“जब पीएम वाराणसी से चुनाव लड़ सकते हैं तो मैं आसनसोल में बाहरी कैसे हो गया”
पूर्व केंद्रीय मंत्री और हिंदी सिनेमा के वरिष्ठ कलाकार शत्रुघ्न सिन्हा ने ममता बनर्जी के तृणमूल कांग्रेस के प्रत्याशी के रूप में हाल में आसनसोल लोकसभा उपचुनाव में भारी मतों से जीत हासिल कर केंद्र की सियासत में शानदार वापसी की है। पहले दो बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा सांसद रहने वाले शत्रुघ्न कांग्रेस की टिकट पर अपने गृह क्षेत्र पटना साहिब से 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा प्रत्याशी रविशंकर प्रसाद से हार गए थे। इस उपचुनाव के ठीक पहले उन्होंने कांग्रेस का दामन छोड़ तृणमूल कांग्रेस से नाता जोड़ा और वे संसद में अपनी पांचवीं पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं। गिरिधर झा के साथ एक विशेष बातचीत में उन्होंने अपनी भविष्य की योजनाओं को साझा किया और बताया कि 2024 में विपक्ष की भाजपा-विरोधी लड़ाई की अगुआई करने के लिए ममता बनर्जी क्यों सबसे योग्य और सक्षम नेता हैं। संपादित अंश:
आपको आसनसोल लोकसभा उपचुनाव में तीन लाख से अधिक मतों से विजय हासिल हुई। क्या आपको ऐसे परिणाम की उम्मीद थी?
बिलकुल नहीं, हालांकि मैं कह सकता हूं कि जिस तरह का उमंग, उत्साह और जोश मैंने अपने चुनाव प्रचार के दौरान या पहली बार आसनसोल पहुंचने पर देखा, वह देखकर ही विश्वास किया जा सकता है। जब चुनाव की घोषणा हुई तो ममता बनर्जी ने स्वयं ट्वीट कर अपनी पार्टी के प्रत्याशी के रूप में मेरे नाम की घोषणा की। वे पहले भी चाहती थीं कि मैं वहां से चुनाव लड़ूं, लेकिन इस बार उन्होंने फोन करके जोर दिया कि मैं आसनसोल जाकर चुनाव लड़ूं। मैंने बस यही कहा कि आपकी इच्छा मेरे लिए आदेश है। जब मैं आसनसोल पहुंचा और लोगों का उत्साह देखा तो मुझे लगा कि यह मेरे लिए ऐतिहासिक क्षण और मौका है। साढ़े आठ बजे रात में दुर्गापुर एयरपोर्ट से आसनसोल तक रास्ते में हजारों लोग कतारबद्ध खड़े होकर ‘शत्रुघ्नो सिन्हा, स्वागतम!’ के नारे लगा रहे थे। लोगों से मिले सत्कार से मैं हिल-सा गया। मेरे तो रोंगटे खड़े हो गए। मेरे पटना के पुराने मित्र प्रदीप गुप्ता ने सही कहा कि जिस तरह का क्रेज वर्षों पूर्व मेरे राजनीति में शामिल होने के समय ‘बिहार बचाओ आंदोलन’ के दौरान दिखा था, आसनसोल में वैसी ही या उससे अधिक दीवानगी दिखी। उसी के आधार पर मैं अपने लोगों से कह सका कि हम चुनाव परिणाम वाले दिन इस बार इतिहास बना सकते हैं।
आपके पहुंचने के साथ ही आपके विरोधियों ने आप पर बाहरी होने का आरोप जड़ दिया। उनका कहना था कि आप बिहारी बाबू हैं और बंगाल में आप दूसरे राज्य से लाए गए उम्मीदवार हैं।
जिस दिन चुनाव की तारीख की घोषणा हुई, उसी दिन मेरे नाम की घोषणा हुई। मैं 22 मार्च को नामांकन दाखिल करने वाला था, लेकिन ममता दीदी ने एक भी दिन देर नहीं करने को कहा। जिस जोशोखरोश के साथ लोगों ने मेरा स्वागत किया, उसका असर यह हुआ कि तिलमिलाकर विरोधियों ने मुझे बाहरी कहना शुरू किया। आसनसोल की जनता के उत्साह ने उनके आरोप ध्वस्त कर डाले। हालांकि इसका एक सकारात्मक पहलू यह भी रहा कि उन्हें मेरे खिलाफ व्यक्तिगत, सामाजिक, राजनैतिक जिंदगी में एक भी भ्रष्टाचार या अन्य आरोप नहीं मिले। वैसे भी, अगर माननीय प्रधानमंत्री जी गुजरात से आकर वाराणसी से चुनाव लड़कर भी वहां ‘इनसाइडर’ हो सकते हैं तो मैं बाहरी कैसे हो गया? जो पीटर के लिए सही है, वही पॉल के लिए भी सही होना चाहिए। वैसे भी, इंदिरा गांधी, सुचेता कृपलानी, मधु लिमये से लेकर और जॉर्ज फर्नांडिस, सुषमा स्वराज और राहुल गांधी जैसे नेताओं ने अपने राज्य से बाहर चुनाव लड़ा। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर भी जब महाराष्ट्र से चुनाव हार गए तो बंगाल से उन्होंने चुनाव जीता।
अभी अगले आम चुनाव में दो साल बचे हैं। इस अवधि में आपकी क्या योजनाएं रहेंगीं?
मैं समझता हूं कि आसनसोल की कुछ समस्याएं हैं, उनको दूर करने के लिए प्राथमिकता के आधार पर बारी-बारी से संघर्ष करूंगा। चुनाव संपन्न होने के अगले दिन मैं वहां विभिन्न क्षेत्रों में जनता को धन्यवाद देने गया। वहां हमारे ऑफिस का इंतजाम हो गया है और मैं अपने लिए मकान ढूंढ रहा हूं, ताकि हर महीने वहां कुछ दिन रहकर वहां की जनता की समस्याओं से रूबरू हो सकूं और उन्हें दूर करने का प्रयास कर सकूं। आयरन लेडी ममता बनर्जी के नेतृत्व में पार्टी के सभी स्थानीय नेताओं के सहयोग से काम करूंगा, जिन्होंने इस जीत के लिए रात-दिन मेहनत की और ऐतिहासिक रैलियों का आयोजन किया। ममता जी चुनाव के दौरान हर दो घंटे पर रिपोर्ट ले रहीं थीं, इन सब कारणों से आसनसोल में फिर वही खेला हुआ जो रोल मॉडल ममता बनर्जी का बनाया मॉडल है।
2024 के लोकसभा चुनावों में आप ‘खेला होबे’ की संभावनाओं को किस रूप में देखते हैं? कहा जाता है कि भाजपा प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में मजबूत होती जा रही है, जबकि विपक्ष बिखरा पड़ा है। क्या ममता बनर्जी विपक्षी एकता के लिए राष्ट्रीय स्तर पर अगुआई कर सकती हैं?
ममता जी राजनैतिक रूप से व्यापक स्तर पर स्वीकृत, सम्मानित और सक्षम नेता हैं। वे न सिर्फ ‘क्वीन ऑफ हवाई चप्पल’ और ‘क्वीन ऑफ कॉटन साड़ी’ वाली आयरन लेडी हैं, बल्कि जांची-परखी और सफल राजनेता हैं। उन्होंने संघर्ष की राजनीति जमीनी स्तर से शुरू करके भाजपा को पिछले चुनावों में धूल चटाई है। उनके अंदर राजनीतिक क्षमता, दृष्टि और बुद्धिमत्ता है और वे देश की सही मायनों में मास लीडर हैं। हम लोगों की कोशिश होगी कि हम जहां-जहां भी पार्टी का विस्तार कर सकें, करेंगे। आसनसोल में तो खेला हो गया, उसका विस्तार भी होगा। हम बाकी लोगों से भी मिलकर देखेंगे। देश को उनके जैसे अनुभव और बुद्धिमत्ता वाली नेता की जरूरत है। उन्हें ही इस लड़ाई का फेस और फोर्स होना चाहिए।
आसनसोल में आपके खिलाफ प्रचार करने पटना से गए आपके कुछ पुराने मित्र और सहयोगी भी दिखे ...
उनमें तो कुछ चले हुए कारतूस थे, स्पेंट फोर्स थे। कुछ को उनकी पार्टी ने किसी न किसी कारण से मंत्री पद से हटा दिया था। ये आसनसोल सिर्फ अपनी उपस्थिति दर्ज करने आए थे, लेकिन उन्हें सुनने के लिए 20 लोग भी इकट्ठे नहीं हुए। जिन्हें लोग अपने शहर में नहीं पहचानते हैं, उन्हें कोई आसनसोल में कैसे पहचानेगा। उनके लिए वहां नया नाम निकल आया, पीसी नेता। प्रेस कॉन्फ्रेंस किया और निकल गए।
आप चुनाव से ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस में शामिल हुए। इससे पूर्व आप लंबे समय तक भाजपा में और फिर कांग्रेस में रहे। इस चुनाव में हुए अनुभवों के आधार पर आप तृणमूल का अन्य पार्टियों की तुलना में कैसा आकलन करते हैं?
जैसा कैडर, जैसा नेताओं में अनुशासन मैंने तृणमूल में पाया, वैसा मैंने किसी दूसरी पार्टी में नहीं देखा। भाजपा में भी ऐसी काडर बनाने की ताकत नहीं। हजारों लोगों की भीड़, लेकिन मुझे तनिक भी खरोंच नहीं। सही मायने में काडर में इतना अनुशासन और इज्जत ममता जी के लिए है।
आपके विरोधी आपके भाजपा और कांग्रेस के बाद तृणमूल में शामिल होने पर सवाल उठा रहे हैं ...
मैंने भाजपा क्यों छोड़ी, इसका कारण सबको पता है। जहां तक कांग्रेस का सवाल है, मैं इस पर कुछ नहीं बोलूंगा। कांग्रेस मेरे दोस्तों की पार्टी है। इंदिरा गांधी, राजीव, सोनिया और राहुल सबके लिए प्यार-सम्मान है। मैं उनके खिलाफ कुछ नहीं बोलूंगा। वैसे भी कांग्रेस क्राइसिस के दौर से गुजर रही है। इस दौर में हमें जख्म पर मरहम लगाना चाहिए, उसे कुरेदना नहीं चाहिए। मैं तृणमूल में आया हूं और यही कह सकता हूं, दिस फार, नो फर्दर (यहीं तक, अब कहीं और नहीं।)