आश्रम वेब सीरीज के जरिये नाम और शोहरत पाने के बाद आदिति पोहनकर, नेटफ्लिक्स पर आई वेब सीरीज "शी" के जरिये बॉलीवुड में सफलता की सीढ़ियों पर कदम रखा। शी सीजन 1 में अपनी सीरियस अदाकारी से दर्शकों को लुभाने वाली आदिति फिर से शी सीजन 2 के जरिये दर्शकों के सामने हैं। आउटलुक के राजीव नयन चतुर्वेदी ने उनसे खास बातचीत की।
साक्षात्कार के मुख्य अंश:
आपने 'शी' में एक पुलिस कांस्टेबल के अलावा सेक्स वर्कर का भी किरदार निभाया है। एक कलाकर के लिए रोल बदलना कितना मुश्किल रहता हैं?
मुझे लगता है कि इस सीरीज में मैंने किरदार नहीं बदले हैं। इस सीरीज में मैं बस 'भूमि' का ही किरदार निभा रही हूँ। इसमें रोल नहीं बस मेरा नजरिया बदलता है। इसके अलावा एक अभिनेत्री होने के अपने अनुभव के आधार पर कहूं तो रोल बदलना मानसिक और शारीरिक दोनों रूप से कठिन होता है।
आपको इस सीरीज में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ा?
चुनौतियाँ का सामना तो हर जगह मुझे करना पड़ा। इस सीरीज को करते वक्त कुछ समय तक मैं अपने व्यक्तिगत जीवन में भी पूरी तरह से 'भूमि' के किरदार को ही जी रही थी। अपनी जिंदगी में मैं जो कुछ भी करती थी, कुछ समय के लिए मुझे वो सब कुछ रोकना पड़ा था। मेरा रोल इतने भावनात्मक दृश्यों को समेटे हुए था कि मुझे कई बार यह सोचना पड़ा कि ऐसा 'भूमि' के साथ क्यों हो रहा है? ऐसा किसी के साथ कैसे हो सकता है?
आमतौर पर यह देखा जाता है कि किसी भी सीरीज का पहला पार्ट दर्शकों को बाँधने में सफल रहता है लेकिन दूसरा पार्ट उतना दमदार नहीं रह पाता है। शी सीजन 2 को लेकर आपका क्या ख्याल है?
भूमि के किरदार को पहले पार्ट में लोगों ने खूब सराहा था। जब तक दूसरा पार्ट रिलीज नहीं हुआ था तब उसके बारे में लोग खूब पूछते थे, लेकिन महामारी के कारण दूसरा पार्ट रिलीज होने देरी हुई। मेरे हिसाब से 'शी' का दूसरा पार्ट पहले पार्ट का कंटिन्यूएशन नहीं है। सीजन 1 में आपने जिस लड़की को देखा है उसे पता नहीं होता है कि वो क्या करना चाहती है लेकिन सीजन 2 में उसका लोग साहसिक रूप देखेंगे।
पारंपरिक फिल्मों और ओटीटी में आप किस तरह का फर्क देखती हैं?
ओटीटी में एक्टर्स को बहुत मेहनत और कार्य करना पड़ता है। एक फ़िल्म आप 20-25 दिन में खत्म कर सकते हैं लेकिन ओटीटी के साथ ऐसा नहीं है। लेकिन फिर भी मैं ओटीटी और पारंपरिक फिल्मों में, माध्यम के अलावा और कोई अंतर नहीं देखती हूँ। अगर मेरी सीरीज पारंपरिक तरीके से रिलीज हुई होती तो शायद इसे सिर्फ भारत के लोग ही देखते लेकिन आज मुझे अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा जैसे देशों से भी मैसेज आते हैं, क्योंकि ओटीटी पर कोई देशीय-दायरा नहीं है।
आपसे हमेशा यही सवाल पूछा जाता होगा कि ओटीटी के फायदे क्या हैं, लेकिन मैं आपसे ओटीटी की कमियों के बारे में जानना चाहूंगा?
मेरा हिसाब से ओटीटी में ज्यादा कमियां नहीं है। लेकिन फिर भी अगर ट्रेडिशनल सिनेमा के बारे में बात करूँ तो उसमें फिल्म लोग पूरे तीन घण्टे तक बैठकर देखते हैं। लेकिन ओटीटी के साथ ये साहूलियत नहीं है। अगर कोई फिल्म या सीरीज किसी दर्शक को पांच मिनट भी पसंद नहीं आई तो वो उसे बदल देते हैं लेकिन ट्रेडिशनल सिनेमा में ऐसा नहीं होता।
आप जब इम्तियाज़ अली से पहली बार मिली तब आपकी उनके प्रति धारणा क्या थी? और उनसे मिलने के बाद आपकी धारणा में क्या बदलाव आया?
मुझे लगता है कि इम्तियाज़ अली को लेकर जो मैं पहले सोचती थी उनसे मिलने के बाद भी वैसे ही सोचती हूँ। पहले मैं उन्हें एक इंटेंस और सीरियस डायरेक्टर के रूप में जानती थी और अभी भी वो ऐसे ही हैं।
आप प्रकाश झा और इम्तियाज़ अली, दोनों लोगों के साथ कार्य कर चूकि हैं। दोनों के डायरेक्शन में आप कैसा अंतर देखती हैं?
दोनों ही वेटरन डायरेक्टर हैं। प्रकाश झा का फिल्ड बहुत बड़ा है। आश्रम में मैं लिड रोल में थी लेकिन मेरे आस पास भी कई सारे किरदार कार्य कर रहे थे। इम्तियाज़ अली के साथ ऐसा नहीं है। वो मुख्य किरदार के मन को पकड़ते हैं और उसके इर्द-गिर्द ही पूरी कहानी चलती रहती है। हालांकि दोनों बेहतरीन डायरेक्टर हैं और दोनों से मैंने बहुत कुछ सीखा है।
आपका फ़िल्मी दुनिया में कोई गॉडफादर नहीं है। एक बाहर से आए हुए कलाकर को फिल्मों की दुनिया में किस तरह की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
मुझे कुछ ज्यादा अंतर नहीं लगता है। अगर आप मेहनत से सबकुछ हासिल कर लेते हैं। यहां विकल्प सबके लिए खुला है और आप उसे कैसे टैप करते हैं, फर्क बस यही पड़ता है। मैं हमेशा से यह मानती आई हूँ कि मेहनत कभी बेकार नहीं जाता है।
मेरा आखिरी सवाल, आगे हम आपको किस अवतार में और कहां देख सकते हैं?
मैं अभी वो बता नहीं सकती कि आगे आप मुझे किस किरदार में देखेंगे, लेकिन इतना बता दूँ कि आप मुझे जल्द ही नए अवतार में देखेंगे। मेरे पास कुछ फिल्मों के ऑफर आए हुए हैं।