छत्तीसगढ़ में पिछले कुछ महीनों से मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री के फॉर्मूले को लेकर खींचतान जारी है। राज्य में मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी का कहना है कि इन दोनों दिग्गजों में जारी सियासी गतिरोध का असर राज्य सरकार के कामकाज पर भी पड़ रहा है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह जोर देकर कहते हैं कि यह अनिश्चितता जल्द से जल्द दूर होनी चाहिए। आउटलुक के अक्षय दुबे 'साथी' के साथ बातचीत में भाजपा नेता ने भूपेश सरकार के कामकाज, कवर्धा में हुए साम्प्रदायिक दंगे, झीरम घाटी पर नए आयोग का गठन, नक्सल मोर्चे पर राज्य की स्थिति और मौजूदा कांग्रेस सरकार के खिलाफ अपनी पार्टी की भावी रणनीति जैसे मसलों विस्तार से चर्चा की। मुख्य अंश:
छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल और स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव के बीच लंबे समय से खींचतान जारी है। क्या इसका असर राज्य सरकार के कामकाज पर भी पड़ रहा है? आप इस पूरे राजनीतिक परिदृश्य को कैसे देखते हैं?
विधायकों के दिल्ली जाने जैसे घटनाक्रम से यह स्पष्ट हो जाता है कि ढाई-ढाई साल मुख्यमंत्री के संबंध में वादा किया गया था। अब कांग्रेस के अंदर विभाजन रेखा साफ दिख रही है।इसका असर छत्तीसगढ़ में मजबूती के साथ दिख रहा है। पांच छह महीनों से प्रशासन ठप है। यानी पूरी सरकार अनिश्चितता की स्थिति में है। ऐसे में राहुल गांधी को स्पष्ट कर देना चाहिए कि पांच साल के लिए स्थाई मुख्यमंत्री रहेंगे या फिर टीएस सिंहदेव जो दावा कर रहे हैं उन्हें जवाबदारी देंगे। कुलमिलाकर यह अनिश्चितता समाप्त होनी चाहिए।
छत्तीसगढ़ में कोविड के मामले फिर से बढ़ते दिख रहे हैं। दूसरी लहर के दौरान छत्तीसगढ़ ने काफी गंभीर स्थिति का सामना किया था। इस दरमियान आप कोविड प्रबंधन पर भूपेश सरकार के कामकाज को कैसे देखते हैं?
कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान राज्य सरकार पूरी तरह लड़खड़ा गई थी। कोविड प्रबंधन में पूरी तरह से असफलता हाथ लगी। अब टीकाकरण का दौर चल रहा है और पूरे देश में 110 करोड़ से ज्यादा खुराक दी जा चुकी है। अब मुझे लगता है कि आज की स्थिति में तीसरी लहर की संभावना धीरे-धीरे कम होती जा रही है। लेकिन सरकार में स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के बीच पिछले सात-आठ महीनों में जो टकराव की स्थिति निर्मित हुई है उसका बुरा असर स्वास्थ्य के मोर्चे पर पड़ रहा है।
झीरमघाटी मामले पर जांच आयोग का पुनर्गठन किया गया है। जो पुरानी रिपोर्ट थी उसको भी राज्य सरकार ने सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। आपके हिसाब से उस जांच रिपोर्ट में क्या कमी रह गई थी?
सरकार की ओर से इतनी जल्दबाजी करना ही शंका उत्पन्न करता है। हमारे शासनकाल में जांच आयोग का गठन हुआ था। उस समय हमने खुद से जज की नियुक्ति नहीं की थी। हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश से जज के नाम मांगे थे। उन्होंने नाम तय किये थे। कैबिनेट में निर्णय लिया गया था। यानी सरकार ने आयोग का गठन नहीं किया था। छत्तीसगढ़ के मुख्य न्यायाधीश ने नाम की सिफारिश की। उनको हमने जवाबदारी दी, कंडीशन हमने तय किए। लेकिन आज नया आयोग का गठन हो रहा है। पहले की रिपोर्ट के पन्ने को पलटा कर भी नहीं देखा गया। आयोग की सिफारिशों को भी नहीं देखा गया कि इसमें क्या कमी है या क्या खूबी है। मतलब देखे बगैर ही यह घोषित हो गया कि यह रिपोर्ट अधूरी है। यह तो अजीब बात है कि रिपोर्ट बन कर आई है लेकिन राजपाल ने देखा नहीं, आपने (मुख्यमंत्री) देखा नहीं और इसे अधूरा कहने लगे। इससे साफ जाहिर है कि इस जांच को यह सरकार अनिश्चितकाल के लिए टालना चाहती है। इसकी रिपोर्ट जनता तक ना आए इसके लिए जांच आयोग का पुनर्गठन हड़बड़ी में की गई कार्रवाई है जो उचित नहीं है।
आप 15 साल तक नक्सल प्रभावित राज्य के मुख्यमंत्री रहे। हालफिलहाल फिर से नक्सल गतिविधियों में सक्रियता देखी जा सकती है। आपके मुताबिक इस पर कैसे काबू पाया जा सकता है? आप जब मुख्यमंत्री थे तो पिछले विधानसभा चुनाव से पहले आपने कहा था कि कुछ महीनों में ही नक्सलियों का पूरा सफाया हो जाएगा।
छत्तीसगढ़ में नक्सल विरोधी मोर्चे पर हम काफी आगे बढ़ चुके थे। उन्हें काफी हद तक खदेड़ चुके थे मगर सरकार बदलने के बाद फिर उनके हौसले बुलंद हो गए हैं। साथ ही पुलिस के मनोबल पर भी बुरा असर पड़ा है क्योंकि हर छह महीने में एसपी बदल रहे हैं, अधिकारियों के तबादले हो रहे हैं, योग्य अधिकारी को भेज नहीं रहे है। इसका बुरा प्रभाव यह पड़ा कि नक्सली यहां सर उठाने लगे हैं। बाकी महाराष्ट्र ने बहुत बड़ा काम किया, अभी 26 हार्डकोर नक्सलियों को उन्होंने मार गिराया। तो इस प्रकार बड़ी कार्ययोजना के साथ सरकार को तैयारी करनी चाहिए।
हाल ही में आपके गृहनगर कवर्धा में सांप्रदायिक दंगे हुए। इस दौरान कांग्रेस सरकार ने भाजपा नेताओं पर कई आरोप लगाए हैं। जबकि आपकी पार्टी की ओर से कहा जा रहा है कि इस मामले में उचित कार्यवाही नहीं हुई है। राज्य सरकार का कहना है कि उन्होंने तुरंत कार्यवाई करते हुए कई आरोपियों पर एफआईआर दर्ज किया और उनको जेल भेजा। आप इस पूरे प्रकरण को कैसे देखते हैं?
यह प्रकरण कोई एक दिन का नहीं है। वहां के विधायक जो मंत्री भी हैं उनका प्रशासन पर बहुत ज्यादा दबाव है। तीन साल का विस्फोट है जो अब निकल कर सामने आया है। तुष्टीकरण की राजनीति, बहुसंख्यक को दबाने का षड्यंत्र और एफआईआर भी नहीं लिखे जाने की घटना ने स्थिति को विस्फोटक बना दिया। इसमें बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है। अजीब बात है कि 70-75 लोगों के ऊपर अलग-अलग मामले लगाकर उनको जेल के अंदर डाल दिया गया। लेकिन जो लोग चाकू और तलवार से हमला किए, आक्रमण किए उनके खिलाफ कोई मामला दर्ज नहीं हुआ, उनकी कोई गिरफ्तारी नहीं हुई। एकतरफा कार्रवाई के आक्रोश में यह सब पनपा था। आज भी कवर्धा से धारा 144 नहीं हटा है। आज इनकी गलत नीतियों और तुष्टिकरण की वजह से कवर्धा में स्थिति गंभीर बनी हुई है।
राज्य सरकार ने 'राम वन गमन पथ' को पर्यटन स्थल घोषित कर उसको विकसित करने का निर्णय लिया है। ऐसा विचार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी का भी रहा है। क्या आपको नहीं लगता कि आप लोग पीछे रह गए और कांग्रेस सरकार ने बाजी मार ली?
नहीं, यह लोग सिर्फ नारे लगाते हैं कुछ करते नहीं है। कोई आधारभूत संरचना नहीं है। वे सिर्फ बात ही बात करते हैं। राम वन गमन पथ की बात करते इन्हें तीन साल हो गए हैं। यह केंद्रीय योजना का हिस्सा था लेकिन अब तक कोई क्रियान्वयन नहीं हुआ है। उन सारे स्थानों को विकसित करने के लिए धनराशि चाहिए। सरकार को कार्य योजना बनाकर काम करना चाहिए। इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करना चाहिए। लेकिन आज तक पूरे छत्तीसगढ़ में इसे लेकर एक रुपए का भी काम नहीं हुआ है। आधा अधूरा काम है। वैसे भी भूपेश जी के तीन साल के कार्यकाल में ना सड़कें बनी, न पुल, न ही स्कूल और अस्पताल। यहां तक कि वेतन देने के पैसे भी नहीं हैं। राज्य पर 40 हजार करोड़ का कर्ज हो चुका है। जबकि हमने 15 सालों में केवल 26 हजार करोड़ का कर्ज लिया था। लेकिन अभी इन्हें तीन साल भी पूरे नहीं हुए हैं और यह छत्तीसगढ़ सरकार की स्थिति है। यहां बुनियादी विकास पूरी तरह से ध्वस्त हो चुका है।
जब भी हम राजनीति में राम की चर्चा करते हैं तब भारतीय जनता पार्टी जहन में आती है। लेकिन छत्तीसगढ़ में हम देख रहे हैं कि चाहे वह राम वन गमन पर्यटन परिपथ परियोजना हो, नवधा रामायण मंडली को सहायता देने की घोषणा हो या फिर अब स्कूलों में 'रघुपति राघव राजा राम' गाए जाने का निर्णय हो, क्या इन तमाम कदमों से कांग्रेस अब भाजपा को कड़ी टक्कर दे रही है?
वे सिर्फ चुनाव आता है तब टीका लगाते हैं और चुनाव के बाद धर्म के मुताबिक आचरण और व्यवस्था करना भूल जाते हैं। रामराज्य की कल्पना वो है जिसमें जनता सुखी रहे। जनता के लिए काम हो। यहां तो तीन साल में सिर्फ दो तीन-चीजें ही प्रसिद्ध हुई हैं। पूरे छत्तीसगढ़ में कोल माफियाओं, शराब माफियाओं और भूमि माफियाओं का राज है। गुंडागर्दी इतनी बढ़ी हुई है कि हत्या-लूट-बलात्कार आम हो गए हैं। एसपी और कलेक्टर की पदस्थापना में पैसे लग रहे हैं। ऐसे में अपराध और गुंडागर्दी पर कैसे लगाम लगेगी। अभी तक हम लोग सुनते थे कि मेडिकल कॉलेज भर्ती में पेमेंट सीट होती है यहां तो पदस्थापना में भी पेमेंट सीट है। अच्छा जिला लेना है तो उसकी बोली लगती है। पूरे देश में छत्तीसगढ़ ऐसा राज्य है जहां प्रशासनिक व्यवस्था इतनी लचर है।
ऐसा कोई मोर्चा जहां आपको लगता है कि सरकार को इसमें गंभीरता से काम करने की जरूरत है?
छत्तीसगढ़ में आर्थिक स्थिति दिवालियापन की ओर जा रही है। सरकार को सबसे पहले वित्तीय स्थिति को ठीक करने की जरूरत है।
छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने में अब लगभग दो साल रह गए हैं। लिहाजा कांग्रेस की विशाल बहुमत को भाजपा किस रणनीति के तहत टक्कर देगी?
भाजपा की ओर से संगठनात्मक और आंदोलनात्मक गतिविधियां तेज हो रही हैं। जिन-जिन मोर्चों पर सरकार की असफलता है उसको हम लोग विधानसभा के अंदर और बाहर दोनों जगह उजागर कर रहे हैं। जनता इस सरकार को चुनने के बाद पश्चाताप कर रही है। जनता ठगी हुई महसूस कर रही है क्योंकि जन घोषणापत्र में जो घोषणाएं की गई थी उसमें से एक भी वादे पूरे नहीं हुए हैं। पांच लाख लोगों को बेरोजगारी भत्ता देने की बात हुई थी, पूर्ण शराबबंदी का बड़ा वादा किया गया था, 2 साल का बोनस देने की बात कही गई थी, पेंशन बढ़ाने की भी बात हुई थी लेकिन अभी तक ये तमाम घोषणाएं अधूरी हैं। मुझे लगता है जब चुनाव आएंगे तो जनता हिसाब- किताब करेगी और इनसे सवाल पूछेगी।