगे तो जल्दी ही आपको असलीयत का एहसास होगा। इसलिए कलाकारों को घबराना नहीं चाहिए।आप अपनी क्राफ्ट को बेहतर करें। काम की कोई कमी नहीं है। न किसी सोशल मीडिया फॉलोइंग से डरने की जरूरत है। अपने काम को मजबूत कीजिए।

 

 

आपकी इस यात्रा में आपको सबसे ज्यादा हिम्मत कहां से मिली? 

 

मुझे सबसे ज्यादा हिम्मत मेरे दोस्तों से मिली। मेरे पास कुछ ऐसे लोग हमेशा थे, जिन्होंने मुझे हौसला दिया। कठिन दिनों में भी यकीन दिलाया कि एक दिन सब कुछ ठीक होगा। मुझे लगता है कि यदि आज मैं कामयाबी की तरफ कदम बढ़ा पाया हूं तो उसमें इस संगति का बहुत बड़ा योगदान है।

 

इस यात्रा में अभी तक का सबसे रोमांचक अनुभव साझा कीजिए ? 

पिछ्ले दिनों मैं इमरान हाशमी के साथ काम कर रहा था। यह मेरे लिए सपने को सच होना था। मैंने इमरान हाशमी से कहा भी कि उनकी फिल्में देखकर मैं जवान हुआ हूं। यह अद्भुत पल था। मैं जिस जगह, परिवेश और परिवार से निकल कर आया हूं, वहां किसी के लिए हिन्दी सिनेमा में जगह बनाना एक सपना ही है। मैं सपने को सच कर पाया, यह अपने आप में संतोष देता है। 

 

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